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Friday, June 24, 2016

जीवन में इस

जीवन में इस बात पर ध्यान दें कि तुम्हें आगे चलना है।

Thursday, June 23, 2016

विचार शक्ति

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

जिनका आज जनम दिन या विवहा की सालगिरह है 

उनको और सब को आशीर्वाद देते हुए 



विचार शक्ति जितनी ऊँची होती है, व्यक्ति उतने ही ऊँचे कार्य करता है।

Sunday, June 19, 2016

जो ऐब सिखाए

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

जिनका आज जनम दिन या विवहा की सालगिरह है 

उनको और सब को आशीर्वाद देते हुए 


जो ऐब सिखाए वह सगा नहीं है , हाँ जो आपके ऐब मिटाए , कितना भी कड़वा बोले  वह आपका सगा है मित्र है !

Friday, June 17, 2016

हमारे जीवन का

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

जिनका आज जनम दिन या विवहा की सालगिरह है 

उनको और सब को आशीर्वाद देते हुए 


हमारे जीवन का स्वर्णिम कल आज पर निर्भर है। भविष्य को उज्जवल करने की आकांक्षा यदि हमारे मन में है तो आज को संवारना होगा। 

 

आज जो हमने बोया है, कल वही तो हम काटेंगे ।

Sunday, June 12, 2016

एक दिन फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था। सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था। सर्द रात, पूर्णिमा की रात। फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा। उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो? न रहा गया उनसे। तो उस फकीर ने कहा कि आए थे— कभी तो आए, जीवन में पहली दफा तो आए! यह सौभाग्य तुमने दिया! मुझ फकीर को भी यह मौका दिया! लोग फकीरों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं। तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया! क्षण भर को मुझे भी लगा कि अपने घर भी चोर आ सकते हैं! ऐसा सौभाग्य! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं, मैं रोका बहुत कि कहीं तुम्हारे काम में बाधा न पड़े, लेकिन न रुक पाया, सिसकियां निकल गईं, क्योंकि घर में कुछ है नहीं। तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता। दुबारा जब आओ तो सूचना तो दे देना। मैं गरीब आदमी हूं। दो—चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग—तूंग कर इकट्ठा कर लेता। अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।    चोर तो घबड़ा गए, उनकी कुछ समझ में ही नहीं आया। ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला न था।    चोरी तो जिंदगी भर से की थी, मगर आदमी से पहली बार मिलना हुआ था। भीड़— भाड़ बहुत है, आदमी कहां! शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां! पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, हया उठी। और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए, मना नहीं कर सके। मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल! इस पर कुछ और नहीं है! कंबल छूटा तो पता चला कि फकीर नंगा है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना। लेकिन फकीर ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नंगे रहने की आदत है। और तुम तीन मील चल कर गांव से आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं। तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना।    चोर तो ऐसे घबड़ा गए कि एकदम निकल कर बाहर हो गए। जब बाहर हो रहे थे तब फकीर चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो!  आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा। और ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे। फिर फकीर खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा और उसने एक गीत लिखा— जिस गीत का अर्थ है कि मैं बहुत गरीब हूं मेरा वश चलता तो आज पूर्णिमा का चांद भी आकाश से उतार कर उनको भेंट कर देता! कौन कब किसके द्वार आता है आधी रात!    यह आस्तिक है। इसे ईश्वर में भरोसा नहीं है, लेकिन इसे प्रत्येक व्यक्ति के ईश्वरत्व में भरोसा है। कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा, लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, जो श्वासें ले रहा है, उस फैले हुए ईश्वरत्व के सागर में इसकी आस्था है।    फिर चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला, वह कंबल भी पकड़ा गया। और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था। वह उस प्रसिद्ध फकीर का कंबल था। मजिस्ट्रेट तत्‍क्षण पहचान गया कि यह उस फकीर का कंबल है— तो तुम उस गरीब फकीर के यहां से भी चोरी किए हो! फकीर को बुलाया गया। और मजिस्ट्रेट ने कहा कि अगर फकीर ने कह दिया कि यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है, तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है। फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूं दूंगा। फिर बाकी तुम्हारी चोरियां सिद्ध हों या न हों, मुझे फिकर नहीं है। उस एक आदमी ने अगर कह दिया…।    चोर तो घबड़ा रहे थे, कंप रहे थे, पसीना—पसीना हुए जा रहे थे— जब फकीर अदालत में आया। और फकीर ने आकर मजिस्ट्रेट से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं। मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था। और जब धन्यवाद दे दिया, बात खत्म हो गई। मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं, ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे।    यह आस्तिकता है। मजिस्ट्रेट ने तो चोरों को छोड़ दिया, क्योंकि फकीर ने कहा. इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं। फकीर के पैरों पर गिर पड़े चोर और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो। वे संन्यस्त हुए। और फकीर बाद में खूब हंसा। और उसने कहा कि तुम संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था। इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थीं। इस कंबल में मेरे सारे सिब्दों की कथा थी। यह कंबल नहीं था। जैसे कबीर कहते हैं न—झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया! ऐसे उस फकीर ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे! इसी को ओढ़ कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था, गंध थी। तुम इससे बच नहीं सकते थे। यह मुझे पक्का भरोसा था, कंबल ले आएगा तुमको भी। और तुम आखिर आ गए। उस दिन रात आए थे, आज दिन आए। उस दिन चोर की तरह आए थे, आज शिष्य की तरह आए। मुझे भरोसा था। क्योंकि बुरा कोई आदमी है ही नहीं।    बुरे से बुरे आदमी में भी जिसे भरोसा है, वह आस्तिक। चोर में जो अचोर को देख ले, वह आस्तिक। बेईमान में जो ईमानदार को देख ले, वह आस्तिक। असाधु में भी जो साधुता को खोज ले— हालांकि ढेर है असाधुता का, लेकिन कहीं न कहीं साधुता का हीरा भी दबा पड़ा होगा— वह आस्तिक। और इससे उलटा नास्तिक है। नास्तिक वह है जो गुलाब की झाड़ी के पास जाए तो गुलाब के फूल तो उसे दिखाई ही न पड़े, कांटों की गिनती कर ले। और कांटों को गिनोगे तो कांटे चुभेंगे भी, हाथ लहूलुहान भी हो जाएंगे, क्रोध भी जगेगा।--
मैंने  भगवान  से  कहा-  मेरे  सभी  दोस्तों  को  खुश  रखना l





भगवान  बोले-  ठीक  है,  पर  सिर्फ  4  दिन  के  लिए……
वो  चार  दिन  तू  बता……





मैंने  कहा  ठीक  है……
1)  Summer  Day
2)  Winter  Day
3)  Rainy  Day
4)  Spring  Day





भगवान  confused  हो  गए  और  बोले-  नहीं  सिर्फ  3  दिन……





मैंने  कहा  ठीक  है……
1)  Yesterday
2)  Today
3)  Tomorrow





भगवान  फिर  confused  होकर  बोले-  सिर्फ  दो  दिन……





मैंने  कहा  ठीक  है……
1)  Current Day
           और
2)  Next  Day





भगवान्  फिर  confused  होकर  बोले-  नहीं  सिर्फ  1  दिन……





मैंने  कहा
1)  Everyday





भगवान  हंसने  लगे  और  बोले- अच्छा  बाबा  मेरा  पीछा  छोड़ो  तुम्हारे  दोस्त  सदा  खुश  रहेगे l

Friday, June 10, 2016

ईट पत्थरों से

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

जिनका आज जनम दिन या विवहा की सालगिरह है 

उनको और सब को आशीर्वाद देते हुए 



  ईट पत्थरों से बना मकान सुन्दर दिख सकता है लेकिन घर का सौन्दर्य उसमें तब आता है जब उसमें प्रेम हो।

Thursday, June 9, 2016

jigyasa aur samadhan: जिज्ञासु :-गुरुदेव जब भी भक्ति मैं बैठता हूँ तो मन...: "जिज्ञासु :- गुरुदेव जब भी भक्ति मैं बैठता हूँ तो मन मैं एक अनिश्चय का भाव हे कि व्यक्ति गुरु की जाय या भगवान् की ? गुरुमंत्र जपू या भगवान क..."

जिज्ञासु :-गुरुदेव जब भी भक्ति मैं बैठता हूँ तो मन.




jigyasa aur samadhan: जिज्ञासु :-गुरुदेव जब भी भक्ति मैं बैठता हूँ तो मन...: "जिज्ञासु :- गुरुदेव जब भी भक्ति मैं बैठता हूँ तो मन मैं एक अनिश्चय का भाव हे कि व्यक्ति गुरु की जाय या भगवान् की ? गुरुमंत्र जपू या भगवान क..."

Wednesday, June 8, 2016

अन्याय, अभाव


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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

जिनका आज जनम दिन या विवहा की सालगिरह है 

उनको और सब को आशीर्वाद देते हुए 


अन्यायअभाव और आलस्य अज्ञानता के कारण ही पैदा होते है। ज्ञान हो तो यहसारी चीजें मिटने लगती है। सबसे पहले अज्ञान का नाश करने की बातसोचिए। 

Tuesday, June 7, 2016

कुछ उदबोधन

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

जिनका आज जनम दिन या विवहा की सालगिरह है 

उनको और सब को आशीर्वाद देते हुए 



कुछ उदबोधन और जागृति के अक्षर अपने सामने रखकर जीवन जीओ जिससे आप सामान्य से ऊपर उठ सकें । 
 
आपके विचार बदलते है तो दुनिया बदल जाती है। दुनिया बदलती है तो जीवन बदल जाता है। 

Monday, June 6, 2016

बच्चों को तो

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परम पूज्य सुधांशुजी महाराज 

जिनका आज जनम दिन या विवहा की सालगिरह है 

उनको और सब को आशीर्वाद देते हुए 


बच्चों को तो बच्चा इसलिए कहते हें क्योंकि उन्हें बचाना पड़ता हें !बच्चों को धन दौलत दो या मत दो पर अच्छे संस्कार जरूर दो !