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Monday, October 5, 2015

एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया

 एक दोस्त हलवाई की दुकान पर मिल गया ।    मुझसे कहा- 'आज माँ का श्राद्ध है, माँ को लड्डू बहुत पसन्द है, इसलिए लड्डू लेने आया हूँ '    मैं आश्चर्य में पड़ गया ।  अभी पाँच मिनिट पहले तो मैं उसकी माँ से सब्जी मंडी में मिला था ।    मैं कुछ और कहता उससे पहले ही खुद उसकी माँ हाथ में झोला लिए वहाँ आ पहुँची ।    मैंने दोस्त की पीठ पर मारते हुए कहा- 'भले आदमी ये क्या मजाक है ?  माँजी तो यह रही तेरे पास !    दोस्त अपनी माँ के दोनों कंधों पर हाथ रखकर हँसकर बोला, ‍'भई, बात यूँ है कि मृत्यु के बाद गाय-कौवे की थाली में लड्डू रखने से अच्छा है कि माँ की थाली में लड्डू परोसकर उसे जीते-जी तृप्त करूँ ।    मैं मानता हूँ कि जीते जी माता-पिता को हर हाल में खुश रखना ही सच्चा श्राद्ध है ।    आगे उसने कहा, 'माँ को मिठाई,  सफेद जामुन, आम आदि पसंद है ।  मैं वह सब उन्हें खिलाता हूँ ।    श्रद्धालु मंदिर में जाकर अगरबत्ती जलाते हैं । मैं मंदिर नहीं जाता हूँ, पर माँ के सोने के कमरे में कछुआ छाप अगरबत्ती लगा देता हूँ ।    सुबह जब माँ गीता पढ़ने बैठती है तो माँ का चश्मा साफ कर के देता हूँ । मुझे लगता है कि ईश्वर के फोटो व मूर्ति आदि साफ करने से ज्यादा पुण्य  माँ का चश्मा साफ करके मिलता है ।    यह बात श्रद्धालुओं को चुभ सकती है पर बात खरी है ।  हम बुजुर्गों के मरने के बाद उनका श्राद्ध करते हैं ।  पंडितों को खीर-पुरी खिलाते हैं ।  रस्मों के चलते हम यह सब कर लेते है, पर याद रखिए कि गाय-कौए को खिलाया ऊपर पहुँचता है या नहीं, यह किसे पता ।    अमेरिका या जापान में भी अभी तक स्वर्ग के लिए कोई टिफिन सेवा शुरू नही हुई है ।  माता-पिता को जीते-जी ही सारे सुख देना वास्तविक श्राद्ध है ॥    🙏🙏🙏    मन को छुये तो आगे भेज देना , वर्ना कचरे में पटक देना  !  आपकी मर्जी ......

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