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Sunday, January 15, 2012

small n beautiful story



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From: Mohit Sharma

small n beautiful story संतों की संगत का...
Mohit Sharma 14 January 20:09
small n beautiful story
संतों की संगत का असर,..

एक नगर के बाहर जंगल में कोई साधु आकर ठहरा। संत की ख्याति नगर में फैली तो लोग आकर मिलने लगे। प्रवचनों का दौर शुरू हो गया।

संत की ख्याति दिन रात दूर-दूर तक फैलने लगी। लोग दिनभर संत को घेरे रहते थे। एक चोर भी दूर से छिपकर उनको सुनता था। रात को चोरी करता और दिन में लोगों से छिपने के लिए जंगल में आ जाता। वह रोज सुनता कि संत लोगों से कहते हैं कि सत्य बोलिए। सत्य बोलने से जिंदगी सहज हो जाती है। एक दिन चोर से रहा नहीं गया, लोगों के जाने के बाद उसने अकेले में साधु से पूछा-आप रोजाना कहते हो कि सत्य बोलना चाहिए, उससे लाभ होता है लेकिन मैं कैसे सत्य बोल सकता हूं।संत ने पूछा-तुम कौन हो भाई?चोर ने कहा-मैं एक चोर हूं।संत बोले तो क्या हुआ। सत्य का लाभ सबको मिलता है। तुम भी आजमा कर देख लो।

चोर ने निर्णय लिया कि आज चोरी करते समय सभी से सच बोलूंगा। देखता हूं क्या फायदा मिलता है। उस रात चोर राजमहल में चोरी करने पहुंचा। महल के मुख्य दरवाजे पर पहुंचते ही उसने देखा दो प्रहरी खड़े हैं। प्रहरियों ने उसे रोका-ऐ किधर जा रहा है, कौन है तूं।

चोर ने निडरता से कहा-चोर हूं, चोरी करने जा रहा हूं। प्रहरियों ने सोचा कोई चोर ऐसा नहीं बोल सकता। यह राज दरबार का कोई खास मंत्री हो सकता है, जो रोकने पर नाराज होकर ऐसा कह रहा है। प्रहरियों ने उसे बिना और पूछताछ किए भीतर जाने दिया।

चोर का आत्म विश्वास और बढ़ गया। महल में पहुंच गया। महल में दास-दासियों ने भी रोका। चोर फिर सत्य बोला कि मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं। दास-दासियों ने भी उसे वही सोचकर जाने दिया जो प्रहरियों ने सोचा। राजा का कोई खास दरबारी होगा।अब तो चोर का विश्वास सातवें आसमान पर पहुंच गया, जिससे मिलता उससे ही कहता कि मैं चोर हूं। बस पहुंच गया महल के भीतर।

कुछ कीमती सामान उठाया। सोने के आभूषण, पात्र आदि और बाहर की ओर चल दिया। जाते समय रानी ने देख लिया। राजा के आभूषण लेकर कोई आदमी जा रहा है। उसने पूछा-ऐ कौन हो तुम, राजा के आभूषण लेकर कहां जा रहे हो।चोर फिर सच बोला-चोर हूं, चोरी करके ले जा रहा हूं। रानी सोच में पड़ गई, भला कोई चोर ऐसा कैसे बोल सकता है, उसके चेहरे पर तो भय भी नहीं है। जरूर महाराज ने ही इसे ये आभूषण कुछ अच्छा काम करने पर भेंट स्वरूप पुरस्कार के रूप में दिए होंगे। रानी ने भी चोर को जाने दिया। जाते-जाते राजा से भी सामना हो गया। राजा ने पूछा-मेरे आभूषण लेकर कहां जा रहे हो, कौन हो तुम?

चोर फिर बोला- मैं चोर हूं, चोरी करने आया हूं। राजा ने सोचा इसे रानी ने भेंट दी होगी। राजा ने उससे कुछ नहीं कहा, बल्कि एक सेवक को उसके साथ कर दिया। सेवक सामान उठाकर उसे आदर सहित महल के बाहर तक छोड़ गया।

अब तो चोर के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने सोचा झूठ बोल-बोलकर मैंने जीवन के कितने दिन चोरी करने में बरबाद कर दिए। अगर चोरी करके सच बोलने पर परमात्मा इतना साथ देता है तो फिर अच्छे कर्म करने पर तो जीवन कितना आनंद से भर जाएगा।चोर दौड़ा-दौड़ा संत के पास आया और पैरों में गिर पड़ा। चोरी करना छोड़ दिया और उसी संत को अपना गुरू बनाकर उन्हीं के साथ हो गया।संत की संगत ने चोर को बदल दिया। कथा का सार यही है कि जो सच्चा संत होता है वह हर जगह अपना प्रभाव छोड़ता ही है।

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