मुस्कराहट से बढ़कर सौंदर्य कोई नहीं हो सकता। प्रसनन्ता ही सबसे बड़ा सौंदर्य है।
परम पूज्य सुधांशुजी महाराज
collection of Kahaneeyan from the Pravachan of Parampujy Guruji Acharya Sudhanshuji Maharaj & HIS books etc
मुस्कराहट से बढ़कर सौंदर्य कोई नहीं हो सकता। प्रसनन्ता ही सबसे बड़ा सौंदर्य है।
परम पूज्य सुधांशुजी महाराज
आज एक ऐसे महामानव का जन्मदिन है जिसने संसार के कल्याण के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। इस महामानव का नाम दधिचि है। इनके विषय में कथा है कि एक बार वृत्रासुर नाम का एक राक्षस देवलोक पर आक्रमण कर दिया।
देवताओं ने देवलोक की रक्षा के लिए वृत्रासुर पर अपने दिव्य अस्त्रों का प्रयोग किया लेकिन सभी अस्त्र शस्त्र इसके कठोर शरीर से टकराकर टुकरे-टुकरे हो रहे थे। अंत में देवराज इन्द्र को अपने प्राण बचाकर भागना पड़ा। इन्द्र भागकर ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव के पास गया लेकिन तीनों देवों ने कहा कि अभी संसार में ऐसा कोई अस्त्र शस्त्र नहीं है जिससे वृत्रासुर का वध हो सके।
त्रिदेवों की ऐसी बातें सुनकर इन्द्र मायूस हो गया। देवराज की दयनीय स्थिति देखकर भगवान शिव ने कहा कि पृथ्वी पर एक महामानव हैं दधिचि। इन्होंने तप साधना से अपनी हड्डियों को अत्यंत कठोर बना लिया है। इनसे निवेदन करो कि संसार के कल्याण हेतु अपनी हड्डियों का दान कर दें।
इन्द्र ने शिव की आज्ञा के अनुसार दधिचि से हड्डियों का दान मांगा। महर्षि दधिचि ने संसार के हित में अपने प्राण त्याग दिए। देव शिल्पी विश्वकर्मा ने इनकी हड्डियों से देवराज के लिए वज्र नामक अस्त्र का निर्माण किया और दूसरे देवताओं के लिए भी अस्त्र शस्त्र बनाए।
इसके बाद इन्द्र ने वृत्रासुर को युद्घ के लिए ललकारा। युद्घ में इन्द्र ने वृत्रासुर पर वज्र का प्रहार किया जिससे टकराकर वृत्रासुर का शरीर रेत की तरह बिखर गया। देवताओं का फिर से देवलोक पर अधिकार हो गया और संसार में धर्म का राज कायम हुआ।
आज जहां संत और साधुओं को लेकर आम जनता के मन में विश्वास की भावना कम होती जा रही है ऐसे में महर्षि दधिचि का जीवन एक आदर्श रूप है जो बताता है कि संत और ऋषि को कैसा होना चाहिए। वास्तव में संत की यही परिभाषा है कि वह अपने लिए नहीं बल्कि संसार के लिए जिए, संसार के कल्याण में अपने प्राणों का बलिदान दे जैसा महर्षि दधिचि ने किया।
एक बार एक राज महल में कामवाली का लड़का खेल रहा था.
खेलते खेलते उसके हाथ में एक हीरा आ गया. वो दौड़ता-दौड़ता अपनी माँ के पास ले गया.
माँ ने देखा और समझ गयी की ये हीरा है तो उसने झूठ मूठ का बच्चे को कहा कि ये तो काँच का टुकड़ा है
और उसने उस हीरे को महल के बाहर फेंक दिया.
और थोड़ी देर के बाद वो बाहर से हीरा उठा कर चली गयी. और उसने उस हीरे को एक सोनी को दिखाया,
सोनी ने भी यही कहा ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने भी बाहर फेक दिया,
वो औरत वँहा से चली गयी बाद में उस सोनी ने वो हीरा उठा लिया और जोहरी के पास गया. और जोहरी को दिखाया ।।
जोहरी को पता चल गया की ये तो एक नायाब हीरा है और उसकी नियत बिगड़ गयी और उसने भी सोनी को कहा की ये तो कांच का टुकड़ा है और उसने उठा के बाहर फेक दिया, वहा गिरते ही वो हीरा टूट कर बिखर गया.
एक आदमी पूरा वाकिया देख रहा था, उसने जाकर हीरे को पूछा, जब तुम्हे दो बार फेका गया तब नहीं टूटे और तीसरी बार क्यों टूट गए?
हीरे ने जवाब दिया: ना वो औरत मेरी कीमत जानती थी और ना ही वो सोनी ।। मेरी सही कीमत वो जोहरी ही जानता था. और उसने जानते हुए भी मेरी कीमत कांच की बना दी बस मेरा दिल टूट गया और में टूट के बिखर गया.
जब किसी इन्सान की सही कीमत जानते हुए भी लोग नकारा कहते है तो वो भी हीरे की तरह टूट जाता है।
😜😜
ऎसा भी प्रेम
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एक फकीर बहुत दिनों तक बादशाह के साथ रहा बादशाह का बहुत प्रेम उस फकीर पर हो गया।
प्रेम भी इतना कि बादशाह रात को भी उसे अपने कमरे में सुलाता।
कोई भी काम होता, दोनों साथ-साथ ही करते।
एक दिन दोनों शिकार खेलने गए और रास्ता भटक गए।
भूखे-प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे।
पेड़ पर एक ही फल लगा था।
बादशाह ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा।
बादशाह ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के मुताबिक पहला टुकड़ा फकीर को दिया।
फकीर ने टुकड़ा खाया और बोला, 'बहुत स्वादिष्ट ऎसा फल कभी नहीं खाया।
एक टुकड़ा और दे दें।
दूसरा टुकड़ा भी फकीर को मिल गया।
फकीर ने एक टुकड़ा और बादशाह से मांग लिया।
इसी तरह फकीर ने पांच टुकड़े मांग कर खा लिए।
जब फकीर ने आखिरी टुकड़ा मांगा, तो बादशाह ने कहा, 'यह सीमा से बाहर है।
आखिर मैं भी तो भूखा हूं।
मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते।'.
और सम्राट ने फल का टुकड़ा मुंह में रख लिया।
मुंह में रखते ही राजा ने उसे थूक दिया, क्योंकि वह कड़वा था।
राजा बोला, 'तुम पागल तो नहीं, इतना कड़वा फल कैसे खा गए?'
उस फकीर का उत्तर था,
'जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले, एक कड़वे फल की शिकायत कैसे करूं?
सब टुकड़े इसलिए लेता गया ताकि आपको पता न चले।
दोस्तों जँहा मित्रता हो वँहा संदेह न हो ।
👏🐾🌹💐🙏😊
🙏🙏🙏
Manorma: 🌻 -----:-:-:-:-:---- ( 1 ) 👳एक बार गाँव वालों ने यह निर्णय लिया कि बारिश ☔के लिए ईश्वर से प्रार्थना🙏 करेंगे , प्रार्थना के दिन सभी गाँव वाले एक जगह एकत्रित हुए , परन्तु एक बालक🙇 अपने साथ छाता 🌂भी लेकर आया । 👇 🔔 इसे कहते हैं 🔔 🎄 आस्था🎄 🌾 ( 2 ) 👶जब आप एक बच्चे को हवा में उछालते हैं तो वह हँसता 😀 है , क्यों कि वह जानता है कि आप उसे पकड़ लेंगे । 👇 🐾इसे कहते हैं🐾 ✌ विश्वास✌ 🌾 ( 3 ) 🌜प्रत्येक रात्रि को जब हम सोने के लिए जाते हैं तब इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि सुबह☀ तक हम जीवित रहेंगे भी कि नहीं , फिर भी हम घड़ी ⏰ में अलार्म लगाकर सोते हैं । 👇 💡इसे कहते हैं 💡 🌞आशा(उम्मीद)🌞 ----------------- 🌾 ( 4 ) हमें भविष्य के बारे में कोई जानकारी नहीं है फिर भी हम आने वाले कल के लिए बड़ी बड़ी योजनाएं बनाते हैं । 👇 👉 इसे कहते हैं👈 💪 आत्मविश्वास💪 --------------------------------------- 🌾 ( 5 ) 💞 हम देखरहे हैं कि दुनियाँ कठिनाइयों से जूझरही है फिर भी हम शादी 🎎 करते हैं । 👇 🎵 इसे कहते हैं 🎵 💘 प्यार 💘 -------------------- 🌾 ( 6 ) 👍 एक 60 साल की उम्र वाले व्यक्ति की शर्ट पर एक शानदार वाक्य लिखा था , "मेरी उम्र 60 साल नहीं है , मैं तो केवल मधुर - मधुर 16 साल का हूँ , 44 साल के अनुभव के साथ ।" 👇 👊 इसे कहते हैं 👊 👀 नज़रिया 👀 ---------------
((((((( प्रभु से रिश्ता )))))))
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एक गरीब बालक था जो
कि अनाथ था।
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एक दिन वो बालक एक
संत के आश्रम मेँ आया और
बोला, बाबा आप सबका
ध्यान रखते है,
.
मेरा इस दुनिया में कोई नहीं है
तो क्या मैँं यहां आपके आश्रम
में रह सकता हुं ?
.
बालक की बात सुनकर संत
बोले बेटा तेरा नाम क्या है ?
.
उस बालक ने कहा मेरा कोई
नाम नहीं है।
.
तब संत ने उस बालक का
नाम रामदास रखा और बोले
की अब तुम यहीं आश्रम में
रहना।
.
रामदास वही रहने लगा और
आश्रम के सारे काम भी करने
लगा।
.
उन संत की आयु 80 वर्ष की
हो चुकी थी।
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एक दिन वो अपने शिष्यों से
बोले की मुझे तीर्थ यात्रा पर
जाना है।
.
तुम मेँ से कौन कौन मेरे मेरे
साथ चलेगा और कौन कौन
आश्रम में रुकेगा ?
.
संत की बात सुनकर सारे
शिष्य बोले की हम आपके
साथ चलेंगे.!
.
क्योंकि उनको पता था की
यहां आश्रम में रुकेंगे तो सारा
काम करना पड़ेगा।
.
इसलिये सभी बोले की हम
तो आपके साथ तीर्थ यात्रा पर
चलेंगे।
.
अब संत सोच में पड़ गये की
किसे साथ ले जाये और किसे
नही?
.
क्योंकि आश्रम पर किसी का
रुकना भी जरुरी था।
.
बालक रामदास संत के पास
आया और बोला बाबा अगर
आपको ठीक लगे तो मैं यहीं
आश्रम पर रुक जाता हूं ,,,
.
संत ने कहा ठीक है पर तुझे
काम करना पड़ेगा।
.
आश्रम की साफ सफाई मे
भले ही कमी रह जाये पर
ठाकुर जी की सेवा मे कोई
कमी मत रखना।
.
रामदास ने संत से कहा की
बाबा मुझे तो ठाकुर जी की
सेवा करनी नहीं आती
.
आप बता दीजिये कि ठाकुर
जी की सेवा कैसे करनी है ?
.
फिर मैं कर दूंगा।
.
संत रामदास को अपने साथ
मंदिर ले गये
.
वहां उस मंदिर मे राम दरबार
की झाँकी थी।
.
श्री राम जी,सीता जी, लक्ष्मण
जी और हनुमान जी थे।
.
संत ने बालक रामदास को
ठाकुर जी की सेवा कैसे करनी
है सब सिखा दिया।
.
रामदास ने गुरु जी से कहा
की बाबा मेरा इनसे रिश्ता क्या
होगा ये भी बता दो
.
क्योँकि अगर रिश्ता पता चल
जाये तो सेवा करने में आनंद
आयेगा।
.
उन संत ने बालक रामदास से
कहा की तु कहता था ना की
मेरा कोई नहीँ है...
.
तो आज से यह राम जी और
सीता जी तेरे माता-पिता हैं।
.
रामदास ने साथ में खड़े
लक्ष्मण जी को देखकर कहा
.
अच्छा बाबा और ये जो पास
में खड़े है वोह कौन है ?
.
संत ने कहा ये तेरे चाचा जी हैं
.
और हनुमान जी के लिये कहा
की ये तेरे बड़े भैय्या है।
.
रामदास सब समझ गया और
फिर उनकी सेवा करने लगा।
.
संत शिष्योँ के साथ यात्रा पर
चले गये।
.
आज सेवा का पहला दिन था
.
रामदास ने सुबह उठकर स्नान
किया और भीक्षा माँगकर लाया
.
और फिर भोजन तैयार किया
फिर भगवान को भोग लगाने
के लिये मंदिर आया।
.
रामदास ने श्री राम सीता
लक्ष्मण और हनुमान जी आगे
एक-एक थाली रख दी
.
और बोला अब पहले आप
खाओ फिर मैं भी खाऊँगा।
.
रामदास को लगा की सच मे
भगवान बैठकर खायेंगे.
.
पर बहुत देर हो गई रोटी तो
वैसी की वैसी थी।
.
तब बालक रामदास ने सोचा
नया नया रिश्ता बना है तो
शरमा रहे होंगे।
.
रामदास ने पर्दा लगा दिया बाद
मे खोलकर देखा तब भी खाना
वैसे का वैसा पड़ा था।
.
अब तो रामदास रोने लगा की
मुझसे सेवा मे कोई गलती हो
गई इसलिये खाना नही खा रहे
हैं।
.
और यह नहीँ खायेंगे तो मैँ भी
नही खाऊँगा और मैं भूख से
मर जाऊँगा..!
.
इसलिये मै तो अब पहाड़ से
कूदकर ही मर जाऊँगा।
.
रामदास मरने के लिए निकल
जाता है तब भगवान राम जी
हनुमान जी को कहते हैं
.
हनुमान जाओ उस बालक
को लेकर आओ और बालक
से कहो की हम खाना खाने के
लिये तैयार हैं।
.
हनुमान जी जाते हैं और
रामदास कूदने ही वाला होता
है कि हनुमान जी पीछे से पकड़
लेते हैं और बोलते है क्या कर
रहे हो?
.
रामदास कहता है आप कौन?
.
हनुमान जी कहते है मै तेरा
भैय्या हूँ इतनी जल्दी भूल गये?
.
रामदास कहता है अब आए
हो, इतनी देर से वहां बोल रहा
था की खाना खा लो तब आये
नहीं अब क्यों आ गए?
.
तब हनुमान जी बोले पिता श्री
का आदेश है, अब हम सब साथ
बैठकर खाना खाएंगे।
.
फिर राम जी,सीता जी, लक्ष्मण
जी ,हनुमान जी साक्षात बैठकर
भोजन करते हैं।
.
इसी तरह रामदास रोज उनकी
सेवा करता और भोजन करता।
.
सेवा करते करते 15 दिन हो गये,
.
एक दिन रामदास ने सोचा
की कोई भी माँ बाप हो वो
घर में काम तो करते ही हैं।
.
पर मेरे माँ बाप तो कोई
काम नहीँ करते सारे दिन खाते
रहते हैं।
.
मैं ऐसा नहीं चलने दूंगा।
.
रामदास मंदिर जाता है और
कहता है, पिता जी कुछ बात
करनी है आपसे।
.
राम जी कहते हैं बोल बेटा
क्या बात है ?
.
रामदास कहता है कन अब से
मैं अकेले काम नहीं करुंगा
आप सबको भी काम करना
पड़ेगा,
.
आप तो बस सारा दिन खाते
रहते हो और मैँ काम करता
रहता हूँ अब से ऐसा नहीँ होगा।
.
राम जी कहते हैं तो फिर
बताओ बेटा हमें क्या काम
करना है?
.
रामदास ने कहा माता जी अब
से रसोई आपके हवाले.
.
और चाचा जी(लक्ष्मणजी)
आप सब्जी तोड़कर लाओँगे.
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और भैय्या जी (हनुमान जी)आप लकड़ियाँ.लायेँगे.
.
और पिता जी(रामजी) आप
पत्तल बनाओगे।
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सबने कहा ठीक है।
.
अब सभी साथ मिलकर काम
करते हुऐ एक परिवार की तरह
सब साथ रहने लगे।
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एक दिन वो संत तीर्थ यात्रा
से लौटे तो सीधा मंदिर में गए
और देखा की मंदिर से प्रतिमाऐं
गायब हैं।
.
संत ने सोचा कहीं रामदास ने
प्रतिमा बेच तो नहीं दी?
.
संत ने रामदास को बुलाया और
पूछा भगवान कहें गए ?
.
रामदास भी अकड़कर बोला
की मुझे क्या पता रसोई में
कही काम कर रहे होंगे।
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संत बोले ये क्या बोल रहा?
.
रामदास ने कहा बाबा मैं सच
बोल रहा हूँ जबसे आप गये हो ये
चारों काम में लगे हुऐ हैं।
.
वो संत भागकर रसोई मेँ गये
और सिर्फ एक झलक देखी की
सीता माता जी भोजन बना रही हैं।
.
राम जी पत्तल बना रहे हैं।
तभी अचानक
वह चारों गायब हो गये।
.
और मंदिर में विराजमान हो गये।
.
संत रामदास के पास गये और
बोले आज तुमने मुझे मेरे ठाकुर
का दर्शन कराया तु धन्य है।
.
और संत ने रो रो कर रामदास
के पैर पकड़ लिये...!
.
कहने का अर्थ यही है कि
ठाकुर जी तो आज भी तैयार हैं
दर्शन देने के लिये पर कोई
रामदास जैसा भक्त भी तो होना
चाहीllllllllll
.
(((((( जय जय श्री राम ))))))
. 👌👏👍
पुराने ज़माने की बात है। किसी गाँव में एक सेठ रहेता था। उसका नाम था नाथालाल सेठ। वो जब भी गाँव के बाज़ार से निकलता था तब लोग उसे नमस्ते या सलाम करते थे , वो उसके जवाब में मुस्कुरा कर अपना सिर हिला देता था और बहुत धीरे से बोलता था की " घर जाकर बोल दूंगा "
एक बार किसी परिचित व्यक्ति ने सेठ को ये बोलते हुये सुन लिया। तो उसने कुतूहल वश सेठ को पूछ लिया कि सेठजी आप ऐसा क्यों बोलते हो के " घर जाकर बोल दूंगा "
तब सेठ ने उस व्यक्ति को कहा, में पहले धनवान नहीं था उस समय लोग मुझे 'नाथू ' कहकर बुलाते थे और आज के समय में धनवान हूँ तो लोग मुझे 'नाथालाल सेठ' कहकर बुलाते है। ये इज्जत मुझे नहीं धन को दे रहे है ,
इस लिए में रोज़ घर जाकर तिज़ोरी खोल कर लक्ष्मीजी (धन) को ये बता देता हूँ कि आज तुमको कितने लोगो ने नमस्ते या सलाम किया। इससे मेरे मन में अभिमान या गलतफहमी नहीं आती कि लोग मुझे मान या इज्जत दे रहे हैं। ... इज्जत सिर्फ पैसे की है इंसान की नहीं ..
This one is another truth of life
100% truth👍👍👍