Anjana Om Kashyap
और मैं मन ही मन पैसों का हिसाब लगाने लगा था। सब्जी भी खरीदनी थी। दवा लेने के बाद जो पैसे
बचे थे, उसमें एक वक्त की सब्जी हीआ सकती थी। बहुत देर सोच-विचार के बाद, मैंने एक सेब
तुलवा ही लिया था– पत्नी के लिए।
बच्ची पढ़ रही थी, "ए फॉर ऐप्पिल... ऐप्पिल माने सेब..."
"पापा, सेब भी बीमाल लोग खाते हैं?... जैसे मम्मी?..."
बच्ची के इस प्रश्न का जवाब मुझसेनहीं बन पड़ा। बस, बच्ची के चेहरे की ओर अपलक
देखता रह गया था।
बच्ची ने किताब में बने सेब के लाल रंग के चित्र को हसरत-भरी नज़रों से देखते हुए पूछा, "मैं कब
बीमाल होऊँगी, पापा?
बचे थे, उसमें एक वक्त की सब्जी हीआ सकती थी। बहुत देर सोच-विचार के बाद, मैंने एक सेब
तुलवा ही लिया था– पत्नी के लिए।
बच्ची पढ़ रही थी, "ए फॉर ऐप्पिल... ऐप्पिल माने सेब..."
"पापा, सेब भी बीमाल लोग खाते हैं?... जैसे मम्मी?..."
बच्ची के इस प्रश्न का जवाब मुझसेनहीं बन पड़ा। बस, बच्ची के चेहरे की ओर अपलक
देखता रह गया था।
बच्ची ने किताब में बने सेब के लाल रंग के चित्र को हसरत-भरी नज़रों से देखते हुए पूछा, "मैं कब
बीमाल होऊँगी, पापा?
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