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Tuesday, December 29, 2015

Fwd: [www.mgg.ammritvanni] समय और


Subject: [www.mgg.ammritvanni] समय और



समय और परिस्थितियाँ नहीं बदलते, तुम्हें ही बदलना होगा।



परम पूज्य सुधांशुजी महाराज



--
Madan Gopal Garga LM VJM द्वारा www.mgg.ammritvanni के लिए 12/29/2015 10:12:00 am को पोस्ट किया गया

समय और

समय और परिस्थितियाँ नहीं बदलते, तुम्हें ही बदलना होगा।



परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Sunday, December 13, 2015

भगवान् की कृपा

ध्यान रखो अगर भगवान् की कृपा है तो झोंपड़ी में भी खुशी से रहोगे , अगर कृपा नहीं है तो महल में भी दुःखी रहोगे !

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Friday, December 4, 2015

अपने अंहकार

अपने अंहकार का परित्याग करो। विनम्रता अपना लो।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Monday, November 30, 2015

पैसा




परम पूज्य सुधांशुजी महारा


पैसा ही सब कुछ नहीं है ,उसके पीछे मत् भागो !

Fwd:


---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga <mggarga2013@gmail.com>
Date: 2015-11-30 9:32 GMT+05:30
Subject:
To: Madan Gopal Garga <mggarga@gmail.com>


एक बार एक अजनबी किसी के घर
गया। वह अंदर
गया और मेहमान कक्ष मे बैठ गया। वह
खाली हाथ
आया था तो उसने सोचा कि कुछ
उपहार देना अच्छा रहेगा।
तो
उसने वहा टंगी एक पेन्टिंग उतारी
और जब घर का मालिक
आया, उसने पेन्टिंग देते हुए कहा, यह मै
आपके लिए
लाया हुँ। घर का मालिक, जिसे पता
था कि यह मेरी चीज
मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया !!!!!
अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट
पा कर, जो कि पहले
से ही उसका है, उस आदमी को खुश
होना चाहिए ??
मेरे ख्याल से नहीं....
लेकिन यही चीज हम भगवान के साथ
भी करते है। हम
उन्हे रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज
जो उनकी ही बनाई
है, उन्हें भेंट करते हैं! लेकिन
मन मे भाव रखते है की ये चीज मै
भगवान को दे रहा हूँ!
और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो
जाएगें। मूर्ख है हम!
हम यह नहीं समझते कि उनको इन सब
चीजो कि जरुरत
नही। अगर आप सच मे उन्हे कुछ देना
चाहते हैं
तो अपनी श्रद्धा दीजिए, उन्हे अपने
हर एक श्वास मे याद
कीजिये और
विश्वास मानिए प्रभु जरुर खुश
होगा !!
अजब हैरान हूँ भगवन
तुझे कैसे रिझाऊं मैं;
कोई वस्तु नहीं ऐसी
जिसे तुझ पर चढाऊं मैं ।
भगवान ने जवाब दिया :" संसार की
हर वसतु तुझे मैनें दी है। तेरे पास अपनी
चीज सिरफ तेरा अहंकार है, जो मैनें
नहीं दिया ।
उसी को तूं मेरे अरपण कर दे। तेरा
जीवन सफल हो
अगर इतना पढ़ने के बाद भी शेयर ना
करो तो बेकार है मेरा पोस्ट करना ।।
-


Sunday, November 29, 2015

अपने आप

अपने आप को आलोचना करके निराश मत करो।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Saturday, November 28, 2015

अपने अंहकार




अपने अंहकार का परित्याग करो। विनम्रता अपना लो।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज


एक गिलहरी रोज अपने

+91 99140 70715‬: एक गिलहरी रोज अपने काम पर समय  से आती थी और अपना काम पूर्ण मेहनत  तथा ईमानदारी से करती थी !  गिलहरी जरुरत से ज्यादा काम कर के  भी खूब खुश थी क्यों कि उसके मालिक .......  जंगल के राजा शेर नें उसे दस बोरी अखरोट  देने का वादा कर रक्खा था !  गिलहरी काम करते करते थक जाती थी  तो सोचती थी कि थोडी आराम कर लूँ ....  वैसे ही उसे याद आता था :- कि शेर उसे  दस बोरी अखरोट देगा - गिलहरी फिर  काम पर लग जाती !  गिलहरी जब दूसरे गिलहरीयों को खेलते -  कुदते देखती थी तो उसकी भी ईच्छा होती  थी कि मैं भी enjoy करूँ !  पर उसे अखरोट याद आ जाता था !  और वो फिर काम पर लग जाती !  शेर कभी - कभी उसे दूसरे शेर के पास  भी काम करने के लिये भेज देता था !  ऐसा नहीं कि शेर उसे अखरोट नहीं देना  चाहता था , शेर बहुत ईमानदार था !  ऐसे ही समय बीतता रहा....  एक दिन ऐसा भी आया जब जंगल के  राजा शेर ने गिलहरी को दस बोरी अखरोट  दे कर आजाद कर दिया !  गिलहरी अखरोट के पास बैठ कर सोचने  लगी कि:-अब अखरोट हमारे किस काम के ?  पुरी जिन्दगी काम करते - करते दाँत तो घिस  गये, इसे खाऊँगी कैसे !  यह कहानी आज जीवन की हकीकत  बन चुकी है !  इन्सान अपनी ईच्छाओं का त्याग करता है,  और पुरी जिन्दगी नौकरी में बिता देता है !  60 वर्ष की ऊम्र जब वो रिटायर्ड होता है  तो उसे उसका फन्ड मिलता है !  तब तक जनरेसन बदल चुकी होती है, परिवार  को चलाने वाला मुखिया बदल जाता है ।  क्या नये मुखिया को इस बात का अन्दाजा  लग पयेगा की इस फन्ड के लिये : -  कितनी इच्छायें मरी होगी ?  कितनी तकलीफें मिलि होगी ?  कितनें सपनें रहे  क्या फायदा ऐसे फन्ड का जिसे  पाने के लिये पूरी जिन्दगी लगाई जाय  और उसका इस्तेमाल खुद न कर सके !  "इस धरती पर कोई ऐसा आमीर अभी  तक पैदा नहीं हुआ जो बिते हुए समय  को खरीद सके ।  TIME IS MONEY  26/11/2015, 9:56 PM - ‪+91 98781 22099‬: एक बार एक अजनबी किसी के घर  गया। वह अंदर  गया और मेहमान कक्ष मे बैठ गया। वह  खाली हाथ  आया था तो उसने सोचा कि कुछ  उपहार देना अच्छा रहेगा।  तो  उसने वहा टंगी एक पेन्टिंग उतारी  और जब घर का मालिक  आया, उसने पेन्टिंग देते हुए कहा, यह मै  आपके लिए  लाया हुँ। घर का मालिक, जिसे पता  था कि यह मेरी चीज  मुझे ही भेंट दे रहा है, सन्न रह गया !!!!!  अब आप ही बताएं कि क्या वह भेंट  पा कर, जो कि पहले  से ही उसका है, उस आदमी को खुश  होना चाहिए ??  मेरे ख्याल से नहीं....  लेकिन यही चीज हम भगवान के साथ  भी करते है। हम  उन्हे रूपया, पैसा चढाते है और हर चीज  जो उनकी ही बनाई  है, उन्हें भेंट करते हैं! लेकिन  मन मे भाव रखते है की ये चीज मै  भगवान को दे रहा हूँ!  और सोचते हैं कि ईश्वर खुश हो  जाएगें। मूर्ख है हम!  हम यह नहीं समझते कि उनको इन सब  चीजो कि जरुरत  नही। अगर आप सच मे उन्हे कुछ देना  चाहते हैं  तो अपनी श्रद्धा दीजिए, उन्हे अपने  हर एक श्वास मे याद  कीजिये और  विश्वास मानिए प्रभु जरुर खुश  होगा !!  अजब हैरान हूँ भगवन  तुझे कैसे रिझाऊं मैं;  कोई वस्तु नहीं ऐसी  जिसे तुझ पर चढाऊं मैं ।  भगवान ने जवाब दिया :" संसार की  हर वसतु तुझे मैनें दी है। तेरे पास अपनी  चीज सिरफ तेरा अहंकार है, जो मैनें  नहीं दिया ।  उसी को तूं मेरे अरपण कर दे। तेरा  जीवन सफल हो  अगर इतना पढ़ने के बाद भी शेयर ना  करो तो बेकार है मेरा पोस्ट करना ।।  -

Thursday, November 26, 2015

उनके बैर का कांटा




दुनिया में बहुत से ऐसे भी लोग होते हें जो उपर -उपर से दया कर रहे होते हैं और अन्दर उनके बैर का कांटा उपजा होता हे ,हिंसा से सने होते हैं ! ऐसे लोग सत्संग -भजन , लडाई झगडा सब साथ -साथ कर रहे होते हैं अगर कोई दुकान में बैठा हे और गरीब भीख मांगने वाला सुभह -सुभह आ जाए तो हाथ में डण्डा पकडा हुआ हे और बोलता भी जाता हे कि -

प्रेम वाला



प्रेम वाला इंसान ही दुनिया में निर्माण कर सकता है।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Tuesday, November 24, 2015

एक दूसरे के



एक दूसरे के लिए जो कुछ कर सकते हो, करो।


परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Sunday, November 22, 2015

prarthna




परम पूज्य सुधांशुजी महारा

prarthna
bhagvan jo aap chahate hain agar v n kar sakun to aisi samajh do ki jo aap nahi chahate v bhee n karoon

Wednesday, November 18, 2015

अपनी प्रतिष्टा को


  • अपनी प्रतिष्टा को भूलकर ,अकिंचन बनकर गुरू के darदर पर सेवा करने से जो प्राप्ति होगी ,उसकी कोई बराबरी नहीं !
  • सुधान्शुजी जी महाराज

Tuesday, November 17, 2015

समय और

समय और परिस्थितियाँ नहीं बदलते, तुम्हें ही बदलना होगा।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Saturday, November 7, 2015

Fwd: [www.mgg.ammritvanni] सीखना


---------- Forwarded message ----------
From: Madan Gopal Garga LM VJM <mggarga@gmail.com>
Date: 2015-11-07 10:06 GMT+05:30
Subject: [www.mgg.ammritvanni] सीखना
To: mggarga1932@gmail.com


सीखना जारी रहना चाहिए, सीखना रुकना नही चाहिए।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज



--
Madan Gopal Garga LM VJM द्वारा www.mgg.ammritvanni के लिए 11/07/2015 10:06:00 am को पोस्ट किया गया

सीखना

सीखना जारी रहना चाहिए, सीखना रुकना नही चाहिए।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Thursday, November 5, 2015

कीमती पैसा नहीं

कीमती पैसा नहीं है वह तो जीवन चलाने के लिए है। जीवन को कीमती बनाने के लिए कीमती है सदविचार्।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Sunday, October 25, 2015

Fwd:


Subject: kahani

One day all the disciples went to their master' and said, "Master, Master, we all are going on a pilgrimage.

Master: Why you want to go on a pilgrimage trip?

Disciples: So that we can improve our devotion.

Master: OK. Then do me a favour. Please take this karela (bitter gourd) along with you and wherever you go and whichever temple you visit, place it in the alter of the Deity, take the blessings and bring it back.

So, not only the disciples but the Karela also went on pilgrimage, temple to temple.

And finally when they came back, the Master said, "cook that karela and serve it to me."

The disciples cooked it and served it to the master.

After having the first bite, the master said,

"Surprising"!!!!!

Disciples: What's so surprising?

Master: Even after the pilgrimage the karela is still bitter.
How come???'

Disciples: But that's the very nature of the Karela, Master.

Master: That's what I am saying. Unless you change your nature, pilgrimage will not make any difference.

So, you & I, if we do not change ourselves no teacher or guru can make a difference in our lives.

If you think positively,
Sound becomes music,
Movement become dance,
Smile becomes laughter,
Mind becomes meditative
&
Life becomes a celebration.


Saturday, October 24, 2015

जीवन का उद्देश्य


मनुष्य जीवन का उद्देश्य अपने आपको जानना और प्रभु को पाना है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

20 रूपये लीटर में बिक


आज देश के 80% रेलवे स्टेशन
पर खारा पानी मिलता
है।
और बोतल बँद पानी धड्ले
से 20 रूपये लीटर में बिक
रहा है।
मेरा मानना है की
करोड़ो रूपये की लागत से
बने रेलवे स्टेशन पर क्या
3-4 लाख रूपये और लगाकर
30-40 RO water फ़िल्टर
नहीं लगाये जा सकते।
आप कह सकते है की इनका
maintenence महंगा हो
जायेगा तो मेरा तर्क है
की क्या इन RO के पास में
दान पात्र रखा जा
सकता है।
मुझे पूरा विशवास है की
मेरे भारत वर्ष की
दानवीर जनता 1-2 रूपये
करके daily इतना पैसा तो
डाल ही देगी की जितने से
इन RO का daily
maintenence हो सके।
इससे न केवल जनता को
मज़बूरी में पानी 20 रूपये
लीटर खरीदना पड़ेगा
बल्कि साथ ही प्लास्टिक
बोतलों से पर्यावरण को
होने वाले नुकसान से देश
को मुक्ति मिल जाएगी।
हाँ ऐसा होने पर पानी
बेचने वालो की जरुर
छुट्टी हो जाएगी।
किसी सरकार ने ऐसा
किया नहीं
क्योंकि 1 रूपये से भी कम
का पानी जब 20 रूपये में
बिकता है तो शेयर उपर
तक जाता है।
क्या इस पानी घोटाले
को बंद करवाने के लिए आप
हमारे साथ हैं।
अगर हाँ तो ये मेसेज इतना
शेयर कीजिये की सरकार
तक पहुँच जाये।
क्या आप एक जिम्मेदार
नागरिक होंने का फ़र्ज़
निभाएंगे ?

Fwd: Shared a post - "*Pujyavar with Pujya Morari Bapu in Gujarat..."

yavar with Pujya Morari Bapu in Gujarat..."

Pujyavar with Pujya Morari Bapu in Gujarat Ram Katha on October 20, 2015
Om Guruve Namah ! Historic Moments.....Do santon ka milan Hariom All. Earlier this week on October 20, 2015 our Sadguru was in Gujarat at the Holy ram Katha on invitation of Pujya Morari Bapuji. Two God-Realized saints together and thousands of devotees fee...
image not displayed
Pujyavar with Pujya Morari Bapu in Gujarat Ram Katha on October 20, 2015
Om Guruve Namah ! Historic Moments.....Do santon ka milan Hariom All. Earlier this week on October 20, 2015 our Sadguru was in Gujarat at the Hol...

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Friday, October 23, 2015

Fwd:


[5:03pm, 22/10/2015] ‪+91 95680 93670‬: आप सभी को विजय दशमी  के पावन पर्व की ढेरो बधाइयाँ।

यह पर्व मुझे बहुत प्रिय हैं। क्योंकि आज के दिन ही राम जी ने दशानन रावण का वध किया था।

और यहाँ रावण है हमारी दस इन्द्रियों (5 कर्मेन्द्रियाँ और 5 ज्ञानेन्द्रियाँ )का प्रतीक ।

और राम जी हैं जीव का प्रतीक।

जानकी जी हैं भक्ति का प्रतीक।

जब जीव अपनी इन्द्रियों के वशीभूत होकर काम करता है तो वो अपना विवेक खोकर शास्त्रों के विरुद्ध काम करता है जिनसे नए प्रारब्ध बनते हैं।

जिनके कारण उसके नए जन्म का योग बन जाता है। और जीव इन्ही इन्द्रियों की तृप्ति को पाने के लिए 84 लाख योनियो में भटकता रहता है।

ये वोही इन्द्रिय तृप्ति का हेतु है जिसकी वजह से हमारी भक्ति कहीं खो गई है और ये वोही दसानन है जो हमारी भक्ति रूपी जानकी जी को चुरा ले गया।

" नाथ दसानन यह गति किन्हीं,
तेहिं खल जनक सुता हर लीन्हीं।"

इसलिए आज से हम अपने हृदय भवन में श्री रघुनाथ जी को बिठाएं और उनसे करुण प्रार्थना करें की प्रभु मेरे हिर्दय से संसार के भोग विलासिता को मिटा के आप श्री जानकी जी सहित विराजे।

"रामकथा मंदाकिनी चित्रकूट चित चारु ।
तुलसी सुभग सनेह बन सिय रघुबीर बिहारु।।"
रावण का पुतला बहार से नहीं अपने हृदय में बैठे रावण से जलाना है।
इस विजयदशमी पर .... जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ९० वाँ स्थापना दिवस भी है, मैं सब भारतवासियों का अभिनन्दन करता हूँ, और प्रार्थना करता हूँ कि भारत माँ अपने द्विगुणित परम वैभव के साथ अखण्डता के सिंहासन पर विराजमान हो।सनातन धर्म की पुनर्प्रतिष्ठा हो और असत्य और अन्धकार का भारत में कहीं पर भी कोई अस्तित्व न रहे।
........../)(\
........//) (\\
......///) (\\\
....////)..(\\\\
....\....\.../..../
......\....)(..../
....../.../..\...\
....███⊥███
आप सब में हृदयस्थ भगवान श्री नारायण को प्रणाम! आप सभी महान् आत्माओं को मेरा सादर नमन् वंदन प्रणाम शत-शत चरण-वन्दन स्वीकार हो !! आप सब की जय हो!!
"जैसी दृष्टि वैसी सृष्टि"दीपक अग्रवाल !
अयोध्या से वापस आने
पर मां कौशल्या ने पूछा
रावण को मार दिया?
राम जी ने सुन्दर जवाब दिया-
उसे मैंने नहीं मारा,
उसे "मै" ने मारा है.
आप एवम् आपके समस्त परिवार को राम नवमी एंव दशहरा की हार्दिक बधाई...
।। जय श्री राम ।।
[5:06pm, 22/10/2015] ‪+91 95680 93670‬: चाणक्य के 15 अमर वाक्य | शेयर करें | सीखें और सीखयें
|
1)दुनिया की सबसे बड़ी ताकत पुरुष का विवेक
और महिला की सुन्दरता है।
2)हर मित्रता के पीछे कोई स्वार्थ जरूर होता है, यह
कड़वा सच है।
3)अपने बच्चों को पहले पांच साल तक खूब प्यार करो।
छः साल से पंद्रह साल तक कठोर अनुशासन और संस्कार
दो।
सोलह साल से उनके साथ मित्रवत व्यवहार करो।
आपकी संतति ही आपकी सबसे अच्छी मित्र है।"
4)दूसरों की गलतियों से सीखो
अपने ही ऊपर प्रयोग करके सीखने को तुम्हारी आयु कम
पड़ेगी।
5)किसी भी व्यक्ति को बहुत ईमानदार नहीं होना
चाहिए।
सीधे वृक्ष और व्यक्ति पहले काटे जाते हैं।
6)अगर कोई सर्प जहरीला नहीं है
तब भी उसे जहरीला दिखना चाहिए वैसे दंश भले ही न
हो
पर दंश दे सकने की क्षमता का दूसरों को अहसास
करवाते रहना चाहिए।
7)कोई भी काम शुरू करने के पहले तीन सवाल अपने आपसे
पूछो...
मैं ऐसा क्यों करने जा रहा हूँ ?
इसका क्या परिणाम होगा ?
क्या मैं सफल रहूँगा?
8)भय को नजदीक न आने दो अगर यह नजदीक आये
इस पर हमला कर दो यानी भय से भागो मत
इसका सामना करो।
9)काम का निष्पादन करो, परिणाम से मत डरो।
10)सुगंध का प्रसार हवा के रुख का मोहताज़ होता है
पर अच्छाई सभी दिशाओं में फैलती है।"
11)ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है
अपनी आत्मा को मंदिर बनाओ।
12)व्यक्ति अपने आचरण से महान होता है
जन्म से नहीं।
13)ऐसे व्यक्ति जो आपके स्तर से ऊपर या नीचे के हैं
उन्हें दोस्त न बनाओ,
वह तुम्हारे कष्ट का कारण बनेगे।
समान स्तर के मित्र ही सुखदायक होते हैं।
14)अज्ञानी के लिए किताबें और
अंधे के लिए दर्पण एक समान उपयोगी है।
15)शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है।
शिक्षित व्यक्ति सदैव सम्मान पाता है।
शिक्षा की शक्ति के आगे युवा शक्ति और सौंदर्य
दोनों ही कमजोर है
राजा भोज ने कवि कालीदास से दस सर्वश्रेष्ट सवाल किए
1- दुनिया में भगवान की सर्वश्रेष्ठ रचना क्या है?
उत्तर- ''मां''
2- सर्वश्रेष्ठ फूल कौन सा है?
उत्तर- "कपास का फूल"
3- सर्वश्र॓ष्ठ सुगंध कौनसी है
उत्तर- वर्षा से भीगी मिट्टी की सुगंध ।
4-सर्वश्र॓ष्ठ मिठास कौनसी
- "वाणी की"
5- सर्वश्रेष्ठ दूध-
"मां का"
6- सबसे से काला क्या है
"कलंक"
7- सबसे भारी क्या है
"पाप"
8- सबसे सस्ता क्या है
"सलाह"
9- सबसे महंगा क्या है
"सहयोग"
10-सबसे कडवा क्या है
ऊत्तर- "सत्य".
वो डांट कर अपने बच्चो को अकेले मे रोती है,
.
वो माँ है, और माँ एसी ही
होती है ।
जितना बडा प्लाट होता है, उतना बडा बंगला नही होता !! जितना बडा बंगला होता है,उतना बडा दरवाजा नही होता !! जितना बडा दरवाजा होता है ,उतना बडा ताला नही होता !!
जितना बडा ताला होता है , उतनी बडी चाबी नही होती !! परन्तु चाबी पर पुरे बंगले का आधार होता है।
इसी तरह मानव के जीवन मे बंधन और मुक्ति का आधार मन की चाबी पर ही निर्भर होता है।
है मानव....तू सबकुछ कर पर किसी को परेशान मत कर,जो बात समझ न आऐ उस बात मे मत पड़ !
पैसे के अभाव मे जगत 1% दूखी है,समझ के अभाव मे जगत 99% दूखी है !!!

आज का श्रेष्ठ विचार:-
यदि आप धर्म करोगे तो भगवान से आपको माँगना पड़ेगा...,
लेकिन यदि आप कर्म करोगे तो भगवान को देना पड़ेगा..!
👏👏👏👏👏👏किरपा करके पढने के बाद अपने दोस्तों को जरुर भेजे


Fwd:

recd from manorma
एक कहानी जो आपके जीवन से जुडी है ।
ध्यान से अवश्य पढ़ें--
एक अतिश्रेष्ठ व्यक्ति थे
एक दिन उनके पास एक निर्धन आदमी आया और बोला की मुझे अपना खेत कुछ साल के लिये उधार दे दीजिये ,मैं उसमे खेती करूँगा और खेती करके कमाई करूँगा,
वह अतिश्रेष्ठ व्यक्ति बहुत दयालु थे
उन्होंने उस निर्धन व्यक्ति को अपना खेत दे दिया और साथ में पांच किसान भी सहायता के रूप में खेती करने को दिये और कहा की इन पांच किसानों को साथ में लेकर खेती करो, खेती करने में आसानी होगी,
इस से तुम और अच्छी फसल की खेती करके कमाई कर पाओगे।
वो निर्धन आदमी ये देख के बहुत खुश हुआ की उसको उधार में खेत भी मिल गया और साथ में पांच सहायक किसान भी मिल गये।
लेकिन वो आदमी अपनी इस ख़ुशी में बहुत खो गया,
और वह पांच किसान अपनी मर्ज़ी से खेती करने लगे और वह निर्धन आदमी अपनी ख़ुशी में डूबा रहा,
और जब फसल काटने का समय आया तो देखा की फसल बहुत ही ख़राब हुई थी , उन पांच किसानो ने खेत का उपयोग अच्छे से नहीं किया था न ही अच्छे बीज डाले ,जिससे फसल अच्छी हो सके |
जब वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति ने अपना खेत वापस माँगा तो वह निर्धन व्यक्ति रोता हुआ बोला की मैं बर्बाद हो गया , मैं अपनी ख़ुशी में डूबा रहा और इन पांच किसानो को नियंत्रण में न रख सका न ही इनसे अच्छी खेती करवा सका।
अब यहाँ ध्यान दीजियेगा-
वह अतिश्रेष्ठ दयालु व्यक्ति हैं -''मेरे सतगुरु"
निर्धन व्यक्ति हैं -"हम"
खेत है -"हमारा शरीर"
पांच किसान हैं हमारी इन्द्रियां--आँख,कान,नाक,जीभ और मन |
प्रभु ने हमें यह शरीर रुपी खेत अच्छी फसल(कर्म) करने को दिया है और हमें इन पांच किसानो को अर्थात इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रख कर कर्म करने चाहियें ,जिससे जब वो दयालु प्रभु जब ये शरीर वापस मांग कर हिसाब करें तो हमें रोना न पड़े।
🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏


Thursday, October 22, 2015

जिज्ञासु :-पूज्य गुरूदेव : अगर भाग्य के अनुसार

जिज्ञासु :-पूज्य गुरूदेव :  अगर भाग्य के अनुसार ही मिलता है तो जीवन में कर्म क़ा क्या महत्त्व है ?
पूज्य गुरूदेव : माना कि -------------------------------  फिर आपके द्वारा किये गए कर्म का प्रभाव दिखना शुरू हो जाएगा !

एक स्त्री मर गयी थी

एक स्त्री मर गयी थी, उसकी आत्मा को  लाना था। देवदूत आया, लेकिन चिंता में पड़  गया। क्योंकि तीन छोटी-छोटी लड़कियां  जुड़वां–एक अभी भी उस मृत स्त्री के स्तन से लगी  है। एक चीख रही है, पुकार रही है। एक रोते-रोते  सो गयी है, उसके आंसू उसकी आंखों के पास सूख  गए हैं–तीन छोटी जुड़वां बच्चियां और स्त्री मर  गयी है, और कोई देखने वाला नहीं है। पति पहले  मर चुका है। परिवार में और कोई भी नहीं है। इन  तीन छोटी बच्चियों का क्या होगा?  उस देवदूत को यह खयाल आ गया, तो वह खाली  हाथ वापस लौट गया। उसने जा कर अपने प्रधान  को कहा कि मैं न ला सका, मुझे क्षमा करें,  लेकिन आपको स्थिति का पता ही नहीं है।  तीन जुड़वां बच्चियां हैं–छोटी-छोटी, दूध  पीती। एक अभी भी मृत स्तन से लगी है, एक  रोते-रोते सो गयी है, दूसरी अभी चीख-पुकार  रही है। हृदय मेरा ला न सका। क्या यह नहीं हो  सकता कि इस स्त्री को कुछ दिन और जीवन के दे  दिए जाएं? कम से कम लड़कियां थोड़ी बड़ी हो  जाएं। और कोई देखने वाला नहीं है।  मृत्यु के देवता ने कहा, तो तू फिर समझदार हो  गया; उससे ज्यादा, जिसकी मर्जी से मौत  होती है, जिसकी मर्जी से जीवन होता है! तो  तूने पहला पाप कर दिया, और इसकी तुझे सजा  मिलेगी। और सजा यह है कि तुझे पृथ्वी पर चले  जाना पड़ेगा। और जब तक तू तीन बार न हंस लेगा  अपनी मूर्खता पर, तब तक वापस न आ सकेगा।  इसे थोड़ा समझना। तीन बार न हंस लेगा अपनी  मूर्खता पर–क्योंकि दूसरे की मूर्खता पर तो  अहंकार हंसता है। जब तुम अपनी मूर्खता पर हंसते  हो तब अहंकार टूटता है।  देवदूत को लगा नहीं। वह राजी हो गया दंड  भोगने को, लेकिन फिर भी उसे लगा कि सही  तो मैं ही हूं। और हंसने का मौका कैसे आएगा?  उसे जमीन पर फेंक दिया गया। एक चमार,  सर्दियों के दिन करीब आ रहे थे और बच्चों के  लिए कोट और कंबल खरीदने शहर गया था, कुछ  रुपए इकट्ठे कर के। जब वह शहर जा रहा था तो  उसने राह के किनारे एक नंगे आदमी को पड़े हुए,  ठिठुरते हुए देखा। यह नंगा आदमी वही देवदूत है  जो पृथ्वी पर फेंक दिया गया था। उस चमार  को दया आ गयी। और बजाय अपने बच्चों के लिए  कपड़े खरीदने के, उसने इस आदमी के लिए कंबल और  कपड़े खरीद लिए। इस आदमी को कुछ खाने-पीने  को भी न था, घर भी न था, छप्पर भी न था  जहां रुक सके। तो चमार ने कहा कि अब तुम मेरे  साथ ही आ जाओ। लेकिन अगर मेरी पत्नी  नाराज हो–जो कि वह निश्चित होगी,  क्योंकि बच्चों के लिए कपड़े खरीदने लाया था,  वह पैसे तो खर्च हो गए–वह अगर नाराज हो,  चिल्लाए, तो तुम परेशान मत होना। थोड़े दिन  में सब ठीक हो जाएगा।  उस देवदूत को ले कर चमार घर लौटा। न तो चमार  को पता है कि देवदूत घर में आ रहा है, न पत्नी  को पता है। जैसे ही देवदूत को ले कर चमार घर में  पहुंचा, पत्नी एकदम पागल हो गयी। बहुत  नाराज हुई, बहुत चीखी-चिल्लायी।  और देवदूत पहली दफा हंसा। चमार ने उससे कहा,  हंसते हो, बात क्या है? उसने कहा, मैं जब तीन  बार हंस लूंगा तब बता दूंगा।  देवदूत हंसा पहली बार, क्योंकि उसने देखा कि  इस पत्नी को पता ही नहीं है कि चमार देवदूत  को घर में ले आया है, जिसके आते ही घर में  हजारों खुशियां आ जाएंगी। लेकिन आदमी देख  ही कितनी दूर तक सकता है! पत्नी तो इतना  ही देख पा रही है कि एक कंबल और बच्चों के kapde  नहीं बचे। जो खो गया है वह देख पा रही है, जो  मिला है उसका उसे अंदाज ही नहीं है–मुफ्त! घर में  देवदूत आ गया है। जिसके आते ही हजारों  खुशियों के द्वार खुल जाएंगे। तो देवदूत हंसा। उसे  लगा, अपनी मूर्खता–क्योंकि यह पत्नी भी  नहीं देख पा रही है कि क्या घट रहा है!  जल्दी ही, क्योंकि वह देवदूत था, सात दिन में  ही उसने चमार का सब काम सीख लिया। और  उसके जूते इतने प्रसिद्ध हो गए कि चमार महीनों  के भीतर धनी होने लगा। आधा साल होते-होते  तो उसकी ख्याति सारे लोक में पहुंच गयी कि  उस जैसा जूते बनाने वाला कोई भी नहीं,  क्योंकि वह जूते देवदूत बनाता था। सम्राटों के  जूते वहां बनने लगे। धन अपरंपार बरसने लगा।  एक दिन सम्राट का आदमी आया। और उसने कहा  कि यह चमड़ा बहुत कीमती है, आसानी से  मिलता नहीं, कोई भूल-चूक नहीं करना। जूते ठीक  इस तरह के बनने हैं। और ध्यान रखना जूते बनाने हैं,  स्लीपर नहीं। क्योंकि रूस में जब कोई आदमी मर  जाता है तब उसको स्लीपर पहना कर मरघट तक ले  जाते हैं। चमार ने भी देवदूत को कहा कि स्लीपर  मत बना देना। जूते बनाने हैं, स्पष्ट आज्ञा है, और  चमड़ा इतना ही है। अगर गड़बड़ हो गयी तो हम  मुसीबत में फंसेंगे।  लेकिन फिर भी देवदूत ने स्लीपर ही बनाए। जब  चमार ने देखे कि स्लीपर बने हैं तो वह क्रोध से  आगबबूला हो गया। वह लकड़ी उठा कर उसको  मारने को तैयार हो गया कि तू हमारी फांसी  लगवा देगा! और तुझे बार-बार कहा था कि  स्लीपर बनाने ही नहीं हैं, फिर स्लीपर  किसलिए?  देवदूत फिर खिलखिला कर हंसा। तभी आदमी  सम्राट के घर से भागा हुआ आया। उसने कहा, जूते  मत बनाना, स्लीपर बनाना। क्योंकि सम्राट  की मृत्यु हो गयी है।  भविष्य अज्ञात है। सिवाय उसके और किसी  को ज्ञात नहीं। और आदमी तो अतीत के आधार  पर निर्णय लेता है। सम्राट जिंदा था तो जूते  चाहिए थे, मर गया तो स्लीपर चाहिए। तब वह  चमार उसके पैर पकड़ कर माफी मांगने लगा कि  मुझे माफ कर दे, मैंने तुझे मारा। पर उसने कहा, कोई  हर्ज नहीं। मैं अपना दंड भोग रहा हूं।  लेकिन वह हंसा आज दुबारा। चमार ने फिर पूछा  कि हंसी का कारण? उसने कहा कि जब मैं तीन  बार हंस लूं…।  दुबारा हंसा इसलिए कि भविष्य हमें ज्ञात नहीं  है। इसलिए हम आकांक्षाएं करते हैं जो कि व्यर्थ  हैं। हम अभीप्साएं करते हैं जो कि कभी पूरी न  होंगी। हम मांगते हैं जो कभी नहीं घटेगा।  क्योंकि कुछ और ही घटना तय है। हमसे बिना  पूछे हमारी नियति घूम रही है। और हम व्यर्थ ही  बीच में शोरगुल मचाते हैं। चाहिए स्लीपर और हम  जूते बनवाते हैं। मरने का वक्त करीब आ रहा है और  जिंदगी का हम आयोजन करते हैं।  तो देवदूत को लगा कि वे बच्चियां! मुझे क्या  पता, भविष्य उनका क्या होने वाला है? मैं  नाहक बीच में आया।  और तीसरी घटना घटी कि एक दिन तीन  लड़कियां आयीं जवान। उन तीनों की शादी  हो रही थी। और उन तीनों ने जूतों के आर्डर  दिए कि उनके लिए जूते बनाए जाएं। एक बूढ़ी  महिला उनके साथ आयी थी जो बड़ी धनी  थी। देवदूत पहचान गया, ये वे ही तीन लड़कियां  हैं, जिनको वह मृत मां के पास छोड़ गया था और  जिनकी वजह से वह दंड भोग रहा है। वे सब स्वस्थ  हैं, सुंदर हैं। उसने पूछा कि क्या हुआ? यह बूढ़ी  औरत कौन है? उस बूढ़ी औरत ने कहा कि ये मेरी  पड़ोसिन की लड़कियां हैं। गरीब औरत थी, उसके  शरीर में दूध भी न था। उसके पास पैसे-लत्ते भी  नहीं थे। और तीन बच्चे जुड़वां। वह इन्हीं को दूध  पिलाते-पिलाते मर गयी। लेकिन मुझे दया आ  गयी, मेरे कोई बच्चे नहीं हैं, और मैंने इन तीनों  बच्चियों को पाल लिया।  अगर मां जिंदा रहती तो ये तीनों बच्चियां  गरीबी, भूख और दीनता और दरिद्रता में बड़ी  होतीं। मां मर गयी, इसलिए ये बच्चियां तीनों  बहुत बड़े धन-वैभव में, संपदा में पलीं। और अब उस  बूढ़ी की सारी संपदा की ये ही तीन मालिक  हैं। और इनका सम्राट के परिवार में विवाह हो  रहा है।  देवदूत तीसरी बार हंसा। और चमार को उसने  कहा कि ये तीन कारण हैं। भूल मेरी थी।  नियति बड़ी है। और हम उतना ही देख पाते हैं,  जितना देख पाते हैं। जो नहीं देख पाते, बहुत  विस्तार है उसका। और हम जो देख पाते हैं उससे  हम कोई अंदाज नहीं लगा सकते, जो होने वाला  है, जो होगा। मैं अपनी मूर्खता पर तीन बार हंस  लिया हूं। अब मेरा दंड पूरा हो गया और अब मैं  जाता हूं।  नानक जो कह रहे हैं, वह यह कह रहे हैं कि तुम अगर  अपने को बीच में लाना बंद कर दो, तो तुम्हें  मार्गों का मार्ग मिल गया। फिर असंख्य  मार्गों की चिंता न करनी पड़ेगी। छोड़ दो उस  पर। वह जो करवा रहा है, जो उसने अब तक  करवाया है, उसके लिए धन्यवाद। जो अभी  करवा रहा है, उसके लिए धन्यवाद। जो वह कल  करवाएगा, उसके लिए धन्यवाद। तुम बिना  लिखा चेक धन्यवाद का उसे दे दो। वह जो भी  हो, तुम्हारे धन्यवाद में कोई फर्क न पड़ेगा।  अच्छा लगे, बुरा लगे, लोग भला कहें, बुरा कहें,  लोगों को दिखायी पड़े दुर्भाग्य या  सौभाग्य, यह सब चिंता तुम मत करो...

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Subject: ravan

मर चुका है रावण का शरीर
स्तब्ध है सारी लंका
सुनसान है किले का परकोटा
कहीं कोई उत्साह नहीं
किसी घर में नहीं जल रहा है दिया
विभीषण के घर को छोड़ कर ।

सागर के किनारे बैठे हैं विजयी राम
विभीषण को लंका का राज्य सौंपते हुए
ताकि सुबह हो सके उनका राज्याभिषेक
बार-बार लक्ष्मण से पूछते हैं
अपने सहयोगियों की कुशल-क्षेम
चरणों के निकट बैठे हैं हनुमान !

मन में क्षुब्ध हैं लक्ष्मण
कि राम क्यों नहीं लेने जाते हैं सीता को
अशोक वाटिका से
पर कुछ कह नहीं पाते हैं ।

धीरे-धीरे सिमट जाते हैं सभी काम
हो जाता है विभीषण का राज्याभिषेक
और राम प्रवेश करते हैं लंका में
ठहरते हैं एक उच्च भवन में ।

भेजते हैं हनुमान को अशोक-वाटिका
यह समाचार देने के लिए
कि मारा गया है रावण
और अब लंकाधिपति हैं विभीषण ।

सीता सुनती हैं इस समाचार को
और रहती हैं ख़ामोश
कुछ नहीं कहती
बस निहारती है रास्ता
रावण का वध करते ही
वनवासी राम बन गए हैं सम्राट ?

लंका पहुँच कर भी भेजते हैं अपना दूत
नहीं जानना चाहते एक वर्ष कहाँ रही सीता
कैसे रही सीता ?
नयनों से बहती है अश्रुधार
जिसे समझ नहीं पाते हनुमान
कह नहीं पाते वाल्मीकि ।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन परिचारिकाओं से
जिन्होंने मुझे भयभीत करते हुए भी
स्त्री की पूर्ण गरिमा प्रदान की
वे रावण की अनुचरी तो थीं
पर मेरे लिए माताओं के समान थीं ।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन अशोक वृक्षों से
इन माधवी लताओं से
जिन्होंने मेरे आँसुओं को
ओस के कणों की तरह सहेजा अपने शरीर पर
पर राम तो अब राजा हैं
वह कैसे आते सीता को लेने ?

विभीषण करवाते हैं सीता का शृंगार
और पालकी में बिठा कर पहुँचाते है राम के भवन पर
पालकी में बैठे हुए सीता सोचती है
जनक ने भी तो उसे विदा किया था इसी तरह !

वहीं रोक दो पालकी,
गूँजता है राम का स्वर
सीता को पैदल चल कर आने दो मेरे समीप !
ज़मीन पर चलते हुए काँपती है भूमिसुता
क्या देखना चाहते हैं
मर्यादा पुरुषोत्तम, कारावास में रह कर
चलना भी भूल जाती हैं स्त्रियाँ ?

अपमान और उपेक्षा के बोझ से दबी सीता
भूल जाती है पति-मिलन का उत्साह
खड़ी हो जाती है किसी युद्ध-बन्दिनी की तरह !

कुठाराघात करते हैं राम ---- सीते, कौन होगा वह पुरुष
जो वर्ष भर पर-पुरुष के घर में रही स्त्री को
करेगा स्वीकार ?
मैं तुम्हें मुक्त करता हूँ, तुम चाहे जहाँ जा सकती हो ।

उसने तुम्हें अंक में भर कर उठाया
और मृत्युपर्यंत तुम्हें देख कर जीता रहा
मेरा दायित्व था तुम्हें मुक्त कराना
पर अब नहीं स्वीकार कर सकता तुम्हें पत्नी की तरह !

वाल्मीकि के नायक तो राम थे
वे क्यों लिखते सीता का रुदन
और उसकी मनोदशा ?
उन क्षणों में क्या नहीं सोचा होगा सीता ने
कि क्या यह वही पुरुष है
जिसका किया था मैंने स्वयंवर में वरण
क्या यह वही पुरुष है जिसके प्रेम में
मैं छोड़ आई थी अयोध्या का महल
और भटकी थी वन-वन !

हाँ, रावण ने उठाया था मुझे गोद में
हाँ, रावण ने किया था मुझसे प्रणय निवेदन
वह राजा था चाहता तो बलात ले जाता अपने रनिवास में
पर रावण पुरुष था,
उसने मेरे स्त्रीत्व का अपमान कभी नहीं किया
भले ही वह मर्यादा पुरुषोत्तम न कहलाए इतिहास में !

यह सब कहला नहीं सकते थे वाल्मीकि
क्योंकि उन्हें तो रामकथा ही कहनी थी !

आगे की कथा आप जानते हैं
सीता ने अग्नि-परीक्षा दी
कवि को कथा समेटने की जल्दी थी
राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौट आए
नगरवासियों ने दीपावली मनाई
जिसमें शहर के धोबी शामिल नहीं हुए ।

आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ उस रावण के लिए
जिसकी मर्यादा
किसी मर्यादा पुरुषोत्तम से कम नहीं थी ।

मैं उदास हूँ कवि वाल्मीकि के लिए
जो राम के समक्ष सीता के भाव लिख न सके ।

आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ स्त्री अस्मिता के लिए
उसकी शाश्वत प्रतीक जानकी के लिए


Wednesday, October 21, 2015

amrit vani

please visit

for Guruji amritvani

मनुष्य जीवन

मनुष्य जीवन का उद्देश्य अपने आपको जानना और प्रभु को पाना है।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Tuesday, October 20, 2015

दुनिया नहीं

आज का जीवन सूत्र
To SEE MORE POSTINGS(AAJ KA VICHAR) VISIT BLOGS 
दुनिया नहीं बदला करती तुम को अपने आपको बदलना होता है !

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Monday, October 19, 2015

कीमती पैसा नहीं है

कीमती पैसा नहीं है वह तो जीवन चलाने के लिए है। जीवन को कीमती बनाने के लिए कीमती है सदविचार्।

परम पूज्य सुधांशुजी महाराज

Saturday, October 17, 2015

अपनी प्रतिष्टा


  • अपनी प्रतिष्टा को भूलकर ,अकिंचन बनकर गुरू के dr दर पर सेवा करने से जो प्राप्ति होगी ,उसकी कोई बराबरी नहीं !
  • सुधान्शुजी जी महाराज

अकारण नहीं है स्वर्ग और नरक की कल्पना

Sushil Chawla 


अकारण नहीं है स्वर्ग और नरक की कल्पना

 


मनुष्य की कल्पनाओं में ईश्वर और स्वर्ग-नरक की कल्पना सबसे रोचक और महत्वपूर्ण है। प्राय: सभी धर्मों में स्वर्ग की कल्पना कमोबेश एकख़ूबसूरत उद्यान के रूप में मिलती हैजहां ऐशोआराम की सभी चीजेंमौजूद हैं। इस स्वर्गोद्यान में कलकल बहते झरने होते हैं। इन झरनों और नहरों के किनारे बनी क्यारियों में रंगबिरंगे मनमोहक फूल महकते हैं। यहां चारों ओर लगे हरेभरे पेड़ लगे होते हैंजो सदैव स्वादिष्ट और रसीले फलों से लदे रहते हैं। इसी स्वर्गोद्यान में अप्सराएं होती हैंपरियां होती हैंहूरेंहोती हैं तथा और भी न जाने क्या-क्या हैजिसे मनुष्य की कल्पना नेयहां संजोया है। यदि आप इस स्वर्ग को देखना चाहें या वहां स्थायी रूप सेनिवास करना चाहें तो वह भी संभव हैलेकिन मृत्यु के उपरांत ही। प्रश्नउठता है कि हम जिस स्वर्ग की खोज में रहते हैंवह स्वर्ग कहां हैक्यावह इस धरती पर ही स्थित है अथवा हमारी दृष्टि से परे अन्यत्र हैक्या स्वर्ग का संबंध मृत्यु से हैक्या इस भौतिक देह का अवसान ही मृत्यु है?मृत्यु वास्तव में क्या हैवह कौन सी मृत्यु है जिससे स्वर्ग की प्राप्ति संभव हैईसा कहते हैंमैं बार-बार यही कहूंगा कि जब तक मनुष्य दोबारा जन्मनहीं लेगावह ईश्वर का साम्राज्य नहीं देख पाएगा। अर्थात पुनर्जन्म ही स्वर्ग का द्वार है। स्वर्ग के लिए अनिवार्य है मृत्यु। लेकिन किसकी मृत्यु


इस भौतिक देह की मृत्यु या इस भौतिक देह के अंदर व्याप्त मन में समाएनकारात्मक घातक विचारों की मृत्युजहां तक भौतिक देह की मृत्युअथवा देहावसान के बाद स्वर्ग या नरक की प्राप्ति की बात हैतो वह बेमानी हैक्योंकि इस शरीर के नष्ट हो जाने के बाद स्वर्ग या नरक की अनुभूति को बतलाने का कोई उपाय नहीं है। ईसा जब कहते हैं कि मनुष्य जब तक दोबारा जन्म नहीं लेगावह ईश्वर का साम्राज्य नहीं देख पाएगा- तो उनकेकहने का तात्पर्य भौतिक देह के पुनर्जन्म से नहींबल्कि नकारात्मक घातक विचारों की मृत्यु के बाद मन में उत्पन्न होने वाले सात्विक भावों की सृष्टि से ही है। 

एक बार एक व्यक्ति ने एक प्रसिद्ध संत से स्वर्ग जाने का उपाय पूछा तो संत ने कहाएक-एक कर सब अवगुणों से मुक्त हो जाओ। जिस दिनविकारों से मुक्त हो जाओगेउसी दिन स्वर्ग की सृष्टि हो जाएगी और यहीं पर जीते जी हो जाएगी। जब तक हम नकारात्मक और घातक विचारों से भरे रहते हैंहम अधिभौतिकअधिदैविक तथा आध्यात्मिक- तीनों प्रकार की व्याधियों से पीड़ित रहते हैं। और यही जीते जी का नरक है। 

मन की उचित कंडीशनिंग अर्थात मन में व्याप्त नकारात्मक घातक विचारों से मुक्ति ही स्वर्ग का सोपान है। मन की मृत्यु अर्थात मन पर पूर्ण नियंत्रणद्वारा ही मन में सकारात्मक विचारों अथवा भावों की स्थापना संभव है। यहीवास्तविक मृत्यु अथवा पुनर्जन्म है। मन में सकारात्मक भावों की सृष्टि हीस्वर्ग की सृष्टि है। 

वास्तव में स्वर्ग की प्राप्ति कब होती हैयह तभी संभव है जब हम इस जीवन में अच्छे-अच्छे कर्म करें। अच्छे कर्मों से क्या तात्पर्य हैवास्तव मेंकर्म की उत्पत्ति भावों या विचारों से होती है। जैसे हमारे भाव या विचार होंगेवैसे ही कर्म भी होंगे। जिस प्रकार हम सुंदर पेड़-पौधे और फल-फूल उगाकर इस धरती पर स्वर्ग की रचना करने में सक्षम होते हैंउसी प्रकार मन में सकारात्मक भावों की सृष्टि द्वारा हम जीते जी स्वर्ग की रचना ही तोकरते हैं। 

विभिन्न धर्मों में ऐसे स्वर्ग की परिकल्पना इसीलिए हैक्योंकि उसकाउद्देश्य अपने समुदाय के लोगों को सदाचार के लिए प्रेरित करना होता है।स्वर्ग के सुख की आशा उन्हें लुभा कर अच्छे मार्ग पर ले जाती है। लेकिनवास्तविक स्वर्ग तो हमारे मन में होता है। हम इस जीवन में अच्छे कर्मकरें तथा अनुशासित रहेंजिससे न केवल व्यक्ति अपितु पूरा समाजलाभान्वित हो सकेइसीलिए एक काल्पनिक स्वर्ग की रचना की गई है।इस कल्पना में ही मनुष्य के जीवन के विकास का वास्तविक सूत्र निहितहै