WELCOME

YOU ARE WELCOME TO THIS GROUP

PLEASE VISIT U TO END OF THIS BLOG

adsense code

Wednesday, August 4, 2010

मैं वह हूं जो आप हैं



मैं वह हूं जो आप हैं

आदि शंकराचार्य शिष्यों के साथ नर्मदा नदी तट पर स्नान के लिए जा रहे थे। शिष्य उनके लिए मार्ग साफ करते चल रहे थे। इस दौरान एक पथिक वहां से गुजरा। शिष्यों ने उससे कहा-मार्ग छोड दें। स्वामी जी यहां से गुजरेंगे। शिष्यों के बार-बार आग्रह करने के बावजूद पथिक रास्ते से नहीं हटा। इतने में आदि शंकराचार्य भी वहां आ गए। उन्होंने उस पथिक से पूछा कि आप कौन हैं? पथिक ने अत्यंत धैर्य से उत्तर दिया-मैं वह हूं, जो आप हैं।

पथिक के इस कथन को सुनकर शंकराचार्य कुछ क्षण के लिए शांत खडे रहे और फिर झुक कर पथिक के चरणों को स्पर्श कर लिया। उन्होंने कहा-आज आपने मुझे जीवन का वास्तविक ज्ञान दे दिया। मैं आपको अपना गुरु स्वीकार करता हूं।

वह पथिक निम्न कुल का था। शंकराचार्य आजीवन उसे अपना गुरु मानते रहे। पथिक के कथन की उन्होंने दार्शनिक व्याख्या की, जिससे अद्वैत दर्शन का निर्माण हुआ। मानवतावादी चिंतन के लिए अद्वैत दर्शन एक आध्यात्मिक प्रेरणा है। सब एक हैं। कोई दूसरा नहीं है। इसका कारण है सर्वव्यापी ईश्वर और आत्म तत्व का ब्रह्म तत्व का अंश होना।

जब सृष्टि का नियामक एकमेव ब्रह्म है, तो फिर कोई किसी अन्य से पृथक क्यों? सब में वही आत्म तत्व है, जो सभी में है। उपनिषद में ऋषि कहते हैं कि अपने को जान, उसे जान, मुझे जान, और ईश्वर को जान। स्वयं से साक्षात्कार करने की स्थिति व्यक्ति को अमरत्व के दर्शन कराती है। जो आपमें है, उसमें है और हम में भी। छान्दोग्यउपनिषद में ऋषि कहते हैं कि सब कुछ ब्रह्म ही है। मनुष्य उसी से उत्पन्न हुआ है।

तैत्तिरीय उपनिषद में ऋषि ब्रह्म को आनंद का प्रतीक मानते हुए कहते हैं कि जिसने सृष्टि बनाई है, वह सबमेंहै और सब उसमें है। यह विचार भी अद्वैत दर्शन को पुष्ट करते हैं। साथ ही, ब्रह्म में आनंद की उपस्थिति उसके कल्याण रूप का प्रतीक है। ऋषि कहते हैं कि आनंद से ब्रह्म है, आनंद में ही ब्रह्म है, आनंद से ही ब्रह्म जीव पैदा होते हैं, आनंद से ही वे जीवित रहते हैं, आनंद में ही फिर समा जाते हैं।

भारतीय दर्शन में विभेद को मान्यता नहीं दी गई है। समरूपता,समरसता और एकाग्रता आत्मा के लक्षण हैं। उसे स्वीकार करते हुए कहा गया है कि एक ही ईश्वर सब प्राणियों के भीतर विराजमान है। वह सबको गति और ऊर्जा प्रदान करता है। सबके भीतर वही समाया है। वह सभी कर्मो का स्वामी है। वह साक्षी भी है, ज्ञाता भी है और न्यायाधीश भी। ईश्वर निर्गुण और अनंत है।

साधक की इच्छा होती है कि वह जीवन-जगत के रहस्यों को समझें। इसके लिए वह परमपिता परमेश्वर की निकटता चाहता है, क्योंकि उसकी निकटता का अनुभव मात्र ही अनेक रहस्यों को अनावृत्त कर देता है।

ईश्वर को जानने से सारे संशय दूर हो जाते हैं और जीव के मोह भाव नष्ट हो जाते हैं। कोई गैर नहीं होता, किसी से बैर नहीं होता। सब अपने होते हैं और व्यक्ति अद्वैत की स्थिति प्राप्त कर लेता है।

ram krishna haridas

--
MANEESH BAGGA 9910819898.

No comments:

Post a Comment