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Sunday, December 29, 2013

Fwd: [AMRIT VANI ] sangrah ke rog se




Subject: [AMRIT VANI ] sangrah ke rog se






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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to AMRIT VANI at 12/29/2013 09:41:00 AM

Friday, December 27, 2013

जो ख़ुशी

हरिओम

आज का गुरु संदेश

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज
आपके पास जो ख़ुशी है उसे बाँटना शुरू करो ,जिससे वह कई गुना होकर आप तक पहुंचे !

Thursday, December 26, 2013

Fwd: समय पर



---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>
Date: 2013/12/26
Subject: समय पर
To:


समय पर काम करना सीखो और प्राथमिकता को महत्व दो कौन सा काम पहले करना है।

Wednesday, December 25, 2013

Fwd: [AMRIT VANI ] ऐसा करने से



---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga@gmail.com>
Date: 2013/3/27
Subject: [AMRIT VANI ] ऐसा करने से
To: mggarga@gmail.com





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Madan Gopal Garga LM VJM द्वारा AMRIT VANI के लिए 3/27/2013 09:52:00 am को पोस्ट किया गया

Fwd: [AMRIT VANI ] sachchi sampada



---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga@gmail.com>
Date: Wed, Dec 25, 2013 at 10:20 AM
Subject: [AMRIT VANI ] sachchi sampada
To: mggarga@gmail.com





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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to AMRIT VANI at 12/25/2013 10:20:00 AM

Fwd: [AMRIT VANI ] parmatmaa ka sandesh



---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga@gmail.com>
Date: Wed, Dec 25, 2013 at 10:23 AM
Subject: [AMRIT VANI ] parmatmaa ka sandesh
To: mggarga@gmail.com





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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to AMRIT VANI at 12/25/2013 10:23:00 AM

Wednesday, December 18, 2013

Fwd: [AMRIT VANI ] मन की शान्ति के लिए


Subject: [AMRIT VANI ] मन की शान्ति के लिए


हरिओम
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मन की शान्ति के लिए 




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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to AMRIT VANI at 12/18/2013 07:40:00 PM

Fwd: [COLLECTION OF AMRITVANY] Fwd: [AAJKAA VICHAR] life is like



---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga312@gmail.com>
Date: Tue, Dec 17, 2013 at 5:41 PM
Subject: [COLLECTION OF AMRITVANY] Fwd: [AAJKAA VICHAR] life is like
To: mggarga1932@gmail.com




---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga312@gmail.com>
Date: 15 December 2013 11:53
Subject: [AAJKAA VICHAR] life is like
To: mggarga312@gmail.com



santosh modi


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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to AAJKAA VICHAR at 12/15/2013 11:53:00 AM



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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to COLLECTION OF AMRITVANY at 12/17/2013 05:41:00 PM

Fwd: [COLLECTION OF AMRITVANY] Fwd: [AAJKAA VICHAR] life is like



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From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga312@gmail.com>
Date: Tue, Dec 17, 2013 at 5:41 PM
Subject: [COLLECTION OF AMRITVANY] Fwd: [AAJKAA VICHAR] life is like
To: mggarga1932@gmail.com




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From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga312@gmail.com>
Date: 15 December 2013 11:53
Subject: [AAJKAA VICHAR] life is like
To: mggarga312@gmail.com



santosh modi


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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to AAJKAA VICHAR at 12/15/2013 11:53:00 AM



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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to COLLECTION OF AMRITVANY at 12/17/2013 05:41:00 PM

Sunday, December 8, 2013

Fwd: [Vardanlok Ashram (Mumbai)] ईश्वर की तरफ से शिकायत:





Shubham Verma
ईश्वर की तरफ से शिकायत:

मेरे प्रिय...
सुबह तुम जैसे ही सो कर उठे, मैं तुम्हारे बिस्तर के पास ही खड़ा था। मुझे लगा कि तुम मुझसे कुछ बात
करोगे।

तुम कल या पिछले हफ्ते हुई किसी बात
या घटना के लिये मुझे धन्यवाद कहोगे।

लेकिन तुम फटाफट चाय पी कर तैयार होने चले गए और मेरी तरफ देखा भी नहीं!!!

फिर मैंने सोचा कि तुम
नहा के मुझे याद करोगे।
पर तुम इस उधेड़बुन में लग गये कि तुम्हे आज कौन से कपड़े पहनने है!!!

फिर जब तुम जल्दी से नाश्ता कर रहे थे और अपने ऑफिस के
कागज़ इक्कठे करने के लिये घर में इधर से उधर दौड़ रहे थे...तो भी मुझे लगा कि शायद अब तुम्हे मेरा ध्यान आयेगा,लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

फिर जब तुमने आफिस जाने के लिए ट्रेन पकड़ी तो मैं समझा कि इस खाली समय का उपयोग
तुम मुझसे बातचीत करने में करोगे पर तुमने थोड़ी देर पेपर पढ़ा और फिर खेलने लग गए अपने मोबाइल में और मैं खड़ा का खड़ा ही रह गया।

मैं तुम्हें बताना चाहता था कि दिन का कुछ
हिस्सा मेरे साथ बिता कर तो देखो,तुम्हारे काम और भी अच्छी तरह से होने लगेंगे, लेकिन तुमनें मुझसे बात ही नहीं की...

एक मौका ऐसा भी आया जब तुम बिलकुल खाली थे और कुर्सी पर पूरे 15 मिनट यूं ही बैठे रहे,लेकिन तब भी तुम्हें मेरा ध्यान नहीं आया। दोपहर के खाने के वक्त जब तुम इधर- उधर देख रहे थे,तो भी मुझे लगा कि खाना खाने से
पहले तुम एक पल के लिये मेरे बारे में सोचोंगे,

लेकिन
ऐसा नहीं हुआ।
दिन का अब भी काफी समय बचा था। मुझे
लगा कि शायद इस बचे समय में हमारी बात
हो जायेगी,लेकिन घर पहुँचने के बाद तुम
रोज़मर्रा के कामों में व्यस्त हो गये।

जब वे काम निबट गये तो तुमनें टीवी खोल
लिया और घंटो टीवी देखते रहे। देर रात थककर तुम बिस्तर पर आ लेटे। तुमनें अपनी पत्नी, बच्चों को शुभरात्रि कहा और चुपचाप चादर ओढ़कर
सो गये।

मेरा बड़ा मन था कि मैं
भी तुम्हारी दिनचर्या का हिस्सा बनूं...
तुम्हारे
साथ कुछ वक्त बिताऊँ...
तुम्हारी कुछ सुनूं...
तुम्हे कुछ सुनाऊँ।

कुछ मार्गदर्शन करूँ तुम्हारा ताकि तुम्हें
समझ आए कि तुम किसलिए इस धरती पर आए हो और किन कामों में उलझ गए हो, लेकिन तुम्हें समय ही नहीं मिला और मैं मन मार कर ही रह गया।

मैं तुमसे बहुत प्रेम करता हूँ।

हर रोज़ मैं इस बात
का इंतज़ार करता हूँ कि तुम मेरा ध्यान करोगे और अपनी छोटी छोटी खुशियों के लिए मेरा धन्यवाद करोगे। पर तुम तब ही आते हो जब तुम्हें कुछ चाहिए होता है। तुम जल्दी में आते हो और अपनी माँगें मेरे
आगे रख के चले जाते हो।और मजे की बात तो ये है

कि इस प्रक्रिया में तुम मेरी तरफ देखते भी नहीं। ध्यान तुम्हारा उस समय भी लोगों की तरफ ही लगा रहता है,और मैं इंतज़ार करता ही रह जाता हूँ।
खैर कोई बात नहीं...

हो सकता है कल तुम्हें
मेरी याद आ जाये!!!
ऐसा मुझे विश्वास है और मुझे तुम में आस्था है।

आखिरकार मेरा दूसरा नाम...

आस्था और विश्वास ही तो है।
.
.
.
तुम्हारा
ईश्वर...



Sunday, November 24, 2013

chees kho gai hai

एक बार किसी गाँव में एक बुढ़िया रात के अँधेरे में अपनी झोपडी के बहार कुछ खोज रही थी .तभी गाँव के ही एक व्यक्ति की नजर उस पर पड़ी , "अम्मा इतनी रात में रोड लाइट के नीचे क्या ढूंढ रही हो ?" , व्यक्ति ने पूछा.

" कुछ नहीं मेरी सुई गम हो गयी है बस वही खोज रही हूँ .", बुढ़िया ने उत्तर दिया.

फिर क्या था, वो व्यक्ति भी महिला की मदद करने के लिए रुक गया और साथ में सुई खोजने लगा. कुछ देर में और भी लोग इस खोज अभियान में शामिल हो गए और देखते- देखते लगभग पूरा गाँव ही इकठ्ठा हो गया.

सभी बड़े ध्यान से सुई खोजने में लगे हुए थे कि तभी किसी ने बुढ़िया से पूछा ," अरे अम्मा ! ज़रा ये तो बताओ कि सुई गिरी कहाँ थी?"

" बेटा , सुई तो झोपड़ी के अन्दर गिरी थी .", बुढ़िया ने ज़वाब दिया .

ये सुनते ही सभी बड़े क्रोधित हो गए और भीड़ में से किसी ने ऊँची आवाज में कहा , " कमाल करती हो अम्मा ,हम इतनी देर से सुई यहाँ ढूंढ रहे हैं जबकि सुई अन्दर झोपड़े में गिरी थी , आखिर सुई वहां खोजने की बजाये यहाँ बाहर क्यों खोज रही हो ?"

" क्योंकि रोड पर लाइट जल रही है…इसलिए .", बुढ़िया बोली.

मित्रों, शायद ऐसा ही आज के युवा अपने भविष्य को लेकर सोचते हैं कि लाइट कहाँ जल रही है वो ये नहीं सोचते कि हमारा दिल क्या कह रहा है ; हमारी सुई कहाँ गिरी है . हमें चाहिए कि हम ये जानने की कोशिश करें कि हम किस फील्ड में अच्छा कर सकते हैं और उसी में अपना करीयर बनाएं ना कि भेड़ चाल चलते हुए किसी ऐसी फील्ड में घुस जाएं जिसमे बाकी लोग जा रहे हों या जिसमे हमें अधिक पैसा नज़र आ रहा हो .

Monday, November 18, 2013

A Lovely Story

A Lovely Story from my inbox and will share it here....
STRESS AND TENSION.... 
A group of friends visited their old university professor. Conversation soon turned to complaints about 'STRESS' & 'TENSION' in life.
Professor offered them coffee & returned from kitchen with coffee in different kinds of cups (glass cups, crystal cups, shining ones, some plain looking, some ordinary n some expensive ones. 

When all of them had a cup in hand, the professor said:.
"If U noticed, all the nice looking & expensive cups are taken up, leavng-behind the ordinary ones. Everyone of U wanted the best CUPS, & that is the source of Ur STRESS & TENSION. What U really wanted was "coffee", not the "cup", but U still went for the best cup. If life is coffee,
then jobs,money ,status & love etc are the cups. They are just TOOLS to hold and contain life
Don't let the CUPS drive U. 
Enjoy the COFFEE..

Monday, November 4, 2013

Fwd: अमृत कथा का आज का अमृत -4 -11-13-सुनने

Subject: अमृत कथा का आज का अमृत -4 -11-13-सुनने

हरिओम

जिन का आज जन्म दिन है या शादी की वर्ष गाँठ हे उन सबको शुभ आशीर्वाद 

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अमृत कथा का आज का अमृत -4  -11-13-सुनने


सुनने की आदत डालो सुनाने की नहीं !

Thursday, September 26, 2013

Fwd: [GURUMATA RICHA SUDHANSHUJI] Fwd: [GURU VATIKA SE CHUNE PHOOL] आज का गुरु सन्देश-25 -09-13-शनि का प्रकोप बचने का उपाए





Subject: ] आज का गुरु सन्देश-25 -09-13-शनि का प्रकोप बचने का उपाए



परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

http://ammritvanni.blogspot.in/2013/09/25-09-13.html

AMRIT VANI : आज का गुरु सन्देश-25 -09-13-शनि का प्रकोप बचने का उपाए


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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to GURU VATIKA SE CHUNE PHOOL at 9/26/2013 09:22:00 AM



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Posted By Madan Gopal Garga LM VJM to GURUMATA RICHA SUDHANSHUJI at 9/26/2013 10:26:00 AM

Wednesday, September 25, 2013

Fwd: दुनियाँ में चाहे कोई


दुनियाँ में चाहे कोई कितना भी समर्थ हें या असमर्थ हें, निर्बल या बलशाली हें, हर एक को 

परिश्रम करना पड़ेगा,अगर वह सफलता प्राप्त करना चाहता हें

    

 
 परम पूज्य सुधांशुजी महाराज
 
 


 







Monday, June 24, 2013

Tiket Denpasar Bali - Jakarta

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Sunday, June 23, 2013

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Sunday, June 16, 2013

जेडीयू और भाजपा

मुझे एक कहानी याद आ रही है :-
एक बकरी का बच्चा मेमना और भेडिया  पानी पी रहे थे एक झरने पर !भेडिया झरने के ऊपर था और मेमना नीचे !

भेडिये को लडना था  इसलिए बोला ऐ  मेमने तू मेरा पानी क्यों झूटा कर रहा है !

मेमना बोला महाराज मैं नीचे हूँ और आप ऊपर मैं आप का झूंटा पानी पी रहा  हूँ !

भेडिया चिढ  कर बोला ठीक है ठीक है अच्छा यह बता तूने ५ साल पहले गाली क्यों दी थी !

मेमने ने कहा महाराज मैं  तो पैदा ही एक साल पहले  हुआ था तो ५ साल पहले  आपको गाली कैसे देता ?

भेडिया फिर चिढ  कर बोला ज्यादा सयाना मत बन भाग यहाँ से नहीं तो में तुझे खा जाऊंगा !

मेमना बिचार भाग गया !

यही हाल जेडीयू ने किया और कहा मोदी को चेअरमैन क्यों बनाया बीजेपी ने कहा हमने तो अपनी पार्टी का बनाया है उससे तुम्हारा क्या मतलब !

जेडीयू बोली नहीं तुम बाद मैं प्रधान मंत्री बना दोगे !

बीजेपी ने कहा नहीं यह तो सरकार बनाने के वख्त सब मिल कर तै करेंगे !

जेडीयू बोली नहीं हम तुम से नाता तोडते है क्योंकि तुम्हारे मन मई मोदी को प्रधान मंत्री बनाने का है !

और एण्डॆऎ से अलग हो गयी जेडीयू !

अब बिचारी बीजेपी क्या कहती !




Tuesday, June 11, 2013

Info Tiket pesawat murah

Harga tiket pesawat Jakarta (CGK) - (MES) Medan Juni 2013
tiket pesawat jakarta - medan
i+2013.jpg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">tiket pesawat jakarta - medan




Penerbangan untuk rute Jakarta - Medan adalah:

 AirAsia
Nomor penerbangan: QZ8063   QZ8097   QZ8099


 Citilink Airlines
Nomor penerbangan: QG830   QG832   QG834


 Garuda Indonesia
Nomor penerbangan: GA0142   GA0180   GA0182   GA0184   GA0186   GA0188   GA0190   GA0192   GA0196


 Lion air

Nomor penerbangan: JT200   JT201   JT202   JT203   JT204   JT205   JT206   JT207   JT208   JT209   JT210   JT211   JT212   JT214   JT215   JT218   JT219   JT294   JT295   JT300   JT301   JT302   JT303   JT305   JT306   JT309   JT380   JT381   JT382   JT383   JT384   JT385   JT386   JT387   JT394   JT395   JT396   JT397   JT398   JT399


 Mandala
Nomor penerbangan: RI92   RI96


 Sriwijaya Air
Nomor penerbangan: SJ010   SJ014   SJ020   SJ563   SJ565   SJ567   SJ571  

Saturday, June 8, 2013

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Thursday, June 6, 2013

सेब

Anjana Om Kashyap
और मैं मन ही मन पैसों का हिसाब लगाने लगा था। सब्जी भी खरीदनी थी। दवा लेने के बाद जो पैसे
बचे थे, उसमें एक वक्त की सब्जी हीआ सकती थी। बहुत देर सोच-विचार के बाद, मैंने एक सेब
तुलवा ही लिया था– पत्नी के लिए।
बच्ची पढ़ रही थी, "ए फॉर ऐप्पिल... ऐप्पिल माने सेब..."
"पापा, सेब भी बीमाल लोग खाते हैं?... जैसे मम्मी?..."
बच्ची के इस प्रश्न का जवाब मुझसेनहीं बन पड़ा। बस, बच्ची के चेहरे की ओर अपलक
देखता रह गया था।
बच्ची ने किताब में बने सेब के लाल रंग के चित्र को हसरत-भरी नज़रों से देखते हुए पूछा, "मैं कब
बीमाल होऊँगी, पापा?

 

Saturday, May 18, 2013

new eyes

18 साल का लड़का ट्रेन में खिड़की के पास
वाली सीट पर बैठा था. अचानक
वो ख़ुशी में
जोर से चिल्लाया "पिताजी"
वो देखो, पेड़
पीछे जा रहा हैं".
.
उसके पिता ने स्नेह से
उसके सर पर हाँथ फिराया.
वो लड़का फिर
चिल्लाया" पिताजी वो देखो, आसमान में
बादल भी ट्रेन के साथ साथ चल रहे हैं".
.
पिता की आँखों से आंसू निकल गए. पास
बैठा आदमी ये सब देख रहा था. उसने
कहा इतना बड़ा होने के बाद
भी आपका लड़का बच्चो जैसी हरकते कर
रहा हैं. आप इसको किसी अच्छे डॉक्टर से
क्यों नहीं दिखाते??
.
पिता ने
कहा की हम लोग डॉक्टर के पास से ही आ
रहे
हैं.
मेरा बेटा जन्म से अँधा था, आज
ही उसको नयी आँखे मिली हैं

# नेत्रदान महादान
 

Wednesday, May 15, 2013

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Monday, April 1, 2013

Wednesday, March 13, 2013

आशीर्वाद का अर्थ





Rajesh Gambhir
आशीर्वाद का अर्थ
एक बार राजा विक्रमादित्य आचार्य सिद्धसेन सूरि के दर्शनार्थ गए। दोनों में कई विषयों पर चर्चा हुई। राजा के मन में जो भी जिज्ञासाएं थीं, उन्होंने आचार्य के समक्ष रखीं। दोनों एक-दूसरे से मिलकर बहुत खुश थे। राजा को भी शुरू में संकोच था कि पता नहीं आचार्य कैसे होंगे। पर वह उनकी सरलता से बेहद प्रभावित हुए। उनकी बातों से राजा का मन हल्का हो गया था।

चलते समय जब विक्रमादित्य ने प्रणाम किया तो आचार्य ने धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया। इस आशीर्वाद में भी राजा को नएपन का अहसास हुआ। वह पहले भी कई संत-महात्माओं से मिल आए थे पर किसी ने उन्हें यह आशीर्वाद नहीं दिया था। राजा ने पूछ ही लिया-गुरुदेव क्षमा करें, एक जिज्ञासा है। आपने यह कैसा आशीर्वाद मुझे दिया है।

अन्य साधु-संत तो आयुष्मान भव, पुत्रवान भव या धनवान भव का आशीर्वाद देते हैं पर आपने तो धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया है...। यह सुनकर आचार्य मुस्कराए और बोले- राजन्, दीर्घ जीवन का आशीर्वाद क्या दिया जाए। दीर्घ जीवन जीने वाले तो बहुत से जीव होते हैं जैसे हाथी, कछुआ। पुत्रवान भव का भी क्या मतलब है। कुत्ते, सुअर आदि सभी संतान पैदा करते हैं। और धनवान बनने के लिए भी क्या कहूं। पापियों और अन्यायियों के पास भी अपार संपत्ति होती है। किंतु धर्म लाभ तो भाग्यशाली लोग ही कर पाते हैं। और जो धर्मलाभ करते हैं वे दूसरों के जीवन को भी बदलने में सक्षम होते हैं। इसलिए मैंने आपको धर्म लाभ का आशीर्वाद दिया है। राजा उनके प्रति नतमस्तक हो गए।



Tuesday, March 12, 2013

संत का जवाब





Rajesh Gambhir
संत का जवाब
एक दिन एक व्यक्ति ने संत रामदास से पूछा, 'महाराज, आप इतनी अच्छी-अच्छी बातें कहते हैं। यह बताइए, आपके मन में कभी कोई विकार नहीं आता?' संत रामदास ने कहा, 'सुनो भाई, तुम्हारे इस प्रश्न का उत्तर तो मैं बाद में दूंगा। परंतु आज से ठीक एक महीने बाद इसी समय तुम्हारी मृत्यु होने वाली है। यह सुन कर उस व्यक्ति के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। वह थर-थर कांपने लगा।

सोचने लगा- मेरी मृत्यु! आज से एक महीने बाद! अब क्या होगा? वह जैसे-तैसे घर पहुंचा। घरवालों को संत रामदास की भविष्यवाणी के बारे में बता कर बोला, 'अब मेरा अंत समय आ गया है। घर की सारी व्यवस्था आप लोग संभालिए।' घर के सभी लोग स्तब्ध रह गए। रामदास जैसे पहुंचे हुए संत की भविष्यवाणी झूठ तो हो नहीं सकती। उस व्यक्ति को इतनी ठेस लगी कि वह बिस्तर पर पड़ गया। एक-एक दिन गिनने लगा।

ज्यों-ज्यों दिन बीतते उसकी वेदना और बढ़ती जाती। आखिर एक माह पूरा हुआ। मृत्यु का वो दिन आ ही गया। लोगों की भीड़ जमा हो गई। सब हैरान, परेशान। इतने में संत रामदास भी आ गए। भीड़ देख कर बोले,' यह सब क्या हो रहा है?' उस व्यक्ति ने बड़ी कठिनाई से बोलते हुए कहा, 'आपने ही तो कहा था कि आज मेरी मृत्यु का दिन है।' संत रामदास ने पूछा, 'पहले यह बताओ कि इस एक महीने में तुम्हारे मन में कोई विकार आया?'

उस व्यक्ति ने कहा, 'विकार! स्वामी जी मेरे सामने तो हर समय मौत खड़ी रही। विकार कहां से आता?' संत रामदास ने कहा, 'तुम्हारी मौत-वौत कुछ नहीं आने वाली। अरे पगले, मैंने तो तुम्हारे सवाल का जवाब दिया था। तुम्हारे सामने मौत रही, उसी तरह मेरे सामने ईश्वर रहता है। फिर मेरे मन में विकार कैसे आएगा?' उस व्यक्ति ने राहत की सांस ली। उसने अपना जवाब पा लिया और मृत्यु के भय से छुटकारा भी।



Tuesday, March 5, 2013

दत्तात्रेय जी के 24 गुरू




Chandan Kumar Nandy
दत्तात्रेय जी के 24 गुरू
दत्तात्रेय जी ने अपने 24 गुरूओं की कथा सुनाई और कहा कि मेरी दृष्टि जहाँ भी गई, मैंने वहीं से शिक्षा ग्रहण की|
दत्तात्रेय जी का प्रथम गुरू पृथ्वी है| पृथ्वी से मैंने उपकार और सहनशीलता ग्रहण की| पृथ्वी में यदि कोई एक दाना डाले तो वह अनंत में परिवर्तित हो जाता है| यही पृथ्वी का उपकार है| पृथ्वी के ऊपर कोई कुछ भी फेंके (कूड़ा, कचरा इत्यादि) फिर भी पृथ्वी सबको धारण करती है| यह पृथ्वी की सहनशीलता है| व्यक्ति को उपकारी एवं सहनशील होना चाहिए। पृथ्वी का एक नाम क्षमा भी है| क्षमाशील व्यक्ति प्रभु को बहुत प्रिय है|
दत्तात्रेय जी के द्वितीय गुरू वायु है| वायु का अपना कोई गन्ध नहीं है| उसको जैसा संसर्ग मिले, वह वही गुण ग्रहण कर लेती है| वायु यदि उपवन में चले तो खुशबू ग्रहण देती है और यदि नाली के पास हो तो बदबू देती है| जैसे कि अच्छे लोगों के मिलने से सुगन्ध आती है| जीवन में संग का असर अवश्य पड़ता है| अतः साधक को नित्य सत्संग में रहना चाहिए।
तृतीय गुरू आकाश है| आकाश सर्वव्यापक है| कोई भी जगह आकाश के बिना अर्थात् खाली नहीं है| इसी प्रकार आत्मा भी सर्वव्यापक हैं| चतुर्थ गुरू जल है| जल का कोई आकार नहीं होता| यह 0'c होता है| इसका तापमान बदलने से वाष्प, बर्फ इत्यादि का रूप बन जाता है| इसी प्रकार भक्तों की भक्ति की शीतलता से निराकार परमात्मा भी आकार ग्रहण कर लेता है|
पंचम गुरू अग्नि है| जिस प्रकार से अग्नि को किसी भी चीज का संसर्ग हो तो वह सबको भस्म कर देती है, उसी प्रकार से ज्ञान की अग्नि भी जीवन के सभी कर्म-समूह को भस्म कर देती है| षष्ठम गुरू चन्द्रमा है| चन्द्रमा सबको शीतलता देता है| चन्द्रमा की कलाएँ शुक्ल-पक्ष और कृष्ण-पक्ष के अनुसार घटती-बढ़ती रहती हैं, लेकिन इस घटने-बढ़ने का चन्द्रमा पर कोई प्रभाव नहीं होता| उसी प्रकार आत्मा भी विभिन्न शरीर धारण करती है लेकिन उन शरीरों की अवस्थायें परिवर्तित होने से आत्मा पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता| सप्तम गुरू सूर्य है| सूर्य की प्रखर किरणें समुद्र पर पड़ती हैं, वही किरणें समुद्र का खारा पानी ग्रहण करती हैं और उस खारे पानी को मेघ बना कर अर्थात् मीठा जल बना कर पृथ्वी पर बरसाती हैं| इससे शिक्षा मिलती है कि कटुवचन सुनकर भी मीठे वचन ही बोलने चाहिए|
अष्टम गुरू कबूतर है| कबूतर ने मोह के कारण अपने बच्चे और कबूतरी के पीछे-पीछे बहेलिया के जाल में फँसकर, अपने प्राण त्याग दिए| इसी प्रकार मनुष्य भी अपने परिवार और बच्चों के मोह में फँसकर जीवन व्यर्थ गँवा देता है| भगवान का भजन नहीं करता| मोह सर्वनाशक होता है।
नवम गुरू अजगर है| मनुष्य को अजगर के समान जो भी रूखा-सूखा मिले, उसे प्रारब्ध-वश मानकर स्वीकार करें| उदासीन रहे और निरंतर प्रभु का भजन करे| मनुष्य के अन्दर अजगर की तरह मनोबल, इन्द्रियबल और देहबल तीनों ही होते हैं| अतः सन्यासी को अजगर की तरह ही रहना चाहिए|
अजगर करे न चाकरी पंछी करे न काम। दास 'मलुका' कह गये सबके दाता राम।।
अजगर से संतोष की शिक्षा मिलती है| यदि जीवन में संतोष रूपी धन आ गया (जब आवै संतोष धन, सब धन धूरि समान) तो सब धन बेकार है| प्रभु ने हमें जो भी दिया है वह हमारी योग्यता से नहीं बल्कि अपनी कृपा से दिया है| चाहे वह मणिमाला ही क्यों न हो| मनुष्य की तृष्णा कभी भी नहीं मिटती, उसका पेट कभी नहीं भरता| मनुष्य दूसरे के सुख को देखकर दुःखी होता है, अपने दुःख से दुःखी नहीं होता, यही सबसे बड़ी दरिद्रता है|
दसवाँ गुरू सिन्धु (समुद्र) है| साधक को समुद्र की भाँति अथाह, अपार, असीम होना चाहिए और सदैव गम्भीर व प्रसन्न रहना चाहिए जैसे कि समुद्र में इतनी नदियों का जल आता है, परंतु समुद्र सबको प्रसन्नता व गम्भीरता से ग्रहण करता है| न तो किसी की उपेक्षा ही करता है और न ही किसी की इच्छा(कामना) ही करता है| हमें भी जो मिलता है, ईश्वर कृपा मानकर, प्रेम से स्वीकार करना चाहिए| मनुष्य के अन्दर शांति आनी चाहिए परंतु अहंकार नहीं होना चाहिए कि मेरे पास इतना कुछ है (बड़ा योगी हूँ, साधक, भक्त इत्यादि हूँ)| ग्यारहवाँ गुरू पतिंगा है| जिस प्रकार से पतंगा अग्नि के रूप पर आसक्त होकर भस्म हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य भी रूप की आसक्ति में फँस कर जीवन नष्ट कर देता है| रूपासक्ति भक्ति में बाधक है| सुन्दर संसार नहीं, संसार के अधिष्ठाता सुन्दर हैं| ऐसी एक कथा आती है कि ब्रह्मा जी जब सृष्टि रचने लगे तब ब्रह्मा जी के मन में आया कि सुन्दरता के बिना सृष्टि में आकर्षण भी नहीं होता| इसीलिये ब्रह्मा जी ने भी, सृष्टि रचने के लिये, भगवान से सुन्दरता माँगी थी| भगवान ने कहा कि "एक तिनका समुद्र में डाल देना| उस तिनके को समुद्र से निकालने पर उसके ऊपर जितने बिन्दु हों, उसी सिन्धु के बिन्दु की सुन्दरता से सृष्टि की रचना करना|" सुन्दरता कभी समाप्त नहीं होगी। अब सोचें कि जब सुन्दरता के सिन्धु के बिन्दु में इतना सामर्थ्य है तो फिर सिन्धु में कितना होगा? शिक्षा:-- अन्दर से तो हम सब एक हैं| शारीरिक सुन्दरता तो मात्र बाहर का पेकिंग है| वह packing किसी का golden है तो किसी का iron है| साधक को ठाकुर के सुन्दर-सुन्दर रूपों का चिंतन करके निहाल होना चाहिए और उसी में मिल जाना चाहिए| बारहवाँ गुरू मधुमक्खी है| मधुमक्खियाँ कई जगह के फूलों से रस लेकर मधु (शहद) एकत्रित करती हैं| मनुष्य को चाहिए कि जहाँ कहीं से अच्छी शिक्षा मिलती हो, ले लेना चाहिए| तेरहवाँ गुरू हाथी है| जिस प्रकार से हाथी नकली हथिनी के चंगुल के कारण पकड़ा जाता है, उसी प्रकार मनुष्य भी कामाशक्ति के कारण बन्धन में फँस जाता है| अतः मनुष्य को कामाशक्ति का त्याग करना चाहिए| चौदहवाँ गुरू मधुहा (शहद निकालने वाला) है| मधुमक्खियों ने शहद एकत्रित किया, किंतु शहद निकालने वाला संग्रहीत शहद को निकाल कर ले जाता है| इससे यह शिक्षा मिलती है कि संग्रह करने वाले उपयोग से वंचित रह जाते हैं| उपयोग दूसरा व्यक्ति करता है| अतः केवल संग्रह ही नहीं, अपितु संग्रह की गई वस्तुओं का सदुपयोग करना चाहिए|
पन्द्रहवाँ गुरू हिरण है| हिरण संगीत के लोभ में पड़कर पकड़ा जाता है क्योंकि वह कान का कच्चा होता है| मनुष्य को भी विकार पैदा करने वाला या संसार की तरफ खींचने वाला संगीत नहीं सुनना चाहिए| सोलहवाँ गुरू मछली(मीन) है| मछुआरे मछली पकड़ने के लिये डेढ़ा में धागा बाँध कर, उस धागे में एक काँटा और उस काँटे में आटे की गोली का लालच देकर मछली पकड़ते हैं| इसी प्रकार से साधक को विषयों की आसक्ति का काँटा अर्थात् लोभ खींचता रहता है जिससे कि उसकी साधना भंग हो जाती है| सत्रहवाँ गुरू वेश्या पिंगला:--एक पिंगला नाम की वेश्या थी। उसे हमेशा अपने ग्राहक की अपेक्षा, आशा, चिंता लगी रहती थी | एक दिन पिंगला पुरूष की प्रतीक्षा में बैठी थी| सन्ध्या हो गई, कोई नहीं आया| उसने विचार किया कि जैसी प्रतीक्षा जो मैंने संसार के लिये की , वैसी प्रतीक्षा जो मैंने प्रभु के लिये की होती तो मेरा कल्याण हो जाता| तब से उसने संसार की आशा को त्याग दिया|
शिक्षा:--इसी प्रकार से मनुष्य की आशा, कामना ही उसके दुःख का कारण है| "आशा ही परमम् दुःखम्" आशा ही व्यक्ति को कमजोर बनाती है, आशा से व्यक्ति का आत्मबल चला जाता है| आशा के कारण ही व्यक्ति अपमान भी सहन करता है| आशा को त्यागने से ही जगत तमाशा लगने लगता है और व्यक्ति सामर्थ्यवान बन जाता है| उसका आत्म-विश्वास जग जाता है|
एक कवि ने लिखा है कि:-- आशा ही जीवन मरण निराशा अरू। आशा ही जगत की विचित्र परिभाषा है।। आशावश कोटिन्ह यज्ञ जप तप करत है नर। आशा ही मनुष्य की समस्त अभिलाषा है।। आशावश कोटिन्ह अपमान सहकर भी नर। बोलता बिहँसि के सुधामयी भाषा है।। आशावश जेते नर जग के तमाशा बने। तजि जिन्ह आशा तिन्ह जग ही तमाशा है।।
अठारहवाँ गुरू कुररपक्षी:---कुररपक्षी अपनी चोंच में माँस का टुकड़ा लेकर उड़ रहा था, तभी उसके पीछे कुररपक्षी से बलवान बड़ा पक्षी उसके पीछे लग गया और चोंच मार-मार कर उसको वेदना देने लगा| जब उस कुररपक्षी ने उस माँस के टुकड़े को फेंक दिया, तभी कुररपक्षी को सुख मिला| अन्य पक्षी मांस के टुकड़े की तरफ लग गये। कुररपक्षी उनके आक्रमण से मुक्त हुआ। इससे शिक्षा मिलती है कि संग्रह ही दुःख का कारण है, जो व्यक्ति शरीर या मन किसी से भी किसी प्रकार का संग्रह नहीं करता, उसे ही अनंत सुखस्वरूप परमात्मा की प्राप्ति होती है|
उन्नीसवाँ गुरू बालक:--बालक इतना सरल होता है कि उसे मान-अपमान किसी की चिंता नहीं होती| अपनी मौज में रहता है| इससे शिक्षा मिलती है कि निर्दोष नन्हें बालक की तरह, सरल, मान-अपमान से परे ही व्यक्ति ब्रह्मरूप हो सकता है और सुखी रह सकता है|
बीसवाँ गुरू कुमारी:--कुमारी से शिक्षा मिली कि साधना एकांत में होती है, चिंतन भी एकांत में होता है, यदि समूह में चर्चा हो तो वह सत-चर्चा| वही सच्चर्चा का आधार लेकर सत् परमात्मा से जुड़ जाये तो वह सत्संग है| सत् परमात्मा का ही नाम है|
एक कुमारी कन्या के वरण के लिये कुछ लोग आए थे| घर में कुमारी अकेली थी| उसने सभी का आदर-सत्कार किया| भोजन की व्यवस्था के लिये कुमारी ने घर के अन्दर धान कूटना शुरू किया जिससे कि उसके हाथ की चूड़ियाँ आवाज करने लगीं| कुमारी ने एक चूड़ी को छोड़कर बाकी सभी चूड़ियों को धीरे-धीरे हाथ से निकाल दिया और धान कूटकर, भोजन के द्वारा सभी का सत्कार किया| साधक को साधना एकांत में ही करना चाहिए| इक्कीसवाँ गुरू बाण बनाने वाला:--इससे सीखा कि आसन और श्वास को जीतकर वैराग्य और अभ्यास के द्वारा अपने मन को वश में करके, बहुत सावधानी के साथ, मन को एक लक्ष्य में लगा देना चाहिए| किसी भी कार्य को मनोयोग से करना चाहिए| एक बाण बनाने वाला अपने कार्य में इतना मग्न था कि उसके सामने से राजा की सवारी जा रही थी, किंतु उसे मालूम नहीं पड़ा कि कौन जा रहा है?
बाईसवाँ गुरू सर्प:----सर्प से सीखा कि भजन अकेले ही करना चाहिए| मण्डली नहीं बनानी चाहिए| सन्यासी ने जब सब कुछ छोड़ दिया तो उसे आश्रम या मठ के प्रति आसक्ति नहीं होनी चाहिए| गृहस्थी को भगवत्-साधन एवं भजन के द्वारा घर को ही तपस्थली बनाना चाहिए।
शिक्षा:--मनुष्य को अपने घर को नहीं छोड़ना चाहिए| घर को ही भगवान से जोड़ना चाहिए| मनुष्य यदि अपने भाई-बहिन को छोड़ेगा तो किसी और को भाई-बहिन बना लेगा| फिर कहेगा कि ये मेरे गुरू-भाई हैं, ये मेरी गुरू-बहन हैं| अतः घर में रह कर ही भगवान से जुड़ना चाहिए, घर को छोड़कर नहीं| तेईसवाँ गुरू मकड़ी:-- मकड़ी अपने मुँह के द्वारा जाला फैलाती है, उसमें विहार करती है और बाद में उसे अपने में ले लेती है| उसी प्रकार परमेश्वर भी इस जगत को अपने में से उत्पन्न करते हैं, उसमें जीव रूप से विहार करते हैं और फिर अपने में लीन कर लेते हैं| वे ही सबके अधिष्ठाता हैं, आश्रय हैं| चौबीसवाँ गुरू भृंगी (बिलनी) कीड़ा:--भृंगी कीड़ा अन्य कीड़े को ले जाकर और दीवार पर रखकर अपने रहने की जगह को बन्द कर देता है, लेकिन वह कीड़ा भय से उसी भृंगी कीड़े का चिंतन करते-करते, अपने प्रथम शरीर का त्याग किए बिना ही, उसी शरीर में तद्रूप हो जाता है| अतः जब उसी शरीर से चिंतन किए रूप की प्राप्ति हो जाती है, तब दूसरे शरीर का तो कहना ही क्या है? इसलिये मनुष्य को भी किसी दूसरी वस्तु का चिंतन न करके, केवल परमात्मा का ही चिंतन करना चाहिए| परमात्मा के चिंतन से साधक परमात्मा-रूप हो सकता है|
दत्तात्रेय जी ने कहा कि हे राजन्! अकेले गुरू से ही यथेष्ट और सुदृढ़ बोध नहीं होता, अपनी बुद्धि से भी बहुत कुछ सोचने-समझने की आवश्यकता है| भगवान के चरणों में निष्ठा होनी चाहिए| भगवान श्रीकृष्ण ने उद्धव से कहा कि इस प्रकार दत्तात्रेय जी ने राजा यदु को ज्ञान प्रदान किया| यदु महाराज ने उनकी पूजा की| दत्तात्रेय जी राजा यदु से अनुमति लेकर चले गये और राजा यदु का उद्धार हो गया| उनकी आसक्ति समाप्त हो गई और वे समदर्शी हो गये| इसी प्रकार हे प्यारे उद्धव! तुम्हें भी सभी आसक्तियों का त्याग करके समदर्शी हो जाना चाहिए|