संत तिरुवल्लुवर की सभा चल रही थी। लोग दूर-दूर से उनके दर्शन करने और उनके सत्संग का लाभ उठाने आए थे। वहां उपस्थित सारे भक्त उनकी बातों को ध्यान से सुन रहे थे। हर कोई उनसे अपने प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा शांत कर रहा था। संत सबके प्रश्नों के उत्तर स्नेहपूर्वक दे रहे थे। एक जिज्ञासु ने पूछा- महाराज आप कहते हैं कि ईश्वर हर जगह पर है। उसको कहीं भी देखा या महसूस किया जा सकता है। यह बात सत्य है या ऐसे ही लोगों को भरमाने के लिए कह दिया गया है? हमने यह सवाल पहले भी कुछ साधु-महात्माओं से किया था पर मुझे आज तक इसका कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिल सका। कृपया आप बताएं। कोई उदाहरण से समझाएंगे तो अच्छा होगा।
संत तिरुवल्लुवर मुस्कराए और उन्होंने आश्रम में रखी मेहंदी में से थोड़ी मेहंदी उस व्यक्ति के हाथ में लगाकर पूछा- अभी तुम्हें अपनी हथेली पर कौन सा रंग दिख रहा है? वह व्यक्ति बोला- जी, यह तो कोई भी बता सकता है। यह हरा रंग है। संत ने उसे थोड़ी देर प्रतीक्षा करने को कहा। फिर थोड़ी देर बाद उसके हाथ धुलवाकर उससे पूछा-अब बताओ यह लाल रंग कहां से आया? वह व्यक्ति संत का मुंह देखने लगा। सब उत्सुक हो उठे। संत बोले- जिस प्रकार हरे रंग की मेहंदी में लाल रंग मौजूद है मगर दिखता नहीं, उसी प्रकार ईश्वर भी हम सबके भीतर अलग-अलग रूपों में उपस्थित है। उसे हम उचित प्रयास से ही अनुभव कर सकते हैं। लोग संत की इस व्याख्या से प्रसन्न हो गए।
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