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Monday, August 30, 2021

Fwd: Radha


---------- Forwarded message ---------
From: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>
Date: Mon, Aug 30, 2021, 11:43 AM
Subject: Radha
To: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>


कृष्ण भक्ति परंपरा के महानत संत सूरदास ने कभी एक स्वप्न देखा था कि रुक्मिणी और राधिका आपस में मिली हैं और एक दूजे पर न्योछावर हुई जा रही हैं।
      
सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बाल-कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्रधारी, महायोद्धा कृष्ण।

कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।

रुक्मिणी कृष्ण की पत्नी थीं, पटरानी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी, जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण करता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।

कितनी अद्भुत लीला है। राधिका के लिए कृष्ण, कन्हैया था। रुक्मिणी के लिए कन्हैया, कृष्ण थे। पत्नी होने के बाद भी रुक्मिणी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें 'तुम' कह पातीं। आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है। रुक्मिणी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।

राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही 'चरम' से किया। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।

कितना अजीब है न! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आज तक उसी के हैं, और जिसे मिले, उसे वे मिले ही नहीं। या मिलने का स्वांग रच गये!

तभी कहता हूँ, कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। यदि  प्रयास कीजियेगा, तो कभी नहीं मिलेंगे। प्रेम कर के, बस छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई, तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।

राधा और रुक्मिणी जब मिली होंगी, तो रुक्मिणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी। और राधा ने रुक्मिणी के आभूषणों में कृष्ण का वैभव तलाशा होगा। कौन जाने किसी को कुछ मिला भी या नहीं। सब कुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को...  कुछ न कुछ तो छूट ही जाता है।

जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं, उतनी किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले, वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। प्रिय बांसुरी छूटी, गोकुल छूटा, मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर छोड़ते ही रहे। परंतु कभी मलाल नहीं किया। सदा मुस्कुराते रहे। इसीलिए उन्हें स्थिति प्रज्ञ कहा गया है। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अपना मूल चरित्र न बदलने वाला। 
 
आज हमारी आज की पीढ़ी के हाथों से कुछ भी छूट जाए, तो  टूटन होने लगती है। उसे जीना व्यर्थ लगने लगता है। अपने को संभाल नहीं पाता। आज आवश्यकता है, हम कृष्ण को अपना गुरु बना लें। सारथी बना लें, सखा बना लें। जो कृष्ण को समझ लेगा, वह कभी अवसाद ( depression ) में नहीं रहेगा। फालतू के frustration और  aggression से भी बचा रहेगा.  कृष्ण आनंद के देवता हैं। कुछ छूटने पर भी कैसे  प्रसन्न रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता। योगी भी वियोगी भी! तभी तो पूर्णावतार माने जाते हैं। न उनसा प्रेमी, न उनसा योद्धा! न उनसा सखा,  न उनसा बैरी! न कृष्ण सा भाई , न कृष्ण सा मित्र! 

महागुरु है हम सबका कन्हैया...

🙏
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (5448 वीं ) की
 शुभकामनाएं! 
🙏

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