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Wednesday, August 29, 2012

phakeer

एक फकीर कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक सौदागर मिला, जो पांच गधों पर बड़ी-बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे। फकीर ने सौदागर से प्रश्न किया, 'इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?'

सौदागर ने जवाब दिया, 'इनमें इंसान के इस्तेमाल की चीजें भरी हैं। उन्हें बेचने मैं बाजार जा रहा हूं।' फकीर ने पूछा, 'अच्छा! कौन-कौन सी चीजें हैं, जरा मैं भी तो जानूं!' सौदागर ने कहा, 'यह जो पहला गधा आप देख रहे हैं इस पर अत्याचार की गठरी लदी है।' फकीर ने पूछा, 'भला अत्याचार कौन खरीदेगा?' सौदागर ने कहा, 'इसके खरीदार हैं राजा-महाराजा और सत्ताधारी लोग। काफी ऊंची दर पर बिक्री होती है इसकी।'

फकीर ने पूछा, 'इस दूसरी गठरी में क्या है?' सौदागर बोला, 'यह गठरी अहंकार से लबालब भरी है और इसके खरीदार हैं पंडित और विद्वान। तीसरे गधे पर ईर्ष्या की गठरी लदी है और इसके ग्राहक हैं वे धनवान लोग, जो एक दूसरे की प्रगति को बर्दाश्त नहीं कर पाते। इसे खरीदने के लिए तो लोगों का तांता लगा रहता है।' फकीर ने पूछा, 'अच्छा! चौथी गठरी में क्या है भाई?' सौदागर ने कहा, 'इसमें बेईमानी भरी है और इसके ग्राहक हैं वे कारोबारी, जो बाजार में धोखे से की गई बिक्री से काफी फायदा उठाते हैं। इसलिए बाजार में इसके भी खरीदार तैयार खड़े हैं।' फकीर ने पूछा, 'अंतिम गधे पर क्या लदा है?' सौदागर ने जवाब दिया, 'इस गधे पर छल-कपट से भरी गठरी रखी है और इसकी मांग उन औरतों में बहुत ज्यादा है जिनके पास घर में कोई काम-धंधा नहीं हैं और जो छल-कपट का सहारा लेकर दूसरों की लकीर छोटी कर अपनी लकीर बड़ी करने की कोशिश करती रहती हैं। वे ही इसकी खरीदार हैं।' तभी महात्मा की नींद खुल गई। इस सपने में उनके कई प्रश्नों का उत्तर मिल गया था।

Saturday, August 25, 2012

ऐसी कोई चीज़ बताओ जो घर में आजाए तो घर मिट जाए

हरिओम 
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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज


फूंट 
गीता से 
गुरूजी कहते  हैं कि बचपन में हम लोगों ने कभी सुना था कि एक बार बादशाह ने अपने बुद्धिमान वजीर बीरबल से यह प्रशन किया कि ऐसी कोई चीज़ बताओ जो घर में आजाए तो घर मिट जाए ,जीवन में आजाए तो जीवन मिट जाए ,परिवार में आजाए तो परिवार  मिट जाए ,और मोहल्ले में आजाए तो मोहल्ला  मिट जाए ,और देश में आजाए तो देश न रहे ऐसी चीज़ क़ा नाम क्या है ?
बीरबल मुस्कराए और मुस्कराकर बोले :-उस चीज़ क़ा नाम है "फूंट " फूंट जिस घर में आ गई घर बर्बाद , परिवार में आ गई परिवार बरबाद ,जिस संघटन में फूंट आकर बस गई वह संगठन बरबाद और जिस मोहल्ले में फूंट आ कर बैठ गई वह मोहल्ला बरबाद और जिस नगर में फूंट पड़ गई वह नगर बरबाद और जिस देश में फूंट के बेज चारों तरफ से आकुरित होने लग जाएं तो फिर समझ लेना वह देश नहीं रहता ,सबको तोड़ने क़ा काम फूंट करती है और जोड़ने क़ा काम त्याग करता है !
इसलिए फूंट कहीं भी मत् पड़ने दो ,देश बचाना है तो एकता रखो अलग अलग अपना राग मत् अलापो !

Tuesday, August 7, 2012

मैं गृहस्थी हूँ मेरा घर में झगड़ा होता रहता है। उसके बारे में


कबीर जी रोज सत्संग किया करते थे,लोग आते और चले जाते। एक आदमी सत्संग खत्म हो

गया फिर भी बैठा रहा।

कबीर जी बोले क्या बात है वो इन्सान बोला मैं तो काफी दूर से आया हूँ मुझे आपसे

कुछ पूछना है।

क्या पूछना है? कबीर बोले। वो कहने लगा मैं गृहस्थी हूँ मेरा घर में झगड़ा होता

रहता है। उसके बारे में

जानना चाहता हूँ की झगड़ा कैसे दूर हो तो कबीर जी चुप रहे थोड़ी देर में कबीर जी

ने अपनी पत्नी से कहा लालटेन

जला केलाओ। कबीर की पत्नी लालटेन जला कर ले आई। कबीर जी के पास रख दी वो आदमी

भी वही बैठा था सोच

रहा था इतनी दोपहर है और लालटेन माँगा ली। खैर! मुझे इससे क्या। फिर कबीर जी

बोले कुछ मीठा दे जाना।

तों उनकी स्त्री नमकीन देकर चली गयी। उस आदमी ने फिर सोचा यह तो शायद पागलो का

घर है मीठा के बदले

नमकीन, दिन में लालटेन, वो आदमी बोला कबीर जी मैंचलता हूँ। मन में सोचने

लगा कहाँफँस

गया।

कबीर जी समझ गए तो बोले आपको आपके झगड़े का हल मिला की नहीं। वो बोला क्या मिला?

कुछ नहीं।

कबीर जी ने कहा जैसे मैंने लालटेन मंगवाई घर वाली कह सकती थी की तुम क्या सठीया

गए हो इतनी दोपहर में

क्या करोगे। उसने सोचा होगा किसी काम के लिये लालटेन मंगवाई होगी । मीठा

मंगवाया तों नमकीन देकर

चली गयी, हो सकता है घर में न हो पर में भी चुप रहा। इसमे तकरार क्या? तुम भी

समझो तकरार करना छोड़ो।

एक-दुसरे की बात को समझो । आपसी विश्वास बनाओ। वो आदमी हैरान था यह सब इन्होंने

मेरे लिये किया।

उसको समझ आने लगी गृहस्थी में तालमेल आपसी विश्वास बहुत जरुरी है। आदमी से गलती

हो तो औरत संभले ।


औरत से गलती हो तो भी क्या है उसको भी क्या है गलती तो इन्सान से हो ही जाती

है।...