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Sunday, October 4, 2020

प्रेम वाला


प्रेम वाला इंसान ही दुनिया में निर्माण कर सकता है।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज  
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⚜️  💦 *नियम का महत्व*? 💦 ⚜️

🔷एक संत थे। वे एक किसान के घर गए। किसान ने उनकी बड़ी सेवा की। सन्त ने उसे कहा कि रोजाना नाम -जप करने का कुछ नियम ले लो।
🔷किसानने कहा बाबा, हमारे को वक्त नहीं मिलता। सन्त ने कहा कि अच्छा, रोजाना ठाकुर जी की मूर्ति के दर्शन कर आया करो।
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🔷किसान ने कहा मैं तो खेत में रहता हूं और ठाकुर जी की मूर्ति गांव के मंदिर में है, कैसे करूँ?संत ने उसे कई साधन बताये, कि वह कुछ -न-कुछ नियम ले लें।
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🔴पर वह यही कहता रहा कि मेरे से यह बनेगा नहीं, मैं खेत में काम करू या माला लेकर जप करूँ। इतना समय मेरे पास कहाँ है?
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🏵️बाल -बच्चों का पालन पोषण करना है। आपके जैसे बाबा जी थोडे ही हूँ। कि बैठकर भजन करूँ।
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🌹संत ने कहा कि अच्छा तू क्या कर सकता है? किसान बोला कि पडोस में एक कुम्हार रहता है। उसके साथ मेरी मित्रता है। उसके और मेरे खेत भी पास -पास है।
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🌼और घर भी पास -पास है। रोजाना एक बार उसको देख लिया करूगाँ। सन्त ने कहा कि ठीक है। उसको देखे बिना भोजन मत करना।
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🍁किसान ने स्वीकार कर लिया। जब उसकी पत्नी कहती कि भोजन कर लो। तो वह चट बाड पर चढ़कर कुम्हार को देख लेता। और भोजन कर लेता।
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🟣इस नियम में वह पक्का रहा। एक दिन जाट को खेत में जल्दी जाना था। इसलिए भोजन जल्दी तैयार कर लिया।
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🟥उसने बाड़ पर चढ़कर देखा तो कुम्हार दीखा नहीं। पूछने पर पता लगा कि वह तो मिट्टी खोदने बाहर गया है। किसान बोला कि कहां मर गया, कम से कम देख तो लेता।
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☸️अब किसान उसको देखने के लिए तेजी से भागा। उधर कुम्हार को मिट्टी खोदते -खोदते एक हाँडी मिल गई। जिसमें तरह -तरह के रत्न, अशर्फियाँ भरी हुई थी।
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🌀उसके मन में आया कि कोई देख लेगा तो मुश्किल हो जायेगी। अतः वह देखने के लिए ऊपर चढा तो सामने वह किसान आ गया।
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💠कुम्हार को देखते ही किसान वापस भागा। तो कुम्हार ने समझा कि उसने वह हाँडी देख ली। और अब वह आफत पैदा करेगा।
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🔴कुम्हार ने उसे रूकने के लिए आवाज लगाई। किसान बोला कि बस देख लिया, देख लिया।
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💦कुम्हार बोला कि अच्छा, देख लिया तो आधा तेरा आधा मेरा, पर किसी से कहना मत। किसान वापस आया तो उसको धन मिल गया।
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🌻उसके मन में विचार आया कि संत से अपना मनचाहा नियम लेने में इतनी बात है। अगर सदा उनकी आज्ञा का पालन करू तो कितना लाभ है।
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👑ऐसा विचार करके वह किसान और उसका मित्र कुम्हार दोनों ही भगवान् के भक्त बन गए।
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🌿तात्पर्य यह है कि हम दृढता से अपना एक उद्देश्य बना ले, नियम ले लें कि चाहे जो हो जाये, हमें तो भगवान् की तरफ चलना है।
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🎋भगवान् का भजन करना है। नियम बनाने की अपेक्षा नियम को पहचाने। नियम क्यों लिया गया है। 
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👉अगर हमें हमेशा यह स्मरण रहे कि हमने जो नियम लिया है वह क्यों लिया है। तो शायद नियम कभी न छूटे....

*संकल्प का विकल्प नही होता ।*
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Tuesday, August 25, 2020

प्रेम वाला

प्रेम वाला इंसान ही दुनिया में निर्माण कर सकता है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज  

Wednesday, August 19, 2020

Prarthna

🌹 *प्रार्थना*🌹

          *हे सर्व शक्तिमान सर्वाधार प्रभु ! आप समस्त सुखों के भण्डार है। संसार सागर में अगर कही शान्ति और आनंद का केंद्र है, तो वे आपके चरणचिन्ह ही है । हमारा श्रद्धाभरा प्रणाम आपके श्रीचरणों में स्वीकार हो।*
                 हे भगवान ! हे पवित्र पावन परमेश्वर! हमारे अंतःकरण में आप जैसी श्रद्धा भक्ति मैत्री और प्रेम जागृत हो ताकि हम आपके श्रद्धामयी गोद में बैठने का अधिकारी बन सके।
           हे प्रभु अंतःकरण में मलिन करने वाली सभी क्षुद्र भावनाओं से हम ऊपर उठ सके और काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष आदि आसुरी बृत्तिओं पर विजय पा सके।
              हे भगवन! हमारे अंदर सात्विक वृत्तियाँ जागृत हो। क्षमा, सरलता, स्थिरता, अहंकार शून्यता आदि शुभ भावनाएं हमारी संपत्ति हो। हमारा व्यक्तित्व महान और विशाल बने। 
            हे प्रभु ! आप हमारे ऊपर अपने आशीर्वाद का वरदहस्त रखिये । जिससे हमारा जीवन सदैव आपके ही चरणविन्द में समर्पित रहे। 
          *हे प्रभु! अपनी सेवा में लेकर हमें कृतार्थ करें। हे पतितपावन !यही आपसे हम सबकी प्रार्थना है, इसे स्वीकार करें।*

*ॐ शांतिः  शांतिः. शांतिः*🌹

आप कुछ नियम




परम पूज्य सुधांशुजी महारा


आप कुछ नियम बनाएँ। उन नियमों में एक नियम यह भी कि किसी को फ़ूल न दे सकें  मुस्कान तो हम जरूर देगें। किसी से बात करें तो बात की शुरुआत में मुस्कान पहले होनी चाहिए। हर बच्चे की सजावट उसकी मुस्कराहट है और इस दुनियाँ में हर फ़ूल की सजावट उसकी मुस्कराहट है। आपकी भी सजावट आपकी मुस्कराहट है तो अपनी मुस्कराहट को सजाइए। मुस्कराहट को लेकर घर से निकलिए, मुस्कराहट को लेकर घर में प्रवेश कीजिए। और देवताओं की आराधना करें तो मुस्करा कर करें और अपने गुरू को प्रणाम करें तो मुस्कान के साथ करें। अपने कर्मक्षेत्र में प्रवेश करें तो मुस्कराहट के साथ करें और जब अपने अन्न को देखें तो अन्न को भी मुस्कराकर देखिए। अपने घर भी जैसे पहली द्दर्ष्टि प्रवेश करते हुए डालते है तो मुस्कराहट की द्दर्ष्टि डालिए तो आप समझेंगे कि मनहूसियत निकलेगी और देवताओं की कृपा आपके घर में प्रवेश करेगी। 

Tuesday, June 16, 2020

*19 ऊंट की कहानी*
मजाक में मत लेना जी

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एक गाँव में एक व्यक्ति के पास 19 ऊंट थे। 

एक दिन उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी। 

मृत्यु के पश्चात वसीयत पढ़ी गयी। जिसमें लिखा था कि:

मेरे 19 ऊंटों में से आधे मेरे बेटे को,19 ऊंटों में से एक चौथाई मेरी बेटी को, और 19 ऊंटों में से पांचवाँ हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएँ।

सब लोग चक्कर में पड़ गए कि ये बँटवारा कैसे हो ?

19 ऊंटों का आधा अर्थात एक ऊँट काटना पड़ेगा, फिर तो ऊँट ही मर जायेगा। चलो एक को काट दिया तो बचे 18 उनका एक चौथाई साढ़े चार- साढ़े चार. फिर?

सब बड़ी उलझन में थे। फिर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया।

वह बुद्धिमान व्यक्ति अपने ऊँट पर चढ़ कर आया, समस्या सुनी, थोडा दिमाग लगाया, फिर बोला इन 19 ऊंटों में मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो।

सबने सोचा कि एक तो मरने वाला पागल था, जो ऐसी वसीयत कर के चला गया, और अब ये दूसरा पागल आ गया जो बोलता है कि उनमें मेरा भी ऊँट मिलाकर बाँट दो। फिर भी सब ने सोचा बात मान लेने में क्या हर्ज है।

19+1=20 हुए।

20 का आधा 10, बेटे को दे दिए।

20 का चौथाई 5, बेटी को दे दिए।

20 का पांचवाँ हिस्सा 4, नौकर को दे दिए।

10+5+4=19 

बच गया एक ऊँट, जो बुद्धिमान व्यक्ति का था...

वो उसे लेकर अपने गॉंव लौट गया।

इस तरह 1 उंट मिलाने से, बाकी 19 उंटो का बंटवारा सुख, शांति, संतोष व आनंद से हो गया।

सो हम सब के जीवन में भी 19 ऊंट होते हैं।

5 ज्ञानेंद्रियाँ
(आँख, नाक, जीभ, कान, त्वचा)

5 कर्मेन्द्रियाँ
(हाथ, पैर, जीभ, मूत्र द्वार, मलद्वार)

5 प्राण
(प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान)

और

4 अंतःकरण
(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार)

कुल 19 ऊँट होते हैं। 

सारा जीवन मनुष्य इन्हीं 19 ऊँटो के बँटवारे में उलझा रहता है।

और जब तक उसमें *मित्र* रूपी ऊँट नहीं मिलाया जाता यानी के दोस्तों के साथ.... सगे-संबंधियों के साथ जीवन नहीं जिया जाता, तब तक सुख, शांति, संतोष व आनंद की प्राप्ति नहीं हो सकती।

यह है 19 ऊंट की कहानी...सभी मित्रों को समर्पित

Wednesday, April 29, 2020

जय माता दी 

*चार पक्षियों की कथा* 

 महाभारत युद्ध का समय था । इन पक्षियों की माता दैववश युद्ध क्षेत्र में जा पहुंची । उस समय अर्जुन और भगदत्त में युद्ध छिड़ा हुआ था । 

संयोगवश अर्जुन का एक बाण उस पक्षिणी को लगा, जिससे उस का पेट फट गया और उसमें सें चार अण्डे पृथ्वी पर गिरे । 

उनकी आयु शेष थी, अत: वे फूटे नहीं । बल्कि पृथ्वी पर ऐसे गिरे, मानों रुई के ढेर पर पड़े हो । 

उन अण्डों के गिरते ही भगदत्त के हाथी के गले से एक बहुत बड़ा घंटा भी टूट कार गिरा, जिसका बंधन बाणों के आघात से कट गया था । 

यद्यपि वह अण्डों के साथ ही गिरा था, तथापि उन्हें चारों और से ढकता हुआ गिरा और धरती में थोडा-थोडा धंस भी गया । 

इस प्रकार उन अण्डों की बड़े विचित्र ढंग से रक्षा हो गयी । शास्त्रों में ठीक ही कहा है -

*अरक्षितं तिष्ठति देवरक्षितं सुरक्षितं दैवहंत विनाश्यती ।*

'दैव- भगवान् की आलौकिक शक्ति जिसकी रक्षा में नियुक्त है, उसका भला क्या बिगड़ सकता है । और जिसकी आयु शेष हो चुकी है, उसकी कितनी ही रक्षा की जाय-वह बच नहीं सकता । अस्तु;

युद्ध समाप्त हो गया । अण्डे घंटे के भीतर ही पृथ्वी का और सूर्य का ताप पाकर पाक गये और उनमें से पक्षी शावक निकल आये । 

अगले अठारह दिनों में कई जानें चली गईं। अंत में पांडवों की जीत हुई। एक बार फिर, कृष्ण अर्जुन को अपने साथ सुदूर क्षेत्र में भ्रमण करने के लिए ले गए। 

कई शव अभी भी वहाँ थे जो उनके अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहे हैं। जंग का मैदान गंभीर अंगों, सिरों , बेजान शरीरों और हाथियों से अटा पड़ा था।

कृष्ण एक निश्चित स्थान पर रुक गए और नीचे एक हाथी के गले की घंटी को विचारपूर्वक देखा।

उन्होंने अर्जुन से उस  घंटी उठाने को कहा

हालांकि अर्जुन के लिए बहुत सरल, निर्देश बहुत कम अर्थ था। आख़िरकार, विशाल मैदान में जहाँ बहुत सारी अन्य चीजों को साफ़ करने की ज़रूरत थी, कृष्ण उसे धातु के एक तुच्छ टुकड़े को हिलाने के लिए क्यों कहेंगे? उसने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसकी ओर देखा।

अर्जुन ने प्रश्न किया :- यह घंटी,"

 कृष्ण ने दोहराया। "यह वही घंटी है जो हाथी की गर्दन पर बँधी थी जो तेरे शस्त्र प्रहार से नीचे गिरी थी "

अर्जुन एक और सवाल किये बिना भारी घंटी उठाने के लिए नीचे झुका। जैसे ही उन्होंने इसे उठाया, उनकी दुनिया हमेशा के लिए बदल गई।

एक, दो, तीन, चार । चार पक्षी के चूज़े एक के बाद एक दिखाई देने लगे।

इधर दैव की प्रेरणा से एक ऋषि उधर जा निकले ।

 उन्होंने घंटे में से बच्चों कि आवाज सुनकर कौतुहल वश घंटे को उखाड़ लेने का सारा वृत्तान्त देखा और भगवान श्री कृष्ण की  आज्ञा लेकर उन बच्चों को अपने आश्रम में लाकर एक सुरक्षित स्थान में रखवा दिया । 

उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि 'यह कोई सामान्य पक्षी नहीं है । संसार में देवों का अनुकूल होना महान सौभाग्य का सूचक होता है ।' 

उन्होंने यह भी कहा कि यद्यपि किसी की रक्षा के लिए अधिक प्रयत्न की आश्यकता नहीं है- क्योंकि सभी जीव अपने कर्मों से ही मारे जाते हैं और कर्मों से ही उनकी रक्षा होती है – फिर भी मनुष्य को शुभ कार्य के लिए यत्न अवश्य करना चाहिये, क्योंकि पुरषार्थ करने वाला ( असफल होने पर भी ) निन्दा का पात्र नहीं होता । इस प्रकार उन पक्षियों के जन्मवृतान्त से बड़ी सुन्दर शिक्षा मिलाती है ।
 
* शिक्षा :- यह वृत्तान्त यह समझने के लिये काफी है कि इस कोरोना रूपी महायुद्ध हम भी उन गोरैया के शावकों की तरह जब तक घर मे है तब तक सुरक्षित है। तो घर मे रहते हुए अपने तथा इस संसार की रक्षा के लिए प्रभु से प्रार्थना करते रहे।।

Thursday, March 26, 2020

*आ ही गए हो तो नज़रे भी चुरा सकते नहीं,*
*हाथ जोड़कर करते हैं स्वागत,*
*हाथ हम मिला सकते नहीं,*
*परम्परा है अतिथियों का सत्कार करने की,*
*इसलिए नज़रे तुमसे चुरा सकते नहीं,*
*हाथ जोड़कर करते हैं स्वागत,*
*हाथ हम मिला सकते नहीं,*
*तेरे आने से देश में मायूसी सी छाई है,*
*जैसे एक आंधी, काली घटा घेर लायी है,*
*फिर भी नही डरेंगे तुमसे,*
*क्योंकि चिकित्सा पद्धति सबसे पहले भारत में ही आयी है,*
*निपटने का तुझसे हर सम्भव प्रयास जारी है,*
*तुमने तो फैला लिया अपना कहर,*
*अब निपटने की आयी तुम्हारी बारी है,*
*निकाल फेकेंगे तुझको इस देश की जड़ो से हम,*
*जैसे तुम कभी यहां आये ही न थे,*
*डॉक्टर की मेहनत से बेफिक्र हो जाएगा*
*यहां का हर एक नागरिक,*
*जैसे वो इससे कभी घबराए ही न थे,*
*डॉक्टर की मेहनत, समर्पण, और उनके इस ज़ज़्बे को में दिल से सलाम करता हूं,*
*कोई कितना भी करले अपमानित आपको,*
*पर मैं इस दुख की घड़ी में आपकी मेहनत को सत सत प्रणाम करता हूं,*
*मेरे देश पे आके तूने ए वाइरस नज़रे जो गढ़ा दी,*
*यहां तो पहले से ही थी लोगो में नजदीकियां बहुत कम,*
*तूने तो आके दूरिया और बढ़ा दी,*
*डरने लगा है आदमी-आदमी को गले लगाने से ,*
*इससे ज्यादा बुरा दृश्य इन आंखों के लिए और क्या होगा,*
*भगाएंगे तुझको यहां से ऐसे जैसे न तू यहां था न यहां होगा,*
*जो जहां है वही रुक गया है , ना कोई कही आ रहा है ना जा रहा है ,*
*तेरी वजह से कितना परेशां ये इंसा हो रहा है ,*
*कितनो की ज़िन्दगी छीन ली है तूने,*
*कितनो के घर उजाड़े है तूने,*
*चहल-पहल रहती थी जहां चारो और ,*
*सब ठिकाने तेरे कहर से हो गए हैं सूने- सूने,*
*है ईश्वर है अल्लाह इस दुख की घड़ी से बचा दुनिया को,*
*जैसे निवारण करता है कष्टो का वेसे ही निपटा दे इस महामारी को,*
*हर जनमानस की प्रतिरक्षा की शक्ति बढ़ा देना तू,*
*वाइरस के हमले से पहले,*
*वाइरस को ही मिटा देना तू !!*

Thursday, March 12, 2020

आप क्या बोलते हैं, बच्चा वो नहीं सीखता। आप क्या करते हैं और क्या घर का माहौल है, बच्चा वह सीखता है।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Sunday, March 1, 2020

ध्यान रखो


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 


ga@अगर भगवान् की कृपा है तो झोंपड़ी में भी खुशी से रहोगे , अगर कृपा नहीं है तो महल में भी दुःखी रहोगे !

अपने सर्वश्रेष्ठ

अपने सर्वश्रेष्ठ सनय को जानें और उसका उपयोग करें ।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

Saturday, February 29, 2020

Respect

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

 Respect yourself and the world will respect you.

Monday, January 6, 2020

चार गुण बहुत दुर्लभ हैं , धन में पवित्रता , दान में विनय , वीरता में दया और अधिकार में निराभिमानता ! पूज्य सुधांशुजी महाराज्

  • चार गुण बहुत दुर्लभ हैं , धन में पवित्रता , दान में विनय , वीरता में दया और अधिकार में निराभिमानता !
  • पूज्य सुधांशुजी महाराज्
  • सरों की अच्छाई

    दूसरों की अच्छाई तो देखो पर बुराई न देखो, वरना दुनियाँ हमारे लिए बुरी ही होगी।
     

    परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

    Friday, January 3, 2020

    जीवन संगीत है।




    परम पूज्य सुधांशुजी महारा


    जीवन संगीत है। सुर से बजाओगे तो बहुत अच्छा है, मधुर है और अगर सुर से भूल गए तो शोर है जीवनऔर उसको खुद भी नहीं सुन पाओगे दूसरे तो क्या सुनेगें ।

    जीवन है चुनौती । नित नई नई चुनौती बनकर सामने आती हैं । जब आप बहादुर होकर चुनौती को स्वीकार करते हैं

    तो वो कुछ न कुछ देकर ही जाएँगी, कुछ लाभ देंगी ।