WELCOME

YOU ARE WELCOME TO THIS GROUP

PLEASE VISIT U TO END OF THIS BLOG

adsense code

Tuesday, January 26, 2016

क्रोध खत्म हो जाता

 क्रोध खत्म हो जाता हैउसका घाव खत्म नहीं होता 

 


एक बालक को छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आ जाता था। उसके पिता ने कहाजब भी तुम्हें क्रोध आएघर की चारदीवारी पर एक कील ठोक देना। पहले दिन उस लड़के ने 37 कीलें ठोकीं। लेकिन कीलें देख कर उसे खुद परआश्चर्य भी हुआ कि उसे इतना क्रोध आता है।


उसके अगले दिन उसने 32 कीलें ठोकींउसके बाद 29  क्रोध आने के बाद जाकर दीवार में कील ठोकने की उस प्रक्रिया में कुछ सप्ताहों में उसने अपनेक्रोध पर काबू पाना सीख लिया और धीरे-धीरे कीलें गाड़ने की संख्या भीकम हो गई। उसे समझ आ गया कि कील ठोकने की तुलना में क्रोध पर काबू पाना आसान है। फिर एक दिन ऐसा आ गया जब उसे बिल्कुल क्रोध नहीं आयावह एक सहनशील बालक बन गया। 

उसने अत्यंत हर्षित भाव से पिता को इसके बारे में बताया। तब पिता ने सुझाव दिया कि अब वह प्रतिदिन एक-एक कील दीवार से बाहर निकाले,क्योंकि अब उसे अपने आप पर पूरा नियंत्रण हो गया है। इस तरह कुछ दिन बीते और एक दिन उसने खुश हो कर पिता को जा कर बताया कि सब कीलें निकाल दी गई हैं। 

पिता अपने बेटे का हाथ पकड़ कर दीवार के पास वापस ले गया। फिर कहातुमने बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन यह देखोकील निकालने के बाद भी गड्ढे बचे हुए हैं। कील ठोकने से जो नुकसान होना थावह हो चुका। दीवार अब कभी भी अपनी पहली वाली साफ-सुथरी स्थिति में नहीं आ सकती। उसने बेटे को समझायाइसी तरह जब हम किसी को क्रोध केआवेश में कुछ अनाप-शनाप कहते हैंतो दूसरों के मर्मस्थलों को घायल करदेते हैं। उसके बाद सुलह-सफाई हो भी जाएतो उसके निशान रह जाते हैं। तुम किसी व्यक्ति को पहले तो घाव दे दो और फिर बार-बार 'सॉरीकहो भी तो घाव के निशान जाएंगे नहींवे बने रहेंगे। 

हमारे शास्त्रों में एक नीति वाक्य हैजिसने क्रोध की अग्नि अपने हृदय मेंप्रज्ज्वलित कर रखी हैउसे चिता से क्या प्रयोजनअर्थात वह तो बिना चिता के ही जल जाएगा। ऐसी महाव्याधि से दूर रहना ही कल्याणकारी है। क्रोध बुद्धि की विनाशकारी स्थिति है। वास्तव में क्रोधघृणानिंदाईर्ष्या- ये वे भावनाएं हैं जिनसे मनुष्य की तर्कशक्ति नष्ट हो जाती है। क्रोध को तो यमराज कहा गया है। 

पुत्र ने पिता की आज्ञा नहीं मानीपिता को क्रोध आ गया। पत्नी ने आपकीमर्जी की दाल-सब्जी नहीं बनाईतो आपको क्रोध आ गया। आप समझते हैं कि हर काम आपकी मर्जी से ही होना चाहिए। कई बार हमारे विचार दूसरों से मेल नहीं खातेतो मतभेद हो जाता हैशत्रु बन जाते हैं। हम समझते हैं कि लोगों को हमारे अनुसार ही चलना चाहिए। 

इसी तरह जब हम यह मानने लगते हैं कि जो कुछ हम जानते हैंवह ठीक है। तब भी संघर्ष और क्रोध के अवसर आते हैं। वैज्ञानिक लोग किसी एकबात का जीवन भर अनुसंधान करते हैं। कोई सिद्धांत निर्धारित करते हैं,किंतु यदि उन्हें अपने मन में संदेह हुआ तो बिना सालों के परिश्रम काख्याल किए तुरंत अपना मत बदल भी देते हैं। ज्ञान का समुद्र अथाह है। जो यह सोचता है कि मैं जो जानता हूंवही पूर्ण सत्य हैवह अंधेरे में भटक रहा है। 

जो खुद को मालिक मानता हैकर्ता समझता हैअहंकार करता हैउसे हीक्रोध आएगाजो अपने को सेवक स्वरूप जानता हैवह किसी पर क्रोध क्योंकरेगाइसलिए हमें प्रतिदिन एकांत में बैठकर कुछ देर शांतिपूर्वक अपनीवास्तविक स्थिति के बारे में सोचना चाहिए। हमें इतना अधिकार किसी ने नहीं दिया कि सभी बातों में हम अपनी ही मर्जी चलाएं। हम भी उतना हीअधिकार रखते हैंजितना दूसरे। फिर जब हम दूसरे से प्रतिकूल विचार रखते हैंतो दूसरों को भी वैसा करने का अधिकार क्यों नहीं है?

 

No comments:

Post a Comment