WELCOME

YOU ARE WELCOME TO THIS GROUP

PLEASE VISIT U TO END OF THIS BLOG

adsense code

Monday, December 17, 2012

आत्मनिर्भरता की भावना

आत्मनिर्भरता की भावना

उन दिनों स्वामी विवेकानंद पैरिस में थे। एक दिन वह बग्घी में सैर के लिए निकले। ज्यों ही बग्घी एक गली में पहुंची, एक नौकरानी दो छोटे खूबसूरत बच्चों के साथ आती दिखी। उन्हें देखते ही कोचवान ने बग्घी रोक दी। उसने उतरकर उन बच्चों को प्यार किया, फिर अपनी सीट पर आकर बैठ गया। वे बच्चे पहनावे से ऊंचे घराने के दिखते थे। उनके साथ कोचवान की इतनी घनिष्ठता देखकर विवेकानंद प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा, 'कौन हैं ये?'

' ये मेरे बच्चे हैं।' कोचवान ने मुस्कारते हुए कहा और बग्घी आगे बढ़ा दी। कुछ दूर चलने के बाद उसने स्वामी जी को अपने बारे में बताना शुरू किया, 'मैं पैरिस बैंक का मालिक था। आजकल उसकी हालत खस्ता हो गई है। मैंने महसूस कर लिया कि मुझे अपनी लेनदारियां वसूलने और देनदारियां चुकाने में वक्त लगेगा। लेकिन मैं दूसरों पर बोझ नहीं बनना चाहता। मैंने गांव में एक छोटा सा मकान किराए पर ले रखा है। मेरे और मेरी पत्नी के पास जो कुछ था उससे यह बग्घी खरीद ली है। मेरी पत्नी भी उपार्जन कर लेती है। दोनों की आय से बच्चों का खर्च चल जाता है। जब कर्ज चुका दूंगा और लेनदारी वसूल कर लूंगा, बैंक चालू कर दूंगा।'

स्वामी जी आनंदित होकर बोले, ' मैं तुम्हें सच्चा वेदांती मानता हूं। तुम हैसियत से गिर कर भी परिस्थितियों से नहीं हारे। यह है आत्मनिर्भरता की सच्ची भावना।'

No comments:

Post a Comment