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Sunday, May 10, 2009

१२-सेवा पूजा से बड़ी हे

  • एक गुरु के दो शिष्य थे ! दोनों बड़े इष्वर भक्त थे ! इष्वर उपासना के बाद वे रोगियों की चिकत्सा में गुरु की सहायता किया करते थे ! एक दिन उपासना के समय ही कोई रोगी आ पहुचा ! गुरु ने अपने शिष्य को बुलाने भेजा जो पूजा कर रहे थे ! शिष्यों ने कहला भेजा अभी थोड़ी पूजा बाकी हे ,पूजा समाप्त होते ही आजायेगें !
  • इस पर गुरूजी ने दोबारा आदमी भेजा ! इस बार शिष्य आ गए ! पर उन्होंने अकस्मात् बुलाए जाने पर असंतोष व्यक्त किया ! गुरूजी ने कहा में ने तुम्हे इस व्यक्ती की सेवा के लिए बुलाया हे ! प्रार्थना तो देवता भी कर सकते हें बीमारों की सहायता तो मनुष्य ही कर सकता हे ! सेवा प्रार्थना से अधिक ऊँची हे क्योंकि सेवा देवता नहीं कर सकते !शिष्य अपने बरतावे पर बड़े लज्जित हुए और उस दिन से प्रार्थना की अपेक्षा सेवा को अधिक महत्त्व देने लगे !
  • शिष्यों ने एक और गलती की की गुरु का कहना नहीं माना गुरु की आज्ञा सर्वोपरी हे !

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