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Sunday, February 21, 2010

क्रोध खत्म हो जाता



--- On Sun, 21/2/10, neha smart From: neha smart Subject: its harmful 4 us...............
To: "mggarga"" <mggarga@yahoo.com>
Date: Sunday, 21 February, 2010, 4:34 PM

क्रोध खत्म हो जाता है, उसका घाव खत्म नहीं होता





एक बालक को छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आ जाता था। उसके पिता ने कहा, जब भी तुम्हें क्रोध आए, घर की चारदीवारी पर एक कील ठोक देना। पहले दिन उस लड़के ने 37 कीलें ठोकीं। लेकिन कीलें देख कर उसे खुद पर आश्चर्य भी हुआ कि उसे इतना क्रोध आता है।


उसके अगले दिन उसने 32 कीलें ठोकीं, उसके बाद 29 । क्रोध आने के बाद जाकर दीवार में कील ठोकने की उस प्रक्रिया में कुछ सप्ताहों में उसने अपने क्रोध पर काबू पाना सीख लिया और धीरे-धीरे कीलें गाड़ने की संख्या भी कम हो गई। उसे समझ आ गया कि कील ठोकने की तुलना में क्रोध पर काबू पाना आसान है। फिर एक दिन ऐसा आ गया जब उसे बिल्कुल क्रोध नहीं आया, वह एक सहनशील बालक बन गया।

उसने अत्यंत हर्षित भाव से पिता को इसके बारे में बताया। तब पिता ने सुझाव दिया कि अब वह प्रतिदिन एक-एक कील दीवार से बाहर निकाले, क्योंकि अब उसे अपने आप पर पूरा नियंत्रण हो गया है। इस तरह कुछ दिन बीते और एक दिन उसने खुश हो कर पिता को जा कर बताया कि सब कीलें निकाल दी गई हैं।

पिता अपने बेटे का हाथ पकड़ कर दीवार के पास वापस ले गया। फिर कहा, तुमने बहुत अच्छा काम किया है। लेकिन यह देखो, कील निकालने के बाद भी गड्ढे बचे हुए हैं। कील ठोकने से जो नुकसान होना था, वह हो चुका। दीवार अब कभी भी अपनी पहली वाली साफ-सुथरी स्थिति में नहीं आ सकती। उसने बेटे को समझाया, इसी तरह जब हम किसी को क्रोध के आवेश में कुछ अनाप-शनाप कहते हैं, तो दूसरों के मर्मस्थलों को घायल कर देते हैं। उसके बाद सुलह-सफाई हो भी जाए, तो उसके निशान रह जाते हैं। तुम किसी व्यक्ति को पहले तो घाव दे दो और फिर बार-बार 'सॉरी' कहो भी तो घाव के निशान जाएंगे नहीं, वे बने रहेंगे।

हमारे शास्त्रों में एक नीति वाक्य है, जिसने क्रोध की अग्नि अपने हृदय में प्रज्ज्वलित कर रखी है, उसे चिता से क्या प्रयोजन? अर्थात वह तो बिना चिता के ही जल जाएगा। ऐसी महाव्याधि से दूर रहना ही कल्याणकारी है। क्रोध बुद्धि की विनाशकारी स्थिति है। वास्तव में क्रोध, घृणा, निंदा, ईर्ष्या- ये वे भावनाएं हैं जिनसे मनुष्य की तर्कशक्ति नष्ट हो जाती है। क्रोध को तो यमराज कहा गया है।

पुत्र ने पिता की आज्ञा नहीं मानी, पिता को क्रोध आ गया। पत्नी ने आपकी मर्जी की दाल-सब्जी नहीं बनाई, तो आपको क्रोध आ गया। आप समझते हैं कि हर काम आपकी मर्जी से ही होना चाहिए। कई बार हमारे विचार दूसरों से मेल नहीं खाते, तो मतभेद हो जाता है, शत्रु बन जाते हैं। हम समझते हैं कि लोगों को हमारे अनुसार ही चलना चाहिए।

इसी तरह जब हम यह मानने लगते हैं कि जो कुछ हम जानते हैं, वह ठीक है। तब भी संघर्ष और क्रोध के अवसर आते हैं। वैज्ञानिक लोग किसी एक बात का जीवन भर अनुसंधान करते हैं। कोई सिद्धांत निर्धारित करते हैं, किंतु यदि उन्हें अपने मन में संदेह हुआ तो बिना सालों के परिश्रम का ख्याल किए तुरंत अपना मत बदल भी देते हैं। ज्ञान का समुद्र अथाह है। जो यह सोचता है कि मैं जो जानता हूं, वही पूर्ण सत्य है, वह अंधेरे में भटक रहा है।

जो खुद को मालिक मानता है, कर्ता समझता है, अहंकार करता है, उसे ही क्रोध आएगा, जो अपने को सेवक स्वरूप जानता है, वह किसी पर क्रोध क्यों करेगा? इसलिए हमें प्रतिदिन एकांत में बैठकर कुछ देर शांतिपूर्वक अपनी वास्तविक स्थिति के बारे में सोचना चाहिए। हमें इतना अधिकार किसी ने नहीं दिया कि सभी बातों में हम अपनी ही मर्जी चलाएं। हम भी उतना ही अधिकार रखते हैं, जितना दूसरे। फिर जब हम दूसरे से प्रतिकूल विचार रखते हैं, तो दूसरों को भी वैसा करने का अधिकार क्यों नहीं है?




From the Desk of Yuva Kranti Dal


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