धर्मनिष्ठा की प्रेरक प्रेरणा
किसी कवि के द्वारा की गई कल्पना की अमर कहानी हे !एक सूखे हुए
बृक्ष में आग लगी हुई थी और उस बृक्ष पर कुछ पक्षी विराजमान थे !
किसी राहगीर ने उन पक्षियों को चेतानवी देते हुए कहा!
आग लगी एस बृक्ष में ,जल -जल गिरते पात !
अरे ! पक्षियों उड क्यों नहीं जाते ,पंख तुम्हारे साथ !!
पथिक पक्षियों को चेताते हुए कह रहा है कि जिस बृक्ष पर तुम विराजमान हो ,वह आग से जलने लग रहा है और तुम उस पर बैठकर तमाशा देख रहे हो ! जबकि उड़ने के लिए पंख तुम्हारे साथ हैं ! तुम उड क्यों नहीं जाते ? पक्षियों ने राहगीर को बडा प्यारा जवाब दिया -
फल खाए इस बृक्ष के ,गन्दे कीन्हें पात !
धर्म हमारा यही है ,मर मिटें इसी के साथ !!
पक्षियों का धर्मानुकूल जवाब मानव मात्र को धर्म का उपदेश देता है कि खुशियों की हरियाली में ,फल-फूलों से लदी हुई डालियों में जिसने हमें आश्रय दिया है आज विपत्ति के समय हम उसका साथ छोड दें ,यह धर्म सम्मत् नहीं है और हम ऐसा अधर्म नहीं कर सकते !
जीवन संचेतना मार्च 09