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Wednesday, April 29, 2020

जय माता दी 

*चार पक्षियों की कथा* 

 महाभारत युद्ध का समय था । इन पक्षियों की माता दैववश युद्ध क्षेत्र में जा पहुंची । उस समय अर्जुन और भगदत्त में युद्ध छिड़ा हुआ था । 

संयोगवश अर्जुन का एक बाण उस पक्षिणी को लगा, जिससे उस का पेट फट गया और उसमें सें चार अण्डे पृथ्वी पर गिरे । 

उनकी आयु शेष थी, अत: वे फूटे नहीं । बल्कि पृथ्वी पर ऐसे गिरे, मानों रुई के ढेर पर पड़े हो । 

उन अण्डों के गिरते ही भगदत्त के हाथी के गले से एक बहुत बड़ा घंटा भी टूट कार गिरा, जिसका बंधन बाणों के आघात से कट गया था । 

यद्यपि वह अण्डों के साथ ही गिरा था, तथापि उन्हें चारों और से ढकता हुआ गिरा और धरती में थोडा-थोडा धंस भी गया । 

इस प्रकार उन अण्डों की बड़े विचित्र ढंग से रक्षा हो गयी । शास्त्रों में ठीक ही कहा है -

*अरक्षितं तिष्ठति देवरक्षितं सुरक्षितं दैवहंत विनाश्यती ।*

'दैव- भगवान् की आलौकिक शक्ति जिसकी रक्षा में नियुक्त है, उसका भला क्या बिगड़ सकता है । और जिसकी आयु शेष हो चुकी है, उसकी कितनी ही रक्षा की जाय-वह बच नहीं सकता । अस्तु;

युद्ध समाप्त हो गया । अण्डे घंटे के भीतर ही पृथ्वी का और सूर्य का ताप पाकर पाक गये और उनमें से पक्षी शावक निकल आये । 

अगले अठारह दिनों में कई जानें चली गईं। अंत में पांडवों की जीत हुई। एक बार फिर, कृष्ण अर्जुन को अपने साथ सुदूर क्षेत्र में भ्रमण करने के लिए ले गए। 

कई शव अभी भी वहाँ थे जो उनके अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहे हैं। जंग का मैदान गंभीर अंगों, सिरों , बेजान शरीरों और हाथियों से अटा पड़ा था।

कृष्ण एक निश्चित स्थान पर रुक गए और नीचे एक हाथी के गले की घंटी को विचारपूर्वक देखा।

उन्होंने अर्जुन से उस  घंटी उठाने को कहा

हालांकि अर्जुन के लिए बहुत सरल, निर्देश बहुत कम अर्थ था। आख़िरकार, विशाल मैदान में जहाँ बहुत सारी अन्य चीजों को साफ़ करने की ज़रूरत थी, कृष्ण उसे धातु के एक तुच्छ टुकड़े को हिलाने के लिए क्यों कहेंगे? उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा।

अर्जुन ने प्रश्न किया :- यह घंटी,"

 कृष्ण ने दोहराया। "यह वही घंटी है जो हाथी की गर्दन पर बँधी थी जो तेरे शस्त्र प्रहार से नीचे गिरी थी "

अर्जुन एक और सवाल किये बिना भारी घंटी उठाने के लिए नीचे झुका। जैसे ही उन्होंने इसे उठाया, उनकी दुनिया हमेशा के लिए बदल गई।

एक, दो, तीन, चार । चार पक्षी के चूज़े एक के बाद एक दिखाई देने लगे।

इधर दैव की प्रेरणा से एक ऋषि उधर जा निकले ।

 उन्होंने घंटे में से बच्चों कि आवाज सुनकर कौतुहल वश घंटे को उखाड़ लेने का सारा वृत्तान्त देखा और भगवान श्री कृष्ण की  आज्ञा लेकर उन बच्चों को अपने आश्रम में लाकर एक सुरक्षित स्थान में रखवा दिया । 

उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि 'यह कोई सामान्य पक्षी नहीं है । संसार में देवों का अनुकूल होना महान सौभाग्य का सूचक होता है ।' 

उन्होंने यह भी कहा कि यद्यपि किसी की रक्षा के लिए अधिक प्रयत्न की आश्यकता नहीं है- क्योंकि सभी जीव अपने कर्मों से ही मारे जाते हैं और कर्मों से ही उनकी रक्षा होती है – फिर भी मनुष्य को शुभ कार्य के लिए यत्न अवश्य करना चाहिये, क्योंकि पुरषार्थ करने वाला ( असफल होने पर भी ) निन्दा का पात्र नहीं होता । इस प्रकार उन पक्षियों के जन्मवृतान्त से बड़ी सुन्दर शिक्षा मिलाती है ।
 
* शिक्षा :- यह वृत्तान्त यह समझने के लिये काफी है कि इस कोरोना रूपी महायुद्ध हम भी उन गोरैया के शावकों की तरह जब तक घर मे है तब तक सुरक्षित है। तो घर मे रहते हुए अपने तथा इस संसार की रक्षा के लिए प्रभु से प्रार्थना करते रहे।।

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