| दो बुड़े बृक्ष की कहानी हरी ॐ दो बड़ी उम्र के ब्रिक्ष परस्पर वार्ता कर रहे थे। एक बुडा पेड़ अपने दुसरे साथी से बोला बोला भाई ! एक समय था जब आने जाने वाले मुसाफिर और नन्हे मुन्ने बच्चे धुप से बचने के लिए और मेरी छाया में खेलने के लिए प्रतिदिन मेरे पास आते थे। मै उस समय घनी छाया , मीठे फल, हरे पत्ते और सुखी लकड़िया उदारता पूर्वक दिया करता था। उस समाय वे बहुत खुस होते थे, हँसते मुस्कुराते थे और जब वे वापिस लौटकर जाते तो मुड -मुड़कर मेरी तरफ देखते हुए जाते थे। दुसरे बुड़े ब्रिक्ष ने भी अपनी आँखों के नमी को छुपाते हुए कहा; मित्र हमारा भी तो येही हाल है, जो तुम्हारा है। हमने भी अपने समय पर वह सब देखा है जो तुम कह रहे हो। पर दुःख तो तब लगता है जब जब ये हमारी उपेक्षा करते है, हमारे पास से गुजरते है लेकिन हमारे तरफ देखते नहीं। तभी कुछ बच्चे आपस में हँसते हुए, बात करते हुए वहां से गुजरे। उन्हें देखकर पहले बुड़े पैड़ ने बच्चो से पूछा - प्यारे बच्चो! अब तुम हमारे पास खेलने कियूं नहीं आते? एक बच्चा बोला तुम्हारे पास अब हरियाली नहीं है, छाया नहीं है, फल नहीं है, और देने के लिए कुछ भी नहीं है, फिर किसिलिये हम तुम्हारे पास ए? यह सुनकर उसे बड़ा धक्का लगा, उसकी आंखे छलक गई , जो बच्चो को देखकर खुसी से चमकने लगी थी, रुंधे हुए गले से घर -घराती आवाज में उसने कहा- तुम ठीक कहते हो, अब मेरे पास कुछ भी तो नहीं है जिसके लिए तुम मेरे पास आया करते थे। लेकिन बच्चो अभी भी मेरे पास छाल बची है, तुमहे इसकी जरुरत हो तो तुम इसे भी ले जा सकते हो। अब तो मै जर्जर हो गया हूँ। यह सुनकर बच्चे वहां से चुपचाप चल दिए। दुसरे पेड ने पहले पेड को सान्तना देते हुए कहा- बच्चो की बात को दिल से मत लगाओ, बच्चे तो बच्चे है, उन्हें झूट बोलना नहीं आता। इसीलिए सब कुछ साफ़ साफ़ कहकर चले गए। आजकल सच्चाइ तो यही है साडी दुनिया स्वार्थी है , जब तक स्वार्थ है तो सबको प्यारे लगते है, जब सामर्थ्य नहीं रहता , तो वही प्यारे बेगाने हो जाते है। अरे दोस्त ! काहे मन भरी करते हो? हमें तो अपना शेष जीवन यही गहन जंगल में बिताना है। अगर हम इस मार्मिक लघु कथानक पर विचार करे तो शायद यह कहानी आज के समय में ब्रिद्धजनो के सच्ची दास्ताँ बयां करती है। जब तक ब्यक्ति हर तरह से सबल है, धन दौलत कमा रहा है, बच्चो को पड़ा - लिखा रहा है, उन्हें लायक बना रहा है, उनकी हर तरह से रक्षा कर रहा है, तब तक तो उसकी तारीफ के कसीदे पड़े जाते है, उसकी हंसी खुसी का खायाल रखा जाता है, उसकी इज्जत में सब की इज्जत समझी जाती है, उसके सुख तो सुख और दुःख को दुःख सब मानते है। लेकिन जैसे ही संतान सत्ता में आ जाते है सब घर -परिवार वाले बन जाते है, कार्य ब्यापार करने लगते है, फिर जो कभी बहुत कीमती समझे जाते थे जिनकी इशारा के बिना घर में पत्ता भी नहीं हिलता था, बाद में उपेक्षा और तिरस्कार के पात्र बन जाते है। कैसा स्वार्थी है ये संसार क्योँ नहीं समझता समय की नजाकत को, क्यों कर रहा जय नादानी का व्यबहार। |
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