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Monday, August 30, 2021

Photo from MG Garga

*आज गीता के अमृत ज्ञान  में सतगुरु ने  💐आसुरी वृत्ति के लोग कैसे होते हैं💐 यह समझाया*।
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩

💐भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की, आसुरी वृत्ति के लोग यह मानते हैं कि इस जगत का कोई स्वामी नहीं है, यह काम से प्रेरित संसार, है जिसमें काम ही इस संसार का कारण है ।अन्य कुछ भी नहीं *विश्व को कोई मूल् सत्ता के अधीन नहीं मानते, यह धर्म और अधर्म को कुछ नहीं मानते इस जगत का निर्माण आकस्मिक हुआ है यह उनकी धारणा है* जबकि यह देखा गया है कि बिना व्यवस्था के कोई निर्माण नहीं हुआ है ।और व्यवस्था द्वारा आपको उचित लाभ भी मिलता है। आसुरी वृत्ति के लोग तर्क की बात करते हैं। जबकि ब्रह्मांड 8 चीजों से प्रमाणित है हमारे इतिहास में भी और विभिन्न मत पंतो में भी लोगों ने इसे बहुत ही अलंकारिक ढंग से समझाया। जबकि यह कोई भौगोलिक स्थिति नहीं है परमात्मा के निवास की ।उसे विज्ञान प्रमाणित नहीं करता ,वह अनुभव वाली बात है जबकि *विज्ञान भी यह कहता है कि हम जानकारी प्राप्त करते हुए ,जब अंतिम चरण में पहुंचते हैं तो यह महसूस होता है कि कोई शक्ति तो है*।

💐इस  मिथ्या ज्ञान को अवलंबन करके जिसकी बुद्धि नष्ट हो गई है ।वह क्रूर कर्म करते हुए ,इस संसार को नष्ट करने में ही रुचि रखते हैं और अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं ।यह नष्टआत्मा है जिनकी उच्चतर लोको में पहुंचने की संभावना नहीं रहती ।यह *अशुद्धियों से भरे शरीर को ही अपना जीवन मानते हैं  यह जगत के शत्रु होते हैं*

💐भगवान ने आगे कहा कि इन 6 आसुरी वृत्तियों से भरे लोग क्या क्या करते हैं ।यह 22 तरह के मद पैदा करते हैं हम इन से मुक्त हो। हमारे जीवन के दो छोर हैं एक है शुक्ल पक्ष और दूसरा कृष्ण पक्ष है। *दंभ ,मान से युक्त मोह बस, मिथ्या धारणाओं को रखकर, अशुद्ध संकल्पों के साथ जीवन में कार्य करते हैं। ऐसे लोग आसुरी वृत्ति वाले होते हैं* ।विडंबना यह है कि हम इंद्रियों द्वारा प्राप्त सुख को ही सुख मानते हैं जबकि हमें यह याद रखना चाहिए ,कि राजा ययाति 3 जीवन जिए। लेकिन अंत में यही कहा, कि यह शरीर 300 वर्षों तक जवान रहा, और पता चला कि जैसे आग में घी डालने से वह बुझती नहीं ,उसी तरह *भोगों को भोगने से तृप्ति नहीं मिलती। उल्टे मानसिक भोग की विकृति बढ़ती जाती है* वह पागल की स्थिति को प्राप्त होता है
भगवान की व्यवस्था है कि किसी चीज की मात्रा संतुलित हो तो ,आनंद आता है अन्यथा वह पीड़ा बन जाती है ऐसे अपवित्र संकल्प वाले लोग संसार में विचरण कर के संसार को गलत दिशा में ले जाते हैं ऐसे लोग खुद दुखी रहते हैं और दूसरों को भी दुखी करते हैं इतिहास में ऐसे राजा रानी की बहुत सारी कहानियां वर्णित हैं।
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दिनांक 30 अगस्त 2021
संकलनकर्ता रविंद्र नाथ द्विवेदी पुणे मंडल
क्रमशः🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 

Fwd: Radha


---------- Forwarded message ---------
From: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>
Date: Mon, Aug 30, 2021, 11:43 AM
Subject: Radha
To: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>


कृष्ण भक्ति परंपरा के महानत संत सूरदास ने कभी एक स्वप्न देखा था कि रुक्मिणी और राधिका आपस में मिली हैं और एक दूजे पर न्योछावर हुई जा रही हैं।
      
सोचता हूँ, कैसा होगा वह क्षण जब दोनों ठकुरानियाँ मिली होंगी। दोनों ने प्रेम किया था। एक ने बाल-कन्हैया से, दूसरे ने राजनीतिज्ञ कृष्ण से। एक को अपनी मनमोहक बातों के जाल में फँसा लेने वाला कन्हैया मिला था, और दूसरे को मिले थे सुदर्शन चक्रधारी, महायोद्धा कृष्ण।

कृष्ण राधिका के बाल सखा थे, पर राधिका का दुर्भाग्य था कि उन्होंने कृष्ण को तात्कालिक विश्व की महाशक्ति बनते नहीं देखा। राधिका को न महाभारत के कुचक्र जाल को सुलझाते चतुर कृष्ण मिले, न पौंड्रक-शिशुपाल का वध करते बाहुबली कृष्ण मिले।

रुक्मिणी कृष्ण की पत्नी थीं, पटरानी थीं, महारानी थीं, पर उन्होंने कृष्ण की वह लीला नहीं देखी, जिसके लिए विश्व कृष्ण को स्मरण करता है। उन्होंने न माखन चोर को देखा, न गौ-चरवाहे को। उनके हिस्से में न बाँसुरी आयी, न माखन।

कितनी अद्भुत लीला है। राधिका के लिए कृष्ण, कन्हैया था। रुक्मिणी के लिए कन्हैया, कृष्ण थे। पत्नी होने के बाद भी रुक्मिणी को कृष्ण उतने नहीं मिले कि वे उन्हें 'तुम' कह पातीं। आप से तुम तक की इस यात्रा को पूरा कर लेना ही प्रेम का चरम पा लेना है। रुक्मिणी कभी यह यात्रा पूरी नहीं कर सकीं।

राधिका की यात्रा प्रारम्भ ही 'तुम' से हुई थीं। उन्होंने प्रारम्भ ही 'चरम' से किया। शायद तभी उन्हें कृष्ण नहीं मिले।

कितना अजीब है न! कृष्ण जिसे नहीं मिले, युगों युगों से आज तक उसी के हैं, और जिसे मिले, उसे वे मिले ही नहीं। या मिलने का स्वांग रच गये!

तभी कहता हूँ, कृष्ण को पाने का प्रयास मत कीजिये। यदि  प्रयास कीजियेगा, तो कभी नहीं मिलेंगे। प्रेम कर के, बस छोड़ दीजिए, जीवन भर साथ निभाएंगे कृष्ण। कृष्ण इस सृष्टि के सबसे अच्छे मित्र हैं। राधिका हों या सुदामा, कृष्ण ने मित्रता निभाई, तो ऐसी निभाई कि इतिहास बन गया।

राधा और रुक्मिणी जब मिली होंगी, तो रुक्मिणी राधा के वस्त्रों में माखन की गंध ढूंढती होंगी। और राधा ने रुक्मिणी के आभूषणों में कृष्ण का वैभव तलाशा होगा। कौन जाने किसी को कुछ मिला भी या नहीं। सब कुछ कहाँ मिलता है मनुष्य को...  कुछ न कुछ तो छूट ही जाता है।

जितनी चीज़ें कृष्ण से छूटीं, उतनी किसी से नहीं छूटीं। कृष्ण से उनकी माँ छूटी, पिता छूटे, फिर जो नंद-यशोदा मिले, वे भी छूटे। संगी-साथी छूटे। राधा छूटीं। प्रिय बांसुरी छूटी, गोकुल छूटा, मथुरा छूटी। कृष्ण से जीवन भर कुछ न कुछ छूटता ही रहा। कृष्ण जीवन भर छोड़ते ही रहे। परंतु कभी मलाल नहीं किया। सदा मुस्कुराते रहे। इसीलिए उन्हें स्थिति प्रज्ञ कहा गया है। परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अपना मूल चरित्र न बदलने वाला। 
 
आज हमारी आज की पीढ़ी के हाथों से कुछ भी छूट जाए, तो  टूटन होने लगती है। उसे जीना व्यर्थ लगने लगता है। अपने को संभाल नहीं पाता। आज आवश्यकता है, हम कृष्ण को अपना गुरु बना लें। सारथी बना लें, सखा बना लें। जो कृष्ण को समझ लेगा, वह कभी अवसाद ( depression ) में नहीं रहेगा। फालतू के frustration और  aggression से भी बचा रहेगा.  कृष्ण आनंद के देवता हैं। कुछ छूटने पर भी कैसे  प्रसन्न रहा जा सकता है, यह कृष्ण से अच्छा कोई सिखा ही नहीं सकता। योगी भी वियोगी भी! तभी तो पूर्णावतार माने जाते हैं। न उनसा प्रेमी, न उनसा योद्धा! न उनसा सखा,  न उनसा बैरी! न कृष्ण सा भाई , न कृष्ण सा मित्र! 

महागुरु है हम सबका कन्हैया...

🙏
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (5448 वीं ) की
 शुभकामनाएं! 
🙏

Sunday, August 29, 2021

Kahani

🕉️ *हनुमान जी का कर्ज़ा* 🕉️

राम जी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो कुछ दिन पश्चात राम जी ने विभीषण, जामवंत, सुग्रीव और अंगद आदि को अयोध्या से विदा कर दिया, तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में विदा करेंगे, लेकिन राम जी ने हनुमान जी को विदा ही नहीं किया। 
अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात है कि सब गए परन्तु अयोध्या से हनुमान जी नहीं गये।
अब दरबार में कानाफूसी शुरू हुई कि हनुमान जी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता जी की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमान जी चले जायें।

माता सीता बोलीं मै तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक-एक दिन एक-एक कल्प के समान बीत रहा था। वो तो हनुमान जी थे, जो प्रभु मुद्रिका ले के गये, और धीरज बंधवाया कि...
*कछुक दिवस जननी धरु धीरा।*
*कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।*
*निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।*
*तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥*

मैं तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए, आप किसी और से बुलावा लो।

अब बारी आई लखन जी की। तो लक्ष्मण जी ने कहा, मैं तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था।  पूरा राम दल विलाप कर रहा था।
*प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।*
*आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।*

ये तो जो खड़ा है, वो हनुमान जी का लक्ष्मण है। मैं कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमान जी अयोध्या से चले जाएं।

अब बारी आयी भरत जी की। अरे! भरत जी तो इतना रोये, कि राम जी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझ पे। हनुमान जी का, सब मिलके और लगवा दो और दूसरी बात ये कि...
*बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।* 
*अधम कवन जग मोहि समाना॥*

मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमान जी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...
*रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।*
*सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥*

मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमान जी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।

अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुघ्न भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुघ्न भैया बोल पड़े.. मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमान जी को अयोध्या से निकलने के लिए। 
जिन्होंने ने माता सीता, लखन भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो, किसी अच्छे काम के लिए कहते बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।

अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार... माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों के स्वामी हो, और देखती हूं आप हनुमान जी से सकुचाते हैं। और आप खुद भी कहते हो कि...!
*प्रति उपकार करौं का तोरा।*
*सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥*

आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु ! राघव जी ने कहा, देवी क़र्ज़दार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो..

*सनमुख होइ न सकत मन मोरा*

देवी ! हनुमान जी का कर्ज़ा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। क्योंकि कर्ज़ा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...! यदि सुनना चाहती हो तो सुनो - हनुमान जी का कर्ज़ा कैसे उतारा जा सकता है।

*पहले हनुमान विवाह करें,*
*लंकेश हरें इनकी जब नारी।*
*मुंदरी लै रघुनाथ चले,*
*निज पौरुष लांघि अगम्य जे वारी।*
*आयि कहें, सुधि सोच हरें,*
*तन से, मन से होई जाएं उपकारी।*
*तब रघुनाथ चुकायि सकें,*
*ऐसी हनुमान की दिव्य उधारी।।*

देवी ! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्ज़ा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!

*"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"*

मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमान जी भी कुछ मांग लें। दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए, सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमान जी क्या मांगेंगे, और राम जी क्या देंगे।
राघव जी ने कहा ! हनुमान सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद, अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?
हनुमान जी बोले ! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!

*तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना*
*तो फिर यदि मैं दो पद मांगू तो..?*

सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमान जी भी ठीक ही कह रहे हैं। 
राम जी ने कहा ! ठीक है, मांग लो।
सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमान जी का कर्ज़ा चुकता हो जायेगा। हनुमान जी ने कहा ! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमें राजमद की शंका हो।
तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए ?
*हनुमान जी ने राम जी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।*

*हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।*
*नहीं कोउ रामचरण  अनुरागी।*

यह प्रेरक प्रसंग किसी ने भेजा है. उनको मेरा प्रणाम!
पढ़ कर मन शांत ,प्रसन्न और भाव विभोर हो उठता है.
ऐसी रचनाओं को जितना हो सके शेयर करें I

Friday, August 27, 2021

*🌸 सहजोबाई 🌸🙏🏻*

आज सहजो अपनी कुटिया के द्वार पर बैठी है, उसकी गुरुभक्ति से प्रसन्न होकर परमात्मा उसके सामने प्रकट हुए हैं । लेकिन सहजो के अन्दर कोई उत्साह नहीं है 

परमात्मा ने कहा - सहजो हम स्वयं चलकर आऐ हैं क्या तुम्हे हर्ष नही हो रहा ?

 सहजो ने कहा -- प्रभु ! ये तो आपने अहेतुक कृपा की है, पर मुझे तोआपके दर्शन की भी कामना नही थी।

परमात्मा को झटका लगा।
सहजो तेरे पास ऐसा क्या है ?,  
जो तू मेरा आतिथ्य भी नही करती है ! 

सहजो ने कहा-  मेरे पास मेरा सद्गुरु पूर्ण समर्थ है। भगवन ! मैने आपको अपने सद्गुरु मे पा लिया है, मैं परमात्म तत्व का दर्शन भी करना चाहती हूँ तो केवल अपने सद्गुरु के ही रूप मे। मुझे आपके दर्शनो की कोई अभिलाषा नही है

यदि मै गुरुदेव को कहती तो वह कभी का आपको उठाकर मेरी झोली मे डाल देते।

ये भाव देखकर आज परमात्मा पिघल गया। कहते है - सहजो मुझे अदंर आने के लिए नही कहोगी ?
 
सहजो कहती है- प्रभु मेरी कुटिया के भीतर एक ही आसन है और उस पर भी मेरे सद्गुरु विराजते हैं, क्या आप भूमि पर बैठकर मेरा आतिथ्य स्वीकार करेंगें ?

  भगवान् कहे तुम जहाँ कहोगी हम वहाँ बैठेंगें, भीतर तो आने दो।

भगवान् देखते हैं सचमुच एक ही आसन है, वे भूमि पर ही बैठ गए।

कहा -- सहजो !  मैं जहाँ जाता हूँ कुछ न कुछ देता हूँ ऐसा मेरा नियम है । कुछ माँग ही लो। सहजो कहती है -- प्रभु! मेरे जीवन मे कोई कामना नही है।  प्रभु ने कहा  फिर भी कुछ तो माँग लो । सहजो ने कहा प्रभु ! आप  मुझे क्या दोगे ? 

आप तो स्वयं एक दान हो, जिसे मेरा दाता सद्गुरु अपने अनन्य भक्त को जब चाहे दान कर देता है। अब बताओ प्रभु !  दान बड़ा या दाता ? 

आपने तो प्राणी को जन्म मरण, रोग भोग, सुख दुख मे उलझाया, ये तो मेरे सदगुरु दीनदयाल ने कृपा कर हर प्राणी को विधि बताकर, राह पकड़ा कर, शरण में आये हुए को सहारा देकर उसे निर्भय बनाकर उस द्वन्द से छुड़ाया।

प्रभु मुस्कराते हुए कहते हैं, सहजो ! आज मेरी मर्यादा रख ले, कुछ सेवा ही दे दे।
सहजो ने कहा - प्रभु एक सेवा है, मेरे सद्गुरु आने वाले हैं, जब मैं उन्हे भोजन कराऊँ तो क्या आप उनके पीछे खड़े होकर चमर डुला सकते हो ?

 कथा कहती है कि प्रभु ने सहजो के गुरु चरणदास पर चमर डुलाया। यही है सद्गुरु के प्रति सच्ची समर्पण! , साधक के अंदर अगर स्वर्ग तक की कामना जागृत हो जाय

उसे दृढ़ विश्वास होना चाहिए कि मुझे कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, यह तो मेरे सच्चे बादशाह यूं ही दे देंगे, लेकिन कब ? जब उसमे मेरा कल्याण होगा
🙏🏻🙏🏻

Monday, August 16, 2021

Kahani

एक बार    गोपीयों ने   श्री   कृष्ण   से   कहा   कि
हमें    अगस्त्य  मुनि   को   भोग   लगाने   जाना   है ।
और   रास्ते   में    यमुना   जी   आती   है   ,अब   तुम  ही
बताओं    हम   उस  पार    कैसे  जाये   ?🙏

     तब    भगवान    श्री  कृष्ण   ने   कहा  ,:      जब  तुम
यमुना जी   के    पास   जावो  , तो   उनसे    कहना   की
अगर   श्री   कृष्ण    ब्रह्मचारी    है  ।  तो    हमें   रास्ता दे
 बस    यमुना   जी    तुम्हें    रास्ता   दे   देगी   🌳🌳

    गोपीया    हंसने    लगी   ,ये   कृष्ण    भी    अपने  आप   को    ब्रह्मचारी    समझता    है  ❤️
  सारा  दिन   तो    हमारे   पीछे   पीछे    घुमता   है  ।
कभी   वस्त्र   चूराता   है    माखन  चुराता  है  , मटकी  तोड़ता   है  । और   ब्रम्हचारी  ,?,,,,,,,,,,,,,,🤣🤣
         खैर    हमें   क्या   , चलो    हम    बोल  देंगे   

     फिर   गोपीया    यमुना   जी   के    पास   जाकर  बोलती   है  ;;;;हे   यमुना   जी   , यदि   श्री कृष्ण  ब्रम्हचारी     है   ,  तो    हमें    रास्ता  दे   ।🌴🌴🌴🌴
    गोपीयोके कहते     ही    यमुना  जी  ने   तुरंत   रास्ता दे   दिया  ।    🤔🤔   गोपीया   आच्क्षर्य   से   भर गई

       अब    गोपीया    अगस्त्य   मुनि  को    भोजन  दें दिया   ,  आते   वक्त   उसने    मुनि   से   कहा   
   हे    मुनीश्वर    रास्ते में    यमुना   जी    आती   है   हम
घर    कैसे    जायेंगे   ? 🤔🤔🙏

       तब   मुनि    अगस्त्य   ने     कहा  ;;  जब    तुम  यमुना   जी    के    पास   जाना   तो    उनसे    ये  कहना
के   मुनि   अगस्त्य     अजिवन   निराहार    है   तो  हमें
रास्ता  दे  ,    बस     यमुना   जी    तुम्हें    रास्ता  दे  देगी

        गोपीया   मन  ही   मन     कहने   लगी   , अभी तो
सारा    भोजन   लाई   थी  ।  सारा  का   सारा   निगट  गये    और   अपने   आप    को   निराहार   कह रहे है
  
      गोपीया    वापस   चल   पड़ी  ,  यमुना  जी के  पास
आकर    कहने   लगी  ,   हे    यमुना   जी    अगर  
    अगस्त्य    मुनि    अजिवन    निराहार   है   ।  तो  हमें
आप   रास्ता  दे   दिजीए    हमें  घर   जाना  है  ।
            यमुना   जी  ने   भी   तुरंत    रास्ता  दे   दिया  
ये   देखकर  भी     गोपीयोकी     आच्क्षर्य   की   सिमा न
रही  🤔    ये   भी    कैसे   हो   सकता    है   ।हम ने
अपनी    आंखों   से   देखा   ,,,, मुनि   को   भोजन  करते
और   वो     अजिवन   निराहार    कैसे  ,🤔🤔🤔🤔

    इस   उधेड़बुन   में     गोपियां   सिधे    श्री   कृष्ण  के
पास   गए   और  आकर   वहीं   प्रश्न   का   उत्तर  जानने के   लिए   उस्तुक   थे   ,🙏🙏🙏🌴🌴🌳🌳🌳

      तब     भगवान   श्री कृष्ण   कहने   लगे   ;; गोपीयों 
मुझे    तुम्हारे    देह   से    कोई    लेना देना    नहीं  है
मैं   तो    तुम्हारी    प्रेम   और   भाव   को    देखकर  😄
तुम्हारे    पिछे    पिछे    घुमता   हु  ।।
         मैं   ने     संसार    को    कभी   भी    वासना  से
नहीं    देखा   ।न  भोगा   , मैं   निराकार ,  निर्मोही    हु  
इसलिए    यमुना   जी   ने    आपको   मार्ग   दे   दिया  ।

दुसरी   बात  ;     मुनि   अगस्त्य    भोजन   करने   से पहले   वो    मुझे    भोग   लगाते   हैं  ।  और   उनका 
भोजन  के    प्रति    कोई    रूचि  नहीं    होती  ❤️
कोई    मोह  नहीं  है  ।  
            उनके    मन   में  ए    कताई    नहीं    होता  कि
मैं   भोजन   कर   रहा  हूं  ।   या   मैं    भोजन   करु  ।
     वो   तो    अपने   अंदर   रह  रहे    मुझे   भोजन  करा    रहे    होते   हैं   । इसलिए   वो   अजिवन निराहार है  ।।  और   इसलिए   जो    मुझे   प्रेम  करता है मैं  उसका    ऋणी    हो   जाता   हूं   🛐🍀🌳🌳🌳🌳

       भावार्थ   ,की   , आंखें   देखी   भी   कभी कभी ग़लत  हो   सकती  है ☝️  हम     संसार   में    रहकर भी 
      ईश्वर   से   प्रेम  कर सकते   हैं   । संसार  छोड़ कर
नहीं   गृहस्थ   ही   सबसे    बड़ा   आश्रम   है  ।।।।🙏
   और कहीं     मठ   पुजा  ,वन  उपवन   आश्रम  तिर्थ
जाने   की    कोई   आवश्यकता  नहीं है 🌳🍀🙏

         
    संत  न   छोड़ें    संत ई   जो    कोटी  क   मिले  असंत
   चंदन   ,भुवंगा    बैठीया  ,। तहु    शितलता  न   तंजतं

      सज्जन   को   चाहे   करोड़  दृष्ट    पुरुष   मिल जाए
वो  अपने   स्वभाव  को  नहीं   छोड़ता ।
जैसे   चंदन   के   पेड़  पर  ,अनेक   सांप   लिपटे  रहते हैं ।   फिर  भी   वह   अपनी    सितलता नहीं छोड़ता
      
            जय श्री राधे राधे जी 🙏🌷
      
             जो  तु   सेवक    गुरु   का , निंदा  की  तज बान
          निंदक  नियारे   आय तब ,  कर   आदर   सनमान